विश्व को परमाणु शस्त्र-विहीन करने का समय आ चुका है

Sunday, Jul 09, 2017 - 10:00 PM (IST)

यह बात आश्चर्यजनक है कि इंगलैंड, अमरीका और रूस के साथ-साथ भारत, पाकिस्तान और चीन एक नीति पर सहमत हैं परंतु जरूरी नहीं है कि यह कोई अच्छा समाचार ही हो। 7 दशक में पहली बार परमाणु युद्ध टालने का एक प्रयास किया गया है। इस बारे 7 जुलाई को हैम्बर्ग (जर्मनी) में संयुक्त राष्ट्र मंडल में सम्पन्न वार्ता में विचार-विमर्श के अंतिम सत्र में जो दस्तावेज प्रस्तावित किया गया उसका नाम है ‘परमाणु शस्त्र निषेध संधि’। 

इस नई संधि के अनुसार परमाणु शस्त्रों के इस्तेमाल, इस्तेमाल की धमकी, निर्माण संबंधी परीक्षण, उत्पादन, अपने पास रखने, दूसरों को हस्तांतरित करने और इनकी तैनाती को अवैध करार देना वांछित है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से 122 सदस्य देश इस प्रतिबंध पर सहमत हैं परंतु सिवाय नीदरलैंड्स के, जिसने अपने भू-क्षेत्र में तैनात अमरीकी परमाणु शस्त्रों का प्रयोग न करने और इनको हटाने पर सहमति व्यक्त की है, अन्य सभी परमाणु देशों और नाटो सदस्यों ने इसका बहिष्कार किया। लिहाजा परमाणु शस्त्रों से सम्पन्न सभी देश-अमरीका, रूस, इंगलैंड, चीन, फ्रांस, भारत, पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया और इसराईल-इस संधि का समर्थन नहीं कर रहे हैं। 

वास्तव में इन परमाणु शक्तियों ने इस मुद्दे पर सौदेबाजी नहीं की बल्कि इसकी बजाय अमरीका तो लगभग आधी शताब्दी पुराने परमाणु अप्रसार संधि को मजबूत करना और इसका अनुमोदन करना चाहता है ताकि 5 मूल परमाणु शस्त्र सम्पन्न शक्तियों अमरीका, रूस, इंगलैंड, फ्रांस और चीन के बाद अन्य देशों में इसका प्रसार रोका जा सके। ऐसे में भारत, पाकिस्तान और इसराईल दुविधा में हैं। रूस और अमरीका जिनके पास विश्व के कुल परमाणु शस्त्रागार का 88 प्रतिशत जखीरा जमा है और यदि पुन: एक्टिवेट किए जाने योग्य परमाणु हथियारों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो यह मात्रा 93 प्रतिशत से भी बढ़ जाती है। 

हालांकि परमाणु निषेध संधि विश्व की पहली बहुपक्षीय परमाणु नि:शस्त्रीकरण  संधि है और इसे भी इस पड़ाव तक पहुंचने में 20 वर्ष लग गए, इसे सितम्बर में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र मंडल की बैठक में हस्ताक्षरों के लिए रखा जाएगा और सभी देशों के प्रतिनिधियों द्वारा इसके अनुमोदन के बाद यह प्रभावी होगी। परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के इस तर्क का जवाब देते हुए कि उन्हें प्रतिरक्षा के उद्देश्यों के लिए परमाणु शस्त्र रखने की आवश्यकता है। इस संबंध में परमाणु हथियारों की समाप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियान की संचालिका बीट्रिस फिन  का कहना है कि विश्व भर में 15,000 परमाणु हथियार भी प्योनग्यांग को उसकी परमाणु महत्वाकांक्षाओं से हटा नहीं सके हैं। 

अमरीका ने उत्तरी कोरिया द्वारा हाल ही के परमाणु विस्फोट का हवाला देते हुए कहा है कि संधि में आत्मरक्षा के लिए एक अवरोधक के रूप में इसे ध्यान में नहीं रखा गया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर 2 परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों का पड़ोसी भारत पुन: सहमत है। इस बात की क्या गारंटी है कि पाकिस्तान और चीन के नि:शस्त्रीकरण की निगरानी पूरी तरह प्रभावी होगी। परंतु ऐसा विश्वास किया जाता है कि परमाणु निषेध के समर्थन द्वारा एक प्रयास करना होगा-अब जबकि विश्व में मौजूद 14,900 परमाणु शस्त्र हमारे विश्व को कई बार तबाह करने के लिए काफी हैं, हमें शांति को एक अवसर देने की आवश्यकता है। 

श्रीमती फिन के अनुसार, ‘‘हमने 45 वर्ष पूर्व जैविकीय हथियारों पर प्रतिबंध लगा दिया था और 25 वर्ष पूर्व रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध लगा दिया और 2 वर्षों के भीतर परमाणु प्रसार संधि को एक अंतर्राष्ट्रीय कानून बनाने के लिए 50 देशों की पुष्टिï की आवश्यकता होगी।’’ हालांकि फिलहाल परमाणु शस्त्रों पर रोक लगाने वाली संधि ज्यादा मानवीय सिद्धांतों पर आधारित है लेकिन इसका एक तर्कसंगत आधार है। विश्व रातों-रात परमाणु शस्त्रों से रहित नहीं हो जाएगा लेकिन इस पर विचार करने का समय शुरू हो चुका है। जो प्रयास जर्मनी के यहूदी भौतिक विज्ञानी आईनस्टीन के पदार्थ और ऊर्जा के बीच संबंधों को परिभाषित करने वाले फार्मूला द्गद्वष्२ से शुरू होकर 1938 में जर्मनी में दूसरे यहूदी भौतिक विज्ञानी देर लिसे मेटनर पर आकर समाप्त हुआ, उनका उद्देश्य विश्व की बर्बादी नहीं था। 

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