एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करके ‘इसरो’ ने रचा इतिहास

punjabkesari.in Wednesday, Feb 15, 2017 - 10:46 PM (IST)

15 अगस्त, 1969 को स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह डा. विक्रम साराभाई के अथक प्रयासों से गठित ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के वैज्ञानिकों ने अपनी मेहनत से भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी देश बना दिया है तथा यह आज विश्व के सबसे सफल अंतरिक्ष संगठनों में से एक बन गया है।

18 जुलाई, 1980 को भारत ने अपना प्रथम स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान ‘एस.एल.वी.-3’ प्रक्षेपित किया था। ‘एस.एल.वी.-3’ का प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक मील पत्थर था। इससे ‘इसरो’ के लिए अधिक तकनीकी क्षमता वाले उपग्रह प्रक्षेपणों का मार्ग प्रशस्त हुआ।22 अक्तूबर 2008 को भारत ने पहला ‘मिशन चंद्र यान’ शुरू करके चंद्र यान-1 का सफल  प्रक्षेपण किया। 5 नवम्बर, 2013 को ‘मंगल यान’  का सफल प्रक्षेपण किया गया। पहले ही प्रयास में इसमें सफल होने वाला भारत विश्व का पहला देश बना।

अप्रैल 2016 में मौसम, विमानन आदि क्षेत्रों में अधिक जानकारी देने में सक्षम अपना जी.पी.एस. उपग्रह प्रक्षेपित करके अपनी निजी नैवीगेशन प्रणाली कायम करने वाला भारत विश्व का पांचवां देश बना तथा उसी वर्ष जून में ‘इसरो’ ने एक ही रॉकेट से 20 उपग्रह प्रक्षेपित करके कीॢतमान बनाया। और अब 15 फरवरी को ‘इसरो’ ने श्री हरिकोटा प्रक्षेपण केंद्र से एक ही रॉकेट ‘पी.एस.एल.वी.-सी 37’ के माध्यम से ‘कार्टोसैट-2’ शृंखला के पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह सहित 103 ‘नैनो’ उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण करके इतिहास रचा है।

इस अभियान में भेजे गए 101 उपग्रह दूसरे देशों के तथा 3 उपग्रह भारत के हैं। सबसे पहले ‘कार्टोसैट-2’ श्रेणी के 714 किलो के उपग्रह को और इसके बाद शेष 103 ‘नैनो’ उपग्रहों को कक्षा में प्रवेश करवाया गया। इससे पूर्व एक साथ 37 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने का विश्व रिकार्ड रूस के नाम था व 29 प्रक्षेपास्त्र एक साथ प्रक्षेपित करने वाला अमरीका दूसरे स्थान पर था।

अत्याधुनिक ‘सैंसर’ से लैस ‘कार्टोसैट-2’ सीरीज का उपग्रह एक दूरसंवेदी उपग्रह है जिसका जीवनकाल 5 वर्ष है। यह भारत में विकास और रक्षा के क्षेत्र में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। आकाश से पृथ्वी के बेहतरीन चित्र लेने में सक्षम व ‘रिमोट सैंसिंग’ में लाजवाब इन उपग्रहों से भारत की ‘सैंसिंग’ क्षमता बढ़ेगी तथा देश की सीमाओं की निगरानी में इसके भेजे हुए चित्र उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

इससे विश्व के किसी भी कोने का सटीक हाल जाना जा सकेगा और इससे प्राप्त डाटा का इस्तेमाल सड़क निर्माण के कार्य पर निगरानी रखने, पृथ्वी के बेहतर इस्तेमाल और जल वितरण के लिए किया जाएगा। इन सारे कार्यकलापों के पीछे ‘इसरो’ का व्यापारिक पहलू भी है। इन सफलताओं से भारत विश्व में अरबों डालर वाले अंतरिक्ष बाजार में तेजी से प्रवेश कर गया है तथा 15 फरवरी को विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से इसे 100 करोड़ रुपए से अधिक की आय हुई है।

अभी तक भारत केवल छोटे और हल्के विदेशी उपग्रह ही लांच करता रहा है। यदि भारत अधिक बड़े उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने में सफल हो गया तो यह अरबों डालर वाॢषक की विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकता है। ‘इसरो’ की व्यापारिक इकाई को अभी तक 500 करोड़ रुपए के आर्डर मिल चुके हैं तथा 500 करोड़ रुपए के और आर्डरों पर बातचीत जारी है।

नि:संदेह अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत की सफलताएं ईष्र्याजनक हैं। ‘इसरो’ ने जहां अंतरिक्ष में एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करके भारत के गौरव में विश्व व्यापी वृद्धि की है वहीं इससे भारत की प्रतिरक्षा मजबूत करने में सहायता मिलने के अलावा भारत को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होगी जिसके लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक साधुवाद के पात्र हैं। —विजय कुमार 


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