‘अंतत: ट्रूडो को ले डूबीं’  ‘उनकी दिशाहीन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियां’

punjabkesari.in Wednesday, Jan 08, 2025 - 05:13 AM (IST)

‘जस्टिन ट्रूडो’ 2008 में कनाडा की संसद में ‘लिबरल पार्टी’ के सदस्य के रूप में राजनीति में आए। वह 2013 में पार्टी के प्रमुख बने और 2015 के चुनाव में ‘लिबरल पार्टी’ ने 338 सीटों वाले सदन में उनके नेतृत्व में 184 सीटें जीत कर सरकार बनाई और वह देश के 22वें प्रधानमंत्री बनेे। ‘जस्टिन ट्रूडो’ महंगाई काबू करने के वायदे के साथ सत्ता में आए थे परन्तु उनके कार्यकाल में मुस्लिम देशों से आए शरणार्थियों की संख्या में भारी वृद्धि तथा उदार आव्रजन नीतियों के कारण पैदा हुई आवास की समस्या के कारण मकानों की कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई जो आम स्थानीय लोगों की ‘जस्टिन ट्रूडो’ से नाराजगी का बड़ा कारण बनी। ऊपर से अन्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने उनके प्रति लोगों की नाराजगी और बढ़ा दी। 

‘जस्टिन ट्रूडो’ के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप भी लगातार चर्चा में रहे। उन्हें 2017 में ‘होलीडे पैकेज’ और प्राइवेट ‘हैलीकाप्टर’ जैसे उपहार स्वीकार करने के कारण भी आलोचना का सामना करना पड़ा। इनके शासनकाल में ही कनाडा में भारत विरोधी कट्टïरवादी ताकतें मजबूत हुईं और 18 जून, 2023 को कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में 18 सितम्बर, 2023 को ‘जस्टिन ट्रूडो’ द्वारा बिना किसी सबूत के इसमें भारत का हाथ होने का आरोप लगाने के बाद तो दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। 

भारत सरकार ने उन्हें कनाडा में खालिस्तानियों का समर्थन न करने और भारत विरोधी मानसिकता को बढ़ावा न देने के लिए कई बार कहा परन्तु ‘जस्टिन ट्रूडो’ ने हमेशा इसकी उपेक्षा की, हालांकि हकीकत यह भी है कि खालिस्तानियों के हमलों व गतिविधियों से कनाडा के लोग भी परेशान हैं। गत वर्ष खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की ‘न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी’ द्वारा अपने 25 सांसदों का समर्थन वापस ले लेने के बाद ‘जस्टिन ट्रूडो’ की सरकार अल्पमत में आ गई थी परन्तु 1 अक्तूबर को हुए फ्लोर टैस्ट में ‘लिबरल पार्टी’ को एक अन्य पार्टी का समर्थन मिल जाने से सरकार बच गई। 

‘जस्टिन ट्रूडो’ को इस समय देश में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जहां बेकाबू महंगाई के कारण लोगों में उनके विरुद्ध असंतोष व्याप्त है, वहीं ‘जस्टिन ट्रूडो’ की नीतियों के कारण अपनी पार्टी में भी उनके विरुद्ध आक्रोष बढ़ रहा है।  
 ऐसे हालात में  पार्टी के 20 नाराज सांसदों ने उन्हें 2025 के चुनावों से पूर्व पद छोडऩे के लिए 28 अक्तूबर, 2024 तक का अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि या तो वह प्रधानमंत्री का पद छोड़ दें या विद्रोह का सामना करने को तैयार रहें।

सांसदों का यह भी आरोप था कि भारत के विरुद्ध आरोप लगाकर ‘जस्टिन ट्रूडो’ अपनी सरकार की नाकामी छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच अमरीका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ द्वारा कनाडा की वस्तुओं पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने तथा कनाडा को अमरीका का 51वां प्रांत बनाने की धमकी के मुद्दे पर कनाडा की तत्कालीन वित्त मंत्री ‘क्रिस्टिया फ्रीलैंड’ द्वारा 16 दिसम्बर को उनके आर्थिक फैसलों की आलोचना करते हुए अपने पद से त्यागपत्र देने के बाद ‘जस्टिन ट्रूडो’ की स्थिति और कमजोर हो गई है।

बहरहाल, इस तरह के हालात में प्रधानमंत्री पद से उनके त्यागपत्र के बाद अब कनाडा में 24 मार्च तक संसद स्थगित रहेगी तथा उससे पहले ‘लिबरल पार्टी’ को अपना नेता और प्रधानमंत्री चुनने के लिए फैसला करना है। इसके लिए बुलाए जाने वाले विशेष सम्मेलन में कई नेताओं द्वारा दावेदारी पेश किए जाने की संभावना है। इनमें सबसे पहला नाम ‘क्रिस्टिया फ्रीलैंड’ का है और उसके बाद वर्तमान वित्त मंत्री ‘डोमिनिक लेब्लैंक’, परिवहन मंत्री ‘अनीता आनंद’, ‘बैंक ऑफ कनाडा’ के पूर्व प्रमुख ‘मार्क कार्नी’ व ‘फिलिप शैंपेन’ के नाम शामिल हैं। ‘जस्टिन ट्रूडो’ ने अपने कार्यकलापों से देश को जिस स्थिति में पहुंचा दिया है, उसमें यह तो होना ही था। हालांकि अगला प्रधानमंत्री चुने जाने तक वह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहेंगे परन्तु उनके त्यागपत्र को भारत के लिए एक अच्छा संकेत समझा जा रहा है तथा इससे दोनों देशों के संबंध पहले की भांति ही सामान्य होने की आशा जताई जा रही है।—विजय कुमार 


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