सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अनावश्यक विवाद

Thursday, Oct 18, 2018 - 01:10 AM (IST)

केरल में शैव और वैष्णवों के बीच बढ़ते वैमनस्य के कारण एक मध्य मार्ग के रूप में अयप्पा स्वामी का सबरीमाला मंदिर बनाया गया था जो इन दिनों महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को लेकर चर्चा में है। 

अयप्पा स्वामी को ब्रह्मïचारी माना गया है, इसी कारण मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित था जो रजस्वला हो सकती थीं। मंदिर की वैबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा राजशेखर ने करवाया था जिन्हें पम्बा नदी के किनारे अयप्पा भगवान बाल रूप में मिले थे। वह उन्हें अपने साथ महल में ले आए थे और इसके कुछ समय बाद ही रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। अयप्पा के बड़े होने पर राजा उन्हें शासन सौंपना चाहते थे परंतु रानी इसके लिए तैयार नहीं थी। एक बार रानी ने बीमार होने का बहाना बनाकर कहा कि उसकी बीमारी केवल शेरनी के दूध से ही ठीक हो सकती है। 

अयप्पा जी जंगल में दूध लेने चले गए। वहां उनका सामना एक राक्षसी से हुआ, जिसे उन्होंने मार दिया। खुश होकर इंद्र ने उनके साथ शेरनी को महल में भेज दिया। शेरनी को उनके साथ देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। इसके बाद पिता ने अयप्पा को राजा बनने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया और गायब हो गए। दुखी होकर उनके पिता ने भोजन त्याग दिया। इस पर भगवान अयप्पा ने पिता को दर्शन दिए और इस स्थान पर अपना मंदिर बनवाने को कहा जो तिरुवनंतपुरम से 175 कि.मी. दूर पहाडिय़ों पर है। इस मंदिर में श्रद्धालु सिर पर पोटली रख कर पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहन कर, व्रत रख कर और सिर पर नैवेद्य (प्रसाद) रख कर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 

जहां तक मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध का संबंध है, 1987 में अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया था कि जब वह अपने पति के साथ मंदिर में दर्शन करने गईं तो भीड़ में धक्का लगने के चलते वह गर्भगृह में पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं। जयमाला के इस दावे पर हंगामा होने के बाद मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने के मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया और 2006 में राज्य के ‘युवा वकील संघ’ ने सर्वोच्च न्यायालय में इसके विरुद्ध याचिका दायर की। 7 नवम्बर, 2017 को सुप्रीमकोर्ट ने इस पर कहा कि वह सबरीमाला मंदिर में हर आयु की महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है। अंतत: 28 सितम्बर, 2018 को सुप्रीमकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी। 

सुप्रीमकोर्ट ने यह भी कहा कि हमारी संस्कृति में महिलाओं का स्थान आदरणीय है। यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है परंतु मंदिर में प्रवेश करने से रोका जा रहा है जो स्वीकार्य नहीं है। बेशक केरल की पिनराई विजयन सरकार सुप्रीमकोर्ट के फैसले के साथ खड़ी है तथा इसने सुप्रीमकोर्ट के फैसले के विरुद्ध पुनॢवचार याचिका दायर न करने का निर्णय दोहराया है परंतु शिव सेना की केरल इकाई ने मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश देने पर अपने कार्यकत्र्ताओं द्वारा सामूहिक आत्महत्याओं की चेतावनी दे दी है। यही नहीं मासिक पूजा के लिए बुधवार को मंदिर खुलने से पूर्व ही मंदिर का प्रवेश द्वार माने जाने वाले ‘निलाकल’ में तनाव पैदा हो गया। सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद मंदिर के दरवाजे पहली बार बुधवार शाम को खुलने वाले थे जो 5 दिन की मासिक पूजा के बाद 22 अक्तूबर को फिर बंद हो जाएंगे।

बहरहाल सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के विरोध में बुधवार को प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस के लाठीचार्ज और झड़पों के दौरान सैंकड़ों आंदोलनकारी श्रद्धालु एवं पुलिसकर्मी घायल हो गए। दोनों ओर से जम कर पथराव किया गया। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने जमकर लाठियां बरसाईं तथा अनेक लोगों को हिरासत में लिया गया। इस बीच शाम 5 बजे मासिक पूजा के लिए मंदिर को खोल दिया गया। 

चूंकि हिंदू धर्म में महिलाओं को सम्मानजनक स्थान प्राप्त है तथा धार्मिक आयोजनों में महिलाओं की उपस्थिति ही अधिक होती है और वे पुरुषों को धार्मिक आयोजनों में लाने के लिए एक प्रेरणास्रोत जैसी भूमिका निभाती रही हैं, अत: सबरीमाला के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध और इस मुद्दे को लेकर झड़पों और लाठीचार्ज आदि को किसी भी दृष्टिï से उचित नहीं कहा जा सकता। अब जबकि देर से चले आ रहे इस विवाद पर सुप्रीमकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है और राज्य सरकार ने उसे स्वीकार भी कर लिया है अत: किसी भी पक्ष को इसका विरोध नहीं करना चाहिए और आदेश के पालन को सुनिश्चित करना चाहिए।—विजय कुमार

Pardeep

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