देश के हजारों सरकारी स्कूलों में शौचालय, पेयजल, अध्यापक और बिजली तक नहीं

Tuesday, May 30, 2023 - 04:44 AM (IST)

इस समय देश के सरकारी स्कूलों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनमें घटिया बुनियादी ढांचा, शौचालयों की कमी, फंड की कमी और प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी आदि मुख्य हैं। प्राथमिक स्तर पर 30 छात्रों पर 1 तथा उच्च कक्षाओं में 35 छात्रों पर 1 अध्यापक का अनुपात आदर्श माना गया है जबकि स्थिति इससे कहीं अलग है। 

एक रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल प्रदेश के 15,313 सरकारी स्कूलों में से 12 प्राइमरी सरकारी स्कूलों में एक भी अध्यापक नहीं है, जबकि 51 सैकेंडरी स्कूलों में केवल 1;  416 स्कूलों में 2; 773 स्कूलों में 3 तथा 701 स्कूलों में 4 से 6 अध्यापकों से काम चलाया जा रहा है। प्रदेश के हायर सैकेंडरी स्कूल भी अध्यापकों की कमी से जूझ रहे हैंं। 

हिमाचल प्रदेश के 7 प्राइमरी स्कूलों में एक भी कमरा नहीं है, जबकि 338 स्कूल 1 कमरे में, 2495 स्कूल 2-2 कमरों में तथा 4111 स्कूल 3-3 कमरों में चल रहे हैं। सैकेंडरी स्तर के 3 स्कूल एक भी कमरे के बगैर हैं जबकि 216 स्कूलों में केवल 1-1; 241 स्कूलों में 2-2; 1111 स्कूलों में 3-3 तथा 352 स्कूलों में 4 से 6 कमरे ही हैं। हरियाणा के 538 सरकारी स्कूलों में लड़कियों तथा 1047 सरकारी स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय नहीं हैं। राज्य के 131 सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है, 236 स्कूलों में बिजली का भी कनैक्शन नहीं है तथा राज्य के 321 सरकारी स्कूल चारदीवारी के बगैर हैं। 

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार से मांगी गई जानकारी के जवाब में उक्त विवरण अदालत में देते हुए राज्य के सैकेंडरी शिक्षा विभाग के निदेशक डा. अनसज सिंह ने कहा कि राज्य के सरकारी स्कूलों में इस समय 8240 नए क्लासरूमों तथा साइंस लैबोरेटरियों, कम्प्यूटर रूमों और स्टाफ आदि के लिए 5630 अन्य कमरों की तुरंत जरूरत है। राज्य के सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढांचे की जरूरतें पूरी करने के लिए राज्य सरकार को लगभग 1784.03 करोड़ रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में इस मद के लिए केवल 424.22 करोड़ रुपए ही उपलब्ध हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि 131 स्कूलों में ताजा पेयजल सुविधाओं तथा लड़के-लड़कियों के लिए 1585 शौचालयों का प्रबंध वर्तमान वित्तीय वर्ष के भीतर कर दिया जाएगा। 

उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि प्रत्येक वित्तीय वर्ष के शिक्षा बजट की कुल रकम का लगभग 1 प्रतिशत हिस्सा ही स्कूलों में निर्माण कार्यों के लिए रखा जाता है, अत: वर्तमान आबंटित रकम के अनुसार विभाग बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने और स्कूली इमारतों की मुरम्मत पर किया जाने वाला खर्च निकाल कर प्रति वर्ष 1400 कमरे ही बनवा पाएगा। मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में भी बुनयादी सुविधाओं की भारी कमी है। राज्य के शिक्षा मंत्री इंद्र सिंह परमार के अनुसार राज्य के 6610 से अधिक सरकारी प्राइमरी तथा मिडल स्कूलों में शौचालयों की और 1336 स्कूलों में पीने के पानी के लिए हैंड पम्प तक की व्यवस्था नहीं है तथा 83,239 स्कूलों में से 50,417 (60 प्रतिशत) स्कूलों में चारदीवारी ही नहीं है। 

ये तो मात्र 3 राज्यों के सरकारी स्कूलों के आंकड़े हैं जबकि देश के दूसरे राज्यों के सरकारी स्कूलों की दशा भी इनसे मिलती-जुलती ही होगी। प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई महंगी होने के कारण आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों में ही शिक्षा प्राप्त करते हैं, अत: वहां बुनियादी सुविधाओं में सुधार करना जरूरी है, ताकि उनमें पढऩे वाले बच्चों की शिक्षा की बुनियाद कमजोर न रह जाए।—विजय कुमार 

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