पाकिस्तान में चल रहे हजारों स्कूल खुले आकाश की छत के नीचे

Sunday, Apr 16, 2017 - 11:43 PM (IST)

जहां पाकिस्तान सरकार भारत के विरुद्ध लगातार छद्म युद्ध जारी रख कर और अपने पाले हुए आतंकवादियों की भारत में घुसपैठ करवा कर यहां तोड़-फोड़ करवा रही है, वहीं कश्मीर घाटी में सक्रिय पाक समर्थक अलगाववादी समय-समय पर पाकिस्तान की शह पर घाटी में प्रदर्शन का कार्यक्रम जारी करके और शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई रुकवा कर घाटी की युवा पीढ़ी को अनपढ़ रहने के लिए विवश कर रहे हैं। 

बेशक पाकिस्तानी शासकों ने कश्मीर घाटी में सक्रिय अपने अलगाववादी समर्थकों के माध्यम से यहां अशांति और अव्यवस्था फैलाने में कोई कसर नहीं उठा रखी परंतु उन्होंने इस तथ्य की ओर से आंखें मूंद रखी हैं कि स्वयं उनके देश में आतंकवादियों की वजह से सारा सामाजिक और राजनीतिक ढांचा चरमराने के साथ-साथ शिक्षा का किस कदर बुरा हाल हो चुका है। यहां तक कि पाकिस्तान में लड़कियों को शिक्षा से वंचित करने के जेहादियों के अभियान का विरोध करने पर 2012 में तालिबान लड़ाकों द्वारा गंभीर रूप से घायल कर दी गई मलाला युसूफजई आज विश्व में नारी शिक्षा की ध्वजारोही के रूप में उभरी है और तालिबानी हमले के बाद अपनी दूसरी जिंदगी में खास कर विदेश में रहते हुए लड़कियों की शिक्षा के लिए काम कर रही है परंतु उसके अपने देश पाकिस्तान में शिक्षा की हालत बहुत खराब है। 

‘एजुकेशन टास्क फोर्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘पाकिस्तान में 5 से 16 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 45 प्रतिशत बच्चे अभी भी स्कूल नहीं जाते और वहां 5.12 करोड़ में से 2.26 करोड़ बच्चों का स्कूलों में नाम तक दर्ज नहीं हुआ है।’’ इसी रिपोर्ट में बताया गया कि ‘‘पाकिस्तान में 30 हजार से अधिक स्कूली इमारतों की हालत काफी खराब है जबकि 21,000 से अधिक स्कूल खुले आसमान के नीचे चल रहे हैं और अनेक स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं।’’ 

टास्क फोर्स ने सलाह दी थी कि ‘‘पाकिस्तान में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के स्तर से लेकर स्कूल के अध्यापकों के स्तर तक सबको मिलकर शिक्षा का एक ऐसा तंत्र बनाना चाहिए जिससे नई पीढ़ी को लाभ हो’’ परंतु लगता है कि पाकिस्तान सरकार ऐसा कुछ भी करने में असफल रही है। इसका संकेत ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ (एच.आर.डब्ल्यू.) नामक एन.जी.ओ. ने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट सशीर्षक ‘ड्रीम्स टन्र्ड इनटू नाइटमेयर्स: अटैक्स ऑन स्टूडैंट्स, टीचर्स एंड स्कूल्स इन पाकिस्तान’ (स्वप्र बन गए दु:स्वप्र: पाकिस्तान में छात्रों, अध्यापकों और स्कूलों पर हमले) से मिलता है जिसमें पाकिस्तान के शिक्षा ढांचे की बदहाली की तस्वीर पेश की गई है। 

इसके अनुसार तालिबानों तथा अन्य आतंकवादी गिरोहों ने वहां शिक्षा के ढांचे पर विनाशकारी प्रभाव डाला है। वहां 2 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूलों में पढऩे नहीं जाते तथा लगभग 1.20 करोड़ लड़कियां और 1 करोड़ लड़के शिक्षा से वंचित हैं। इसी कारण पाकिस्तान में शिक्षा की स्थिति को देखते हुए वहां 2011 का वर्ष ‘शिक्षा की एमरजैंसी का वर्ष’ के रूप में मनाया गया था। इसके बावजूद वहां स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इस संबंधी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2007 में तालिबानों द्वारा खैबर पख्तूनख्वा के एक हिस्से पर कब्जा कर लेने के बाद लड़कियों के 900 से अधिक स्कूल बंद करवा दिए गए जिससे 1,20,000 से अधिक लड़कियां स्कूल छोडऩे को विवश हो गईं और 8,000 से अधिक अध्यापिकाओं की नौकरी से छुट्टी कर दी गई। 

इस रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानी सेना द्वारा तालिबानों को खदेड़ देने के बाद भी लड़कियां स्कूलों को वापस नहीं लौटीं तथा शिक्षा संस्थानों पर आतंकवादियों के हमलों और इनमें मरने वालों के संबंध में आंकड़े एकत्रित करने में भी पाकिस्तान सरकार असफल रही। इस रिपोर्ट में पाकिस्तान में क्षतिग्रस्त स्कूलों की मुरम्मत करवाने और शिक्षा संस्थानों की सुरक्षा संबंधी उपाय तलाशने या शिक्षा संस्थानों की बदहाली के लिए जिम्मेदार लोगों की शिनाख्त करने और उन्हें सजा दिलवाने में असफल रहने के लिए पाकिस्तान सरकार की आलोचना की गई है। 

पाकिस्तान में शिक्षा की यह स्थिति भविष्य की एक भयावह तस्वीर पेश करती है। शिक्षा के अभाव में पाकिस्तान की युवा पीढ़ी की बहुसंख्या के अनपढ़ रह जाने का अंदेशा है। पहले से ही आर्थिक संकट के शिकार पाकिस्तान में बेरोजगारी, अपराधों, हिंसा तथा आतंकवाद को उससे बढ़ावा मिलेगा जिससे अंतत: पाकिस्तान को ही हानि होगी।                              

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