धर्म की आड़ लेकर मानवता को शर्मसार करने वालों को आईना दिखा रहे ये भारतीय

Wednesday, May 30, 2018 - 03:14 AM (IST)

मुसलमानों में रमजान के महीने को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस महीने में मुस्लिम भाईचारे के सदस्य रोजे रखने के अलावा इबादत करते हैं तथा मित्रों, सगे-संबंधियों से मिल कर प्रेम और भाईचारे का संदेश देते हैं। इस महीने में हिंसा पूर्णत: निषिद्ध है और माना जाता है कि इस महीने में किए गए नेक कामों का फल कई गुणा बढ़कर मिलता है। 

रमजान के पवित्र महीने को देखते हुए ही भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सक्रिय पाक समर्थित आतंकवादियों के विरुद्ध ‘सीज फायर’ कर रखा है फिर भी पाकिस्तानी सेना व आतंकियों द्वारा वहां लगातार रक्तपात जारी है। एक ओर तो आतंकवादी रमजान के पवित्र महीने में निर्दोषों का खून बहा रहे हैं और दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जो रमजान के पवित्र महीने में दूसरों के दुख दूर कर भाईचारे और अपनेपन के उदाहरण पेश कर रहे हैं। 

21 मई को देहरादून के रहने वाले आरिफ ने जब अपना ‘व्हाट्स एप’ चैक किया तो उन्होंने एक मैसेज देखा जिसमें लिखा था कि एक अस्पताल के आई.सी.यू. में उपचाराधीन ‘अजय बिजलवान’ को ‘ए पॉजिटिव ग्रुप’ के खून की तत्काल जरूरत है जिसके न मिलने पर उसकी जान जा सकती है। मैसेज पढ़ कर आरिफ ने अस्पताल से संपर्क किया तो डाक्टरों ने कहा कि खून देने के लिए उन्हें रोजा तोड़ कर नाश्ता करना होगा। आरिफ खान ने रोजा तोड़ कर खून दिया और अजय की जान बचा ली। 

23 मई को बिहार के गोपालगंज में जब थैलेसीमिया से पीड़ित एक हिन्दू बच्चे की तबीयत खराब होने पर ब्लड बैंक में उसके ग्रुप का रक्त न होने से समस्या पैदा हो गई तो पता चलने पर जावेद आलम नामक युवक आगे आया परंतु रोजे पर होने के कारण डाक्टर द्वारा रक्त लेने से इंकार करने पर जावेद ने रोजा तोड़ दिया और रक्तदान करके बच्चे की जान बचाई। 28 मई को बिहार के दरभंगा में गंभीर रूप से बीमार 2 दिन के नवजात हिन्दू बालक का ब्लड ग्रुप ओ नैगेटिव विरल होने के कारण उसके अभिभावकों के तमाम प्रयासों के बावजूद खून नहीं मिलने की सूचना फेसबुक पर पढ़ कर मोहम्मद अशफाक नामक युवक फौरन दरभंगा के अस्पताल में पहुंच गया और जब डाक्टरों ने उसका खून लेने से मना कर दिया तो अशफाक ने भी रोजा तोड़ कर रक्तदान करके बच्चे की जान बचाई। 

मोहब्बत और भाईचारे की एक मिसाल जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में भी देखने को मिली है जहां 21 सैकेंड के वायरल हुए एक वीडियो में एक सिख बुजुर्ग ढोल बजा कर अपने मुसलमान पड़ोसियों को ‘सहरी’ (सुबह का व्रत आरंभ) के लिए जगाते हुए दिखाई दे रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो में यह सिख बुजुर्ग कह रहा है, ‘‘अल्लाह रसूल दे प्यारो, जन्नत दे तलबगारो, उठो रोजा रखो।’’ उल्लेखनीय है कि अलार्म के रूप में ढोल बजाने का कार्य आमतौर पर मुसलमानों द्वारा किया जाता है और उस व्यक्ति को ‘सहर खान’ कहा जाता है। ये लोग जगह-जगह ढोल बजा कर सहरी के समय का ऐलान करते हैं। 

भाईचारे की उक्त मिसालों के बीच एक मिसाल देश की सर्वाधिक भीड़ भरी तिहाड़ जेल के कैदियों ने भी पेश की है जहां कैद काट रहे 2299 मुसलमान कैदियों के साथ 59 हिन्दू कैदी भी रोजा रख रहे हैं। इस समय जबकि पाकिस्तानी सेना व जम्मू-कश्मीर में सक्रिय उसके पाले हुए आतंकवादी रमजान के पवित्र महीने में भी रक्तपात करके मानवता को दागदार कर रहे हैं, भाईचारे के उक्त उदाहरण अकाट्य प्रमाण हैं कि समाज को धर्म के आधार पर बांटने की स्वार्थी तत्वों की कोशिशें कभी सफल नहीं हो सकतीं। अंतत: ऐसे तत्वों को मुंह की ही खानी पड़ेगी और भारत का ‘सर्वधर्म समभाव’ स्वरूप इसी तरह कायम रहेगा।—विजय कुमार 

Pardeep

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