भारतीय सेना के पास आधुनिक छोटे हथियारों की भारी कमी

Friday, Oct 20, 2017 - 11:26 PM (IST)

122 वर्ष पूर्व 1 अप्रैल, 1895 को स्थापित भारतीय सेना को विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली सेनाओं में से एक माना जाता है। भारतीय सेना चीन के बाद विश्व की सबसे बड़ी सेना है। इसमें 41,162 अधिकारी तथा 11.6 लाख सैनिक हैं जिनमें पैदल सैनिकों की संख्या 4.8 लाख है। इसकी 6 आप्रेशनल (क्षेत्रीय) कमान और 1 ट्रेनिंग कमान हैं। भारतीय सेना की 382 बटालियनें और 63 राष्ट्रीय राइफल्स के यूनिट हैं।

इतनी विशाल सेना होने के बावजूद आधुनिक हथियारों की उपलब्धता के मामले में भारतीय सेना की स्थिति अच्छी नहीं। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार सेना के सदस्यों के पास आधुनिक हथियारों की भारी कमी है

पिछले एक दशक से हथियारों की खरीद सम्बन्धी प्रोजैक्ट बार-बार रद्द होनेे और अभी तक इनके भारतीय विकल्पों की तलाश में असफलता के कारण भारतीय सेना के जवानों के पास असाल्ट राइफलों, स्नाईपर गनों और हल्की मशीनगनों से लेकर युद्ध में प्रयोग होने वाली कार्बाइनों जैसे बुनियादी हथियार भी मानक स्तर के नहीं हैं तथा विकल्प के रूप में विकसित किए गए स्वदेशी हथियार कसौटी पर खरे उतरने में अधिक सफल नहीं रहे।

पिछले सप्ताह सेना के कमांडरों की बैठक में फिर से यह मुद्दा उठाया गया कि छोटे हथियारों को युद्ध क्षेत्र तक ले जाने में काफी समय लगता है। बैठक में सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने सीनियर लैफ्टीनैंट जनरलों को बताया कि,‘‘हथियार प्राप्त करने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में हमारी अप्रोच संतुलित करने की जरूरत है।’’

हालांकि बड़े अभियान के लिए तोपखाने, बंदूक, एयर डिफैंस मिसाइल और हैलीकाप्टर सम्बन्धी कुछ योजनाएं पटरी पर हैं परंतु ‘छोटे हथियार’ अभी भी बड़ी समस्या का विषय बने हुए हैं।

योजना के अनुसार लगभग 12 लाख की क्षमता वाली सेना के लिए 8,18,500 नई पीढ़ी की असाल्ट राइफलों, 4,18,300 क्लोज क्वार्टर युद्धक कार्बाइनों (क्यू.आर.बी), 43,700 लाइट मशीनगनों तथा 5679 स्नाईपर राइफलों की जरूरत पूरी करने के लिए शुरू में इनकी कुछ संख्या किसी विदेशी विक्रेता से सीधे तौर पर खरीद कर सेना को देने और बाद में बड़े पैमाने पर टैक्रोलोजी के ट्रांसफर के माध्यम से इनका स्वदेश में निर्माण करना अपेक्षित था, लेकिन यह योजना अभी तक सिरे नहीं चढ़ी।

गत वर्ष सितम्बर में सेना को त्रुटिपूर्ण 5.56 एम.एम. इंसास (भारतीय छोटी  शस्त्र प्रणाली) राइफलों के स्थान पर नई पीढ़ी की 7.62351 एम.एम. असाल्ट राइफल को री-लांच करने के उद्देश्य से इसकी विश्वव्यापी खोज के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि पिछले एक दशक के दौरान इस सम्बन्ध में ली गई सारी निविदाएं रद्द कर दी गई थीं। उल्लेखनीय है कि पुरानी इंसास राइफलों को पिछले दशक में भ्रष्टाचार के आरोपों और इनमें अव्यावहारिक तकनीकों के इस्तेमाल आदि कारणों से हटाना पड़ा था।

भारतीय सेना के पास हथियारों और गोला बारूद की कमी लम्बे समय से चली आ रही है। अभी इसी वर्ष जुलाई में कैग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि युद्ध की स्थिति में सेना का गोला-बारूद मात्र 10 दिन ही चल पाएगा।
संसद में रखी गई इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि सेना मुख्यालय द्वारा 2009 से 2013 के बीच खरीदारी की जो प्रक्रियाएं शुरू की गईं उनमें अधिकतर 2017 तक भी पूरी नहीं की जा सकीं।

आज जबकि भारत को 2-2 खतरनाक पड़ोसियों पाकिस्तान और चीन की ओर से लगातार अत्यंत गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है, सेना के पास छोटे हथियारों की कमी भारी चिंता का विषय है।

यदि इस स्थिति में सुधार के लिए जल्दी ठोस उपाय न किए गए तो इसका प्रभाव देश की प्रतिरक्षा क्षमता पर पड़ेगा जिससे देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। अत: इस कमी या किसी भी प्रकार की अन्य कमी को जितनी जल्दी दूर किया जा सके उतना ही देश की सुरक्षा के लिए अच्छा होगा।        —विजय कुमार

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