कांग्रेस में उठ रहे असंतोष के ये स्वर ‘बगावत’ नहीं ‘जगावत’ हैं

Tuesday, Sep 08, 2020 - 03:45 AM (IST)

केंद्र और राज्यों के चुनावों में लगातार हार रही कांग्रेस पार्टी अपने शीर्ष नेतृत्व की कथित निर्णयहीनता और जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा के कारण उपहास का पात्र बनती जा रही है। इस पर रोष व्यक्त करते हुए 23 अगस्त को गुलाम नबी आजाद, जितिन प्रसाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजेंद्र कौर भट्ठल, वीरप्पा मोइली, पृथ्वी राज चव्हाण, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर आदि सहित कुल 23 वरिष्ठ नेताओं ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे पत्र में पार्टी में सामूहिक नेतृत्व की आवश्यकता पर जोर दिया था। 

पार्टी का पूर्णकालिक सक्रिय अध्यक्ष नियुक्त करने एवं संगठन में आमूल-चूल बदलाव की मांग करने वाले उक्त पत्र से पार्टी में मचे बवंडर के बाद हालांकि 24 अगस्त को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने 6 महीने तक पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहने का पार्टी नेताओं के एक वर्ग का अनुरोध स्वीकार करके उन्हें इस दौरान नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा था परंतु पार्टी में जारी सुगबुगाहट अभी समाप्त नहीं हुई। 

अब 5 सितम्बर को कांग्रेस से निष्कासित उत्तर प्रदेश के 9 नेताओं द्वारा सोनिया को लिखा पत्र सार्वजनिक हुआ है जिसमें उनसे,‘‘परिवार के मोह से ऊपर उठ कर काम करने, पार्टी की लोकतांत्रिक परम्परा बहाल करने और पार्टी को इतिहास का हिस्सा बनने से बचाने’’ की विनती की गई है। पूर्व सांसद संतोष सिंह, पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी, पूर्व विधायक विनोद चौधरी, भूधर नारायण मिश्रा, नेक चंद पांडे, स्वयं प्रकाश गोस्वामी, संजीव सिंह व अन्य के हस्ताक्षर वाले पत्र में उत्तर प्रदेश की प्रभारी तथा पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी का नाम लिए बिना कहा गया है कि : 

‘‘इस समय पार्टी राज्य में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। वेतन के आधार पर काम करने वाले नेताओं का पार्टी पर कब्जा है। हम लगभग एक वर्ष से आपसे मिलने के लिए समय मांग रहे हैं, परंतु मना कर दिया जाता है।’’ हालांकि जिन लोगों ने दूसरा पत्र लिखा है उनमें कोई बड़े नाम नहीं हैं परंतु वे कांग्रेस के निष्ठवान कार्यकत्र्ता तो हैं ही और उक्त दोनों पत्र पार्टी में व्याप्त संवादहीनता को उजागर करते हैं जिस कारण पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं से कट कर गिने-चुने लोगों तक ही सिमटता जा रहा है। असहमति व्यक्त करने वालों की आवाज नहीं सुनी जाती और उन्हें ‘बागी’ ठहरा कर दरकिनार कर दिया जाता है। यही कारण है कि उक्त पत्रों के बाद पार्टी दो खेमों में बंटी नजर आने लगी है तथा कांग्रेस नेतृत्व ने असंतुष्टों के पर कतरने की कवायद भी शुरू कर दी है। 

इसी कारण लोकसभा में पार्टी की मुखर आवाज रहे शशि थरूर व मनीष तिवारी की अनदेखी करके युवा गौरव गोगोई को लोकसभा में उपनेता बना दिया गया तथा राज्यसभा में पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद व उपनेता आनंद शर्मा का प्रभाव कम करने के लिए सोनिया के करीबी जयराम रमेश को मुख्य सचेतक बना दिया गया है। इसी प्रकार जितिन प्रसाद और राज बब्बर को उत्तर प्रदेश के लिए घोषित कांग्रेस की चुनाव समितियों से बाहर कर दिया गया है। इसी परिप्रेक्ष्य में जहां कपिल सिब्बल कांग्रेस नेतृत्व को अपने लोगों पर नहीं भाजपा पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की सलाह दे चुके हैं वहीं गुलाम नबी आजाद ने भी चेतावनी दी है कि ‘‘पार्टी के चुनाव न करवाने पर पार्टी अगले 50 वर्षों तक विपक्ष में ही बैठेगी।’’ 

अपनों से ही दूर होती चली जाने के कारण जहां कांग्रेस पार्टी में ऊपर से नीचे तक असंतोष व्याप्त है वहीं विरोधी दलों के सूझवान नेता और बुद्धिजीवी भी कांग्रेस के इस हश्र से दुखी हैं क्योंकि उनका भी मानना है कि देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है जो सिर्र्फ कांग्रेस ही उपलब्ध करवा सकती है और इसके लिए कांग्रेस को पुनर्जीवित करना होगा। इसीलिए पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के विरुद्ध ‘क्रोध’ करने या उनके विरुद्ध ‘बदलाखोरी’ की कार्रवाई करने की नहीं बल्कि पार्टी का एक पूर्णकालकि और सक्रिय अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारी नियुक्त करने की जरूरत है। 

यदि जल्दी ही पार्टी के चुनाव कराने और राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के लिए खड़ा करने की घोषणा कर दी जाए तो अव्वल तो कोई उनके मुकाबले पर खड़ा नहीं होगा और यदि होगा भी तो या तो वह अंतिम समय पर अपना नाम वापस ले लेगा और चुनाव लड़ेगा भी तो उसके जीतने की संभावना कम होगी और यदि वह जीत भी जाए तो उसकी लोकप्रियता तथा पार्टी में प्राप्त समर्थन और क्षमता का पता चल जाएगा। पार्टी के वर्तमान या पूर्व सदस्यों द्वारा लिखित पत्रों को एक ‘बगावत’ के रूप में नहीं बल्कि ‘जगावत’ के रूप में ही लेना चाहिए क्योंकि यह पार्टी को बर्बाद करने वाला कोई ‘बम’ नहीं बल्कि एक ‘पटाखा’ है जिसे फोडऩे वालों ने अपनी ही पार्टी के नेतृत्व को नींद से जगाने की कोशिश की है कि,‘‘जागो, नाराजगी की आवाजों को सुनो और पार्टी को तबाह-बर्बाद होने से बचा कर देश को एक मजबूत विपक्ष प्रदान करो!’’-विजय कुमार

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