भाइयों की रक्षा के लिए बहनों ने अपनी किडनियां दीं और भाइयों ने बनवाकर दिए शौचालय

Wednesday, Aug 09, 2017 - 01:12 AM (IST)

देश भर में 7 अगस्त को भाई-बहन के स्नेह का पर्व रक्षा बंधन मनाया गया। यह पर्व जहां भाई-बहन के अटूट प्रेम और पवित्र रिश्ते का प्रतीक है वहीं भाई अपनी बहन की जीवन भर रक्षा करने का संकल्प लेता है और बहन भी भाई के जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली की कामना करती है। 

हां, अपवाद स्वरूप कुछ भाई-बहन ऐसे उपहार देते हैं जो लेने वाले को जिंदगी भर उसकी याद दिलाते रहें। इस बार रक्षा बंधन पर भी कुछ भाई-बहनों ने ऐसे ही उपहारों का आदान-प्रदान किया जो एक मिसाल बन गए हैं व कुछ बहनों ने तो भाइयों की रक्षा के लिए जान की बाजी तक लगा दी है। आगरा की वंदना चंद्रा (48) ने रक्षा बंधन पर अपने छोटे भाई विवेक (36) को अपनी एक किडनी देकर उसे नया जीवन दिया है। विवेक की किडनियां खराब हो गई थीं और जब उसे कोई दानी न मिला तो वंदना ने अपनी किडनी देकर उसकी जान बचाई और अस्पताल से छुट्टïी मिलने पर सोमवार को उसे राखी बांधी। 

इसी प्रकार शिमला निवासी रीटा देवी (37) ने अपने छोटे भाई सुरेंद्र (35) की जान बचाने के लिए रक्षा बंधन से एक दिन पूर्व उसे अपनी एक किडनी दी और रविवार को मोहाली के एक अस्पताल में सुरेंद्र को किडनी का प्रत्यारोपण कर दिया गया। रीटा देवी और सुरेंद्र के आपसी स्नेह से प्रभावित अस्पताल के प्रबंधकों ने सफल आप्रेशन के बाद एक छोटे से समारोह का आयोजन भी किया। नजफगढ़ के झाड़ौदा कलां गांव के शाम लाल की भी दोनों किडनियां खराब हो गई थीं। कोई दानी न मिला तो उनकी अविवाहित बहन सुशीला ने घर वालों को बताए बिना अस्पताल में अपना ‘किडनी डोनेशन टैस्ट’ करवाया और रिपोर्ट पॉजीटिव आने पर अपना फैसला सुना दिया कि भाई द्वारा किडनी प्रत्यारोपण करवा लेने के बाद ही उसे राखी बांधेगी। अंतत: सुशीला की जिद के आगे झुकते हुए परिवार वालों की सहमति से शाम लाल के शरीर में उनकी बहन की किडनी प्रत्यारोपित कर दी गई और शाम लाल ने राखी के दिन कहा, ‘‘मेरी बहन ने मुझे नई जिंदगी दी है उसके बदले में मैं उसे जो भी तोहफा दूं वह कम ही होगा।’’ 

ऐसा ही तोहफा बहलोलपुर निवासी राकेश श्रीवास्तव (50) को उनकी छोटी बहन पूनम ने भी दिया तथा अपने भाई की जान बचा कर अपने मायके परिवार की खुशियां दोगुनी कर दीं। रक्षा बंधन पर मायके आई पूनम के अनुसार, ‘‘जिस भाई के प्यार-दुलार और स्नेह के बीच मैं पली-बढ़ी, उसकी जान बचाने के लिए इससे बेहतर कुछ और नहीं हो सकता था।’’ इसी शृंखला में हैदराबाद में तेलंगाना राष्ट्र समिति की सांसद के. कविता ने अपने भाई एवं मंत्री के.टी. रामाराव को रक्षा बंधन के अवसर पर सड़क दुर्घटनाओं में दोपहिया वाहन सवारों की होने वाली मौतों की ओर लोगों का ध्यान आकॢषत करने के लिए शुरू किए गए अपने अभियान ‘रक्षाबंधन पर भाई को हैल्मेट भेंट करें’ के अंतर्गत हैल्मेट भेंट किया। 

जहां कुछ बहनों ने इस रक्षा बंधन पर भाइयों को इस तरह के उपहार दिए तो कुछ भाइयों ने भी अपनी बहनों के लिए शौचालय बनवाकर दिए। वाराणसी के अशोक कुमार पटेल कुछ दिन पूर्व जब अपनी बहन सुनीता के ससुराल गए तो अपनी बहन और पूरे परिवार को शौच के लिए डेढ़ किलोमीटर दूर खुले में जाते देख उन्होंने एक संकल्प कर लिया। वह इस राखी से कुछ दिन पहले बहन के घर आ गए और अपने खर्च पर शौचालय बनवा कर रक्षा बंधन के दिन बहन को भेंट कर दिया। बिहार के सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह की बहन डॉ. कामिनी सिंह जो भारत-तिब्बत पुलिस में सेवारत हैं, इस रक्षा बंधन पर जब अपने मायके मोतीहारी आईं तो उन्हें यह देख कर बहुत पीड़ा हुई कि यहां की कुछ दलित बस्तियों में हर घर में शौचालय का सपना पूरा नहीं हो पाया है। 

लिहाजा उन्होंने अपने भाइयों को राखी बांधते समय उनसे यह वादा लिया कि अगले रक्षा बंधन तक वे उन दलित बस्तियों के प्रत्येक घर में शौचालय बनवा देंगे जिस पर उन्होंने सहमति व्यक्त कर दी। रक्षा बंधन के इस पावन पर्व पर और भी न जाने कितने भाई-बहनों ने इस प्रकार के अद्भुत उपहारों का आदान-प्रदान किया होगा जिनमें से कुछ उक्त उदाहरण हमें प्राप्त हुए हैं। परस्पर स्नेह और सम्मान के ये उदाहरण इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि आज के दूषित हो रहे वातावरण में भी हमारे प्राचीन उच्च संस्कार जीवित हैं और आज भी बहनों और भाइयों के लिए एक-दूसरे की खुशी ही सर्वोपरि है और यही रक्षा बंधन का वास्तविक स्वरूप है।—विजय कुमार 

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