‘इमरान खान के हाथों हालात बेकाबू’ ‘गृह युद्ध की ओर बढ़ गया पाकिस्तान’

punjabkesari.in Thursday, Oct 22, 2020 - 03:29 AM (IST)

जैसा कि हम समय-समय पर लिखते रहते हैं, अपने अस्तित्व में आने के समय से ही पाकिस्तान के शासकों ने अपना भारत विरोधी एजैंडा जारी रखा, जबकि भारत का रवैया पाकिस्तान के प्रति मैत्री भाव का रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के बाद भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के बीच 11 जनवरी, 1966 को उज्बेकिस्तान में समझौता हुआ। इसमें दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग न करने और अपने आपसी विवाद शांतिपूर्वक सुलझाने पर सहमत हुए। दोनों देशों ने अपनी सेनाएं 5 अगस्त, 1965 की स्थिति पर पीछे हटाने की सहमति व्यक्त कर दी। शास्त्री जी के साथ वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर भी गए थे, जिनके साथ हमारे घरेलू संबंध थे। 

शास्त्री जी ने उन्हें भारत में समझौते पर प्रतिक्रिया जानने के लिए कहा। श्री नैय्यर जी ने कई वरिष्ठ लोगों से पूछने के बाद मुझसे भी पूछा। मैंने बताया कि लोगों की प्रतिक्रिया अच्छी नहीं। मेरे पूछने पर श्री नैय्यर ने कहा कि विजय ‘जो तूं केया ए, ओइयो राय सबदी है’। घोषणा पर हस्ताक्षर के चंद घंटे बाद शास्त्री जी की मृत्यु हो गई और पाकिस्तान अपने वचन पर कायम नहीं रहा। फिर 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला आए और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ 2 जुलाई, 1972 को ‘शिमला शांति समझौते’ पर हस्ताक्षर किए, जिसमें पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच कश्मीर सहित सभी मुद्दे बातचीत द्वारा हल करने का आश्वासन दिया परंतु ‘ढाक के वही तीन पात’। 

भारत पाकिस्तान के साथ मैत्री पर बल देता रहा, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने तनाव बीच बातचीत जारी रखी : उनकी सोच थी कि जिस प्रकार पाकिस्तान से बंगलादेश टूटा है उसी प्रकार एक दिन पाकिस्तान (पंजाब) हमारे पंजाब से जुड़ेगा। इसलिए ‘दिल मिलें या न मिलें, हाथ मिलाते रहना चाहिए।’  मुलाकातें जारी रखें, सुखद परिणाम अवश्य आएगा। 

1988 में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने देखा कि भारत के विरुद्ध तीन युद्ध लड़ कर भी पाकिस्तान हारा है तो उन्होंने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और भारत के प्रधानमंत्री वाजपेयी को लाहौर आमंत्रित कर आपसी मैत्री व शांति के लिए 21 फरवरी, 1999 को ‘लाहौर घोषणा पत्र’ पर हस्ताक्षर किए। परंतु तत्कालीन सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने वाजपेयी जी के प्रोटोकोल का उल्लंघन करते हुए न उन्हें सलामी दी और न ही वाजपेयी जी के सम्मान भोज में शामिल हुआ। यही नहीं, मुशर्रफ 2001 में श्री वाजपेयी से वार्ता करने के लिए ‘आगरा’ आया परंतु वार्ता अधूरी छोड़ कर वापस चला गया। बाद में मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर उन्हें जेल में डाल दिया और सत्ता हथियाने के बाद देश निकाला दे भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए जम्मू-कश्मीर में भारी संख्या में आतंकवादी भेजने शुरू कर दिए व 1999 को कारगिल पर हमला करवा दिया।

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार के लिए फिर अमरीका में बातचीत का दौर चला और दोनों देशों में संबंध सुधारने पर सहमति बनी परंतु ऐसा नहीं हुआ। अब इस दिशा में एक कदम इमरान खान ने भी बढ़ाया और 18 अगस्त, 2018 को अपने शपथ ग्रहण समारोह में भारतीय पूर्व क्रिकेटर और राजनीतिज्ञ नवजोत सिद्धू को आमंत्रित किया और भारत से संबंध सुधारने के लिए करतारपुर गलियारा खोला। उन्होंने सिख पृष्ठभूमि वाले जनरल कमर जावेद बाजवा को सेनाध्यक्ष बनाया और उनके सलाहकार लै. जनरल. (रिटा.) असीम सलीम बाजवा पर ‘भ्रष्टाचार आरोपों’ के खिलाफ चलते विरोध के कारण हालात बेकाबू होते जाते देख उसकी छुट्टी कर दी। और अब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी ‘मरियम नवाज’ के नेतृत्व में 11 विपक्षी दलों ने मिल कर इमरान के विरुद्ध विद्रोह की आवाज बुलंद कर दी है। ‘मरियम के पति कैप्टन सफदर’ की आधी रात के समय गिरफ्तारी से राजनीति में भूचाल आ गया है और इमरान खान सरकार का बचाव करना पाकिस्तानी सेना के लिए भी असंभव हो गया है। 

पाकिस्तान में लगातार धमाके हो रहे हैं। 21 अक्तूबर को कराची में एक इमारत में धमाके के चलते 5 लोग मारे गए। सिंध प्रांत में सेना और पुलिस के बीच लगातार झड़पें हो रही हैं।सिंध पुलिस ने सामूहिक छुट्टियों के लिए आवेदन शुरू कर दिया है और पुलिस को शांत करने की कोशिशें नाकाम हो रही हैं तथा हालात तेजी से बेकाबू होते जा रहे हैं और पाकिस्तान ‘गृह युद्ध’ की ओर तेजी से बढ़ रहा है।-विजय कुमार 


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