हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों के दाखिले पर रोक का ट्रम्प का अटपटा निर्णय
punjabkesari.in Monday, May 26, 2025 - 05:37 AM (IST)

उच्च शिक्षा, वास्तव में, एक ऐसा प्रमुख अमरीकी निर्यात है जहां इसका लाभ उठाने वाले विदेशी छात्र अमरीकी समुदायों में रह कर न केवल अपनी शैक्षिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं बल्कि अमरीकी छात्रों की शिक्षा और विश्वविद्यालय के अनुसंधान में भी आर्थिक योगदान देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय शिक्षकों के एक संगठन के अनुसार शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के दौरान 1.1 मिलियन से अधिक अंतर्राष्ट्रीय छात्रों ने अमरीकी अर्थव्यवस्था में लगभग 43 बिलियन डालर का योगदान दिया, जिसमें से अधिकांश राशि ट्यूशन, भोजन, पुस्तकों और आवास पर खर्च की गई।
इसके विपरीत, अमरीकी छात्र अक्सर विश्वविद्यालयों या अन्य संघीय कार्यक्रमों से सीधे वित्तीय सहायता (सबसिडी) प्राप्त करते हैं और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में काफी कम फीस अदा करते हैं जबकि विदेशी छात्र अपने अमरीकी समकक्षों की तुलना में लगभग डेढ़ गुना अधिक फीस देते हैं। इसे यूं भी कह सकते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय छात्रों द्वारा अदा की जाने वाली उच्च ट्यूशन फीस अमरीकी छात्रों को कम फीस में पढ़ाई करना संभव बनाती है। कुछ सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में अंतर्राष्ट्रीय छात्र पढ़ाई की जो फीस देते हैं वह नियमित ट्यूशन फीस से भी अधिक होती है।
ऐसे हालात के बीच अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक अप्रत्याशित फैसले में अमरीका के अग्रणी हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों के प्रवेश पर रोक लगा दी है जिसे शैक्षणिक सत्र 2025-26 से ही प्रभावी करना होगा। इससे इस विश्वविद्यालय में पढऩे वाले 800 भारतीयों सहित अन्य देशों के लगभग 7000 छात्राओं का भविष्य अधर में लटक गया है। ट्रम्प सरकार की आंतरिक सुरक्षा मंत्री क्रिस्टी नोएम ने 22 मई को एक आदेश जारी करके हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर ङ्क्षहसा, यहूदी विरोधी भावना को बढ़ावा देने और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सहयोग करने का आरोप लगाते हुए हार्वर्ड के ‘स्टूडैंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम सर्टीफिकेशन’ को समाप्त करने का आदेश दे दिया।
इस फैसले को लेकर जहां विदेशी छात्र समुदाय में भारी नाराजगी व्याप्त है, वहीं हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रैजीडैंट ‘ऐलन गार्बन’ जोकि स्वयं एक यहूदी हैं, ने अगले ही दिन 23 मई को ट्रम्प प्रशासन के फैसले के आगे सरैंडर न करने का ऐलान करते हुए बोस्टन की संघीय अदालत में उक्त फैसले के विरुद्ध याचिका दायर कर दी जिसके बाद अदालत ने ट्रम्प प्रशासन के उक्त आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है।
उल्लेखनीय है कि हार्वर्ड अमरीका का प्राचीन (अक्तूबर 1636 में स्थापित हुआ था), प्रमुख और सबसे अमीर विश्वविद्यालय है जिसकी सम्पत्ति 53.2 बिलियन अमरीकी डालर से भी अधिक है। हार्वर्ड के सामने मौजूद गंभीर खतरों के बिना भी, अमरीकी शिक्षा संस्थान ट्रम्प प्रशासन द्वारा अनुसंधान आदि पर लगाई गई कटौतियों तथा आव्रजन सम्बन्धी बंधनों के कारण देश में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की कमी से जूझ रहे थे।हार्वर्ड को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने से रोकने की ट्रम्प प्रशासन की धमकी से इस प्रतिष्ठिïत विश्वविद्यालय के एक चौथाई से अधिक छात्रों का बाहर हो जाने का खतरा पैदा हो गया था। ऐसे 53 कालेज हैं जहां विदेशी छात्र 50 से 20 प्रतिशत तक हैं।
जब कोलंम्बिया विश्वविद्यालय में हुए प्रदर्शन को ट्रम्प प्रशासन ने बुरी तरह कुचल दिया था (80 विद्याॢथयों को जेल में डाला गया) तो लगा कि इसका उद्देश्य फिलिस्तीन समर्थक और इसराईल विरोधी प्रदर्शन को रोकना था परंतु जब और बहुत से विश्वविद्यालयों में ये प्रदर्शन फैल गए तो ट्रम्प का अब यह प्रयास है कि प्रदर्शन तक बात पहुंचे ही नहीं और जो सरकार कहे उसे ही सभी स्वीकार करें। इसलिए ट्रम्प हार्वर्ड के न केवल छात्रों और अध्यापकों की लिस्ट स्वयं पास करना चाहते हैं बल्कि उनकी वैचारिक स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाना चाहते हैं जोकि हर एक राइट विंग पार्टी दुनिया भर में चाहती है।
इस बीच इंगलैंड में रहने वाली ट्रम्प की एक भतीजी ‘मैरी ट्रम्प’ ने उनके बारे में रोचक रहस्योद्घाटन किया है। उनका कहना है कि वह जब 6 वर्ष की थी उस समय ट्रम्प 20 वर्ष के थे। एक दिन जब वह ट्रम्प के साथ फुटबाल खेल रही थी तो ट्रम्प ने उसे इतने जोर से बॉल मारा कि उसे लगा जैसे उसका पैर ही टूट जाएगा क्योंकि ट्रम्प के भीतर शुरू से ही यह भावना रही है कि उसने ही जीतना है चाहे इसके लिए उसे कोई भी तरीका क्यों न अपनाना पड़े। तो क्या यह ट्रम्प की मात्र जिद अपनी जीत के लिए है या फिर स्वयं के महिमामंडन के लिए?