तीन सगी बहनों ने की आत्महत्या उजागर हुआ दहेज लोभियों का घिनौना चेहरा

punjabkesari.in Tuesday, May 31, 2022 - 03:55 AM (IST)

शादी-विवाहों में दहेज का लेन-देन ऐसी बुराई है जिससे बड़ी संख्या में परिवार तबाह हो रहे हैं क्योंकि शादी पर दहेज देने की मजबूरी में अनेक परिवार कर्ज में डूब जाते हैं। भारत में दहेज की कुप्रथा का अनुमान विश्व बैंक द्वारा कुछ वर्ष पूर्व देश के 17 राज्यों के ग्रामीण इलाकों में 40,000 शादियों के अध्ययन से लगाया जा सकता है, जिसमें कहा गया था कि 95 प्रतिशत विवाहों में दहेज दिया गया। 

दहेज के लिए महिलाओं को सताने के मामले में समाज का कोई भी वर्ग पीछे नहीं है। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड’ ब्यूरो के अनुसार भारत में सन् 2020 में दहेज के लिए प्रतिदिन औसतन 19 महिलाओं की हत्या की गई। उस वर्ष दहेज हिंसा के लगभग 10,500 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें 7045 महिलाओं की मौत हुई। दहेज का लेन-देन आधुनिक समाज के माथे पर एक कलंक का रूप धारण कर चुका है, जिसमें बेटियों के माता-पिता का सम्मान और ससुराल में उनकी सुरक्षा दहेज की मात्रा पर ही निर्भर करती है। प्राचीन परम्पराओं के नाम पर युवती के परिवार वालों पर दबाव डालने के लिए ससुरालियों द्वारा युवती को प्रताडि़त किया जाता है। 

दहेज के अभिशाप का एक दर्दनाक उदाहरण राजस्थान के ‘चापया’ गांव में तीन सगे भाइयों के साथ विवाहित तीन सगी बहनों द्वारा 25 मई को कुएं में छलांग लगा कर आत्महत्या के रूप में सामने आया। इन तीन बहनों में से दोनों छोटी बहनें गर्भवती थीं जबकि सबसे बड़ी 27 वर्षीय बहन के साथ उसके दो बच्चों की भी मृत्यु हो गई जिनमें से एक की आयु 4 वर्ष व दूसरे की मात्र 22 दिन थी। आत्महत्या करने वाली बहनों में से सबसे छोटी और मोटरसाइकिल चलाने की शौकीन तथा सेना में भर्ती होने की इच्छुक युवती ने व्हाट्सएप पर छोड़े संदेशों में अपनी पीड़ा और यातना व्यक्त करते हुए लिखा :

‘‘हम दुनिया से जा रही हैं। अब सब लोग खुश हो जाएंगे। हमारी मौत का कारण हमारे ससुराल वाले हैं। रोज-रोज मरने की बजाय एक बार मरना अच्छा है। प्रभु जी, कृपा करके हम तीनों को फिर एक ही घर में जन्म देना। मेरा अपने परिवार वालों से अनुरोध है कि कृपया हमारी चिंता न करें।’’इसके 19 मिनट बाद उसने एक और व्हाट्सएप मैसेज लिखा, ‘‘हम मरना नहीं चाहतीं, लेकिन ससुराल वालों का उत्पीडऩ सहने की अपेक्षा यह मौत बेहतर है। इसमें हमारे माता-पिता का कोई दोष नहीं।’’आत्महत्या करने वाली तीनों बहनों का पिता एक भूमिहीन मजदूर है, जिसकी तीन और बेटियां हैं। उसने अपनी तीनों बेटियों को सीमित साधनों के बावजूद उच्च शिक्षा दिलाई और उनकी शादी एक अमीर परिवार में इस आशा से की थी कि वहां तीनों खुश रहेंगी, पर हुआ इसके विपरीत। 

सबसे बड़ी बेटी को तो उसके पति ने कई बार इतनी बुरी तरह पीटा कि उसे कई-कई दिन अस्पताल में रहना पड़ा। पिटाई से तंग आकर कई बार वह मायके वापस आई, परंतु हर बार उसे समझा कर वापस भेज दिया जाता। उसके पिता ने रोते हुए कहा, ‘‘इसके लिए मैं ही दोषी हूं क्योंकि मैंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई। यदि मैंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई होती तो शायद मेरी बेटियां जीवित होतीं।’’ राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार अधिकांशत: महिलाओं पर उनके अपने ही क्रूरता करते हैं, जिनमें उनके पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के मामलों की संख्या 2020 में 30.9 प्रतिशत के लगभग थी। 

1961 के बाद से अब तक दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए न जाने कितने कानून और नियम बनाए जा चुके हैं परंतु उनमें से कोई भी प्रभावशाली सिद्ध नहीं हुआ। आश्चर्य की बात तो यह है कि पढ़े-लिखे लोग भी दूसरे की कमाई हासिल करने के लिए नि:संकोच दहेज की मांग करते व लेते हैं। इस तरह की घटनाओं को देख कर लगता ही नहीं है कि यह 21वीं सदी का भारत है। अत: इस कलंक को मिटाने के लिए जहां सरकार को दहेज निरोधक कानून सख्ती से लागू करने व दहेज हत्याओं और आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों को यथाशीघ्र और कठोरतम दंड देने की जरूरत है, वहीं इसके लिए समाज को अपनी सोच व नजरिया बदलना तथा बेटियों को अच्छी शिक्षा देकर उन्हें आॢथक रूप से सक्षम बनाना भी जरूरी है। 

किसी सीमा तक पीड़ित युवतियों के माता-पिता भी दोषी हैं, जो विभिन्न कारणों से उन पर होने वाले अत्याचारों की ओर से आंखें मूंदे रहते हैं। अत: केंद्र और राज्य सरकारों को गैर सरकारी संगठनों के साथ मिल कर दहेज की कुप्रथा के विरुद्ध समाज, विशेषकर युवाओं में जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान चलाना चाहिए।—विजय कुमार 


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