महिला कैदियों के लिए ‘तिहाड़ की जेल नंबर 6’ बनी असल में ‘सुधार घर’
punjabkesari.in Tuesday, Jun 14, 2022 - 04:28 AM (IST)

9 जेलों पर आधारित नई दिल्ली की ‘तिहाड़ जेल’ दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा जेल परिसर है। इसे मुख्यत: एक ‘सुधार घर’ के रूप में विकसित किया गया था। इसका उद्देश्य जेल के अधिवासियों को दस्तकारी का प्रशिक्षण तथा सामान्य शिक्षा देकर कानून के आज्ञाकारी नागरिक बनाना है।
जेल में बंद महिला कैदियों को विभिन्न रोजगार केंद्रित हुनर सिखाए जा रहे हैं ताकि जेल से बाहर निकल कर वे नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू कर सकें। इसी के अंतर्गत लगभग 75 महिला कर्मचारियों के स्टाफ द्वारा नियंत्रित तिहाड़ की जेल नंबर ‘6’ आपसी सद्भाव की मिसाल पेश कर रही है। यहां रहते हुए 400 के लगभग बंदी महिलाएं पूर्णकालिक रसोई चला रही हैं और कैदियों के लिए भोजन बनाती हैं। रसोई घर में काम पर रखने से पूर्व इन्हें खाना पकाने का विधिवत प्रशिक्षण दिया जाता है और इनका दिन सुबह 6 बजे शुरू होता है।
जेल की डिप्टी सुपरिंटैंडैंट सुश्री किरण के अनुसार, ‘‘यहां ऐसा लगता ही नहीं कि हम अपराधियों के बीच काम कर रही हैं। अधिकांश महिला बंदियों ने अपना जीवन नए सिरे से शुरू किया है और जेल में अपना प्रवास सकारात्मक बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं।’’ एक अन्य उच्चाधिकारी रमन शर्मा के अनुसार,‘‘बेशक कभी-कभार छोटा-मोटा विवाद पैदा हो जाता है, परंतु यह सिद्ध हो गया है कि महिला स्टाफ द्वारा महिलाकैदियों को बेहतर ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है।’’ जेल नंबर ‘6’ में महिला बंदी जो प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं उसमें संगीत, कटिंग, टेलरिंग, नृत्य, योग और अचार बनाने की क्लासों के अलावा ब्यूटी पार्लर चलाना आदि भी शामिल है।
जेल के ‘इन-हाऊस ब्यूटी पार्लर’ में सब प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन एवं उपकरण उपलब्ध हैं जहां महिला बंदियों को थ्रैडिंग, पैडीक्योर और त्वचा की देखभाल आदि संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है। इन बंदी महिलाओं की अपनी दैनिक गतिविधियों में व्यस्तता के दौरान जेल का स्टाफ इनके बच्चों को जेल के क्रैच में संभालता है और 3 वर्ष की आयु से बड़े बच्चों को बुनियादी शिक्षा देनी शुरू कर दी जाती है। क्रैच में बच्चों के आध्यात्मिक और शारीरिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है तथा उनकी प्रगति एवं स्वास्थ्य आदि का जायजा लेने के लिए उनकी माताओं और कौंसलरों की बैठकें करवाई जाती हैं।
* धोखाधड़ी के आरोप में अपने पति सुकेश चंद्रशेखर के साथ तिहाड़ जेल में बंद अभिनेत्री और नृत्यांगना लीना मारिया पाल अमरूद स्कवैश, जैम, कस्टर्ड और जैली बनाना सीख रही है। वह फिट और स्वस्थ रहने के लिए योग भी करती है और ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ पर अन्य महिला कैदियों के साथ उसने सामूहिक नृत्य भी किया।
* अपहरण केस में जेल में बंद 37 वर्षीय पायल ने अपने खाली समय का इस्तेमाल कपड़ों की सिलाई और स्क्रीन प्रिटिंग का प्रशिक्षण लेने में किया और इन दोनों ही कलाओं में निपुणता प्राप्त कर ली। पहले वह हर समय अपने 11 वर्षीय बेटे और 8 वर्षीय बेटी के विषय में सोच कर परेशान होती रहती थी जो इस समय उसकी रिश्ते की बहन के पास रह रहे हैं। जेल के स्टाफ ने पायल की जमानत हो जाने या रिहा हो जाने के बाद दर्जी का काम शुरू करने के लिए उसकी सहायता करने का वायदा किया है।
* इसी प्रकार नशे के केस में आरोपी मारिया 4 महीनों से महिलाओं के कपड़ों की सिलाई और कटिंग का प्रशिक्षण ले रही है और इसमें निपुणता प्राप्त करने के बाद अब जेल से छूट कर बाहर जाने पर अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए पुरुषों के फैशन परिधानों की सिलाई में हाथ आजमाएगी।
* एक अन्य महिला बंदी 30 वर्षीय ग्लोरिया जेल में आयोजित पेंटिंग क्लासों में भाग लेकर अपने डिप्रैशन से मुक्ति पाने में सफल रही, जिससे वह 3 वर्षों से पीड़ित थी। ग्लोरिया का कहना है कि जेल से रिहाई के बाद वह नौकरी के साथ पार्ट टाइम व्यवसाय के रूप में पेंटिंग किया करेगी।
जेलों में बंद सजायाफ्ता और विचाराधीन महिला बंदियों को अपराध की दुनिया को तिलांजलि देकर व अपने पैरों पर खड़ी होकर सम्मानजनक जीवन बिताने में सहायता देने के लिए शुरू किया गया यह प्रयोग बहुत अच्छा है, परंतु देश की बहुत कम जेलों में ही ऐसे अभियान चलाए जा रहे हैं। लिहाजा इन प्रयासों को देश की सभी जेलों तक पहुंचाने की जरूरत है ताकि जेलों में बंद महिलाओं को रिहा होने के बाद फिर से अपराध की दुनिया में लौट जाने से रोका जा सके।—विजय कुमार