देश के विभिन्न प्रदेशों में अग्निकांडों से हो रही भारी क्षति

Wednesday, May 04, 2016 - 12:20 AM (IST)

पिछले कुछ समय से देश में होने वाले अग्निकांडों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है जिससे न सिर्फ मूल्यवान राष्ट्रीय विरासत ही नष्टï हुई बल्कि जान-माल तथा पर्यावरण एवं जीव-जंतुओं की भी भारी क्षति हुई है। दिल्ली के 6 मंजिला राष्ट्रीय संग्रहालय में 26 अप्रैल रात लगी आग से वहां जानवरों की खाल से निर्मित उनके प्रतिरूप जैसी कई प्रदर्शनीय वस्तुएं जल कर राख हो गईं और आग बुझाते हुए 6 कर्मचारी भी घायल हो गए। 

चंद सप्ताहों से देश के कुछ जंगलों में भीषण आग लगी हुई है। उत्तराखंड के 13 जिलों के जंगलों में इस वर्ष 1470 अग्निकांडों में 3185 हैक्टेयर वन क्षेत्र नष्टï हो चुका है और अरबों रुपए की क्षति के अलावा 7 लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है। इस आग ने गत 4 वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया है। मंगलवार को भी जंगल जलते रहे तथा आग बुझा रहे एक कर्मचारी की मृत्यु हो गई। गर्मी से बिजली की हाईटैंशन तारें व एल.टी. लाइनें पिघलने लगी हैं और आप्टीकल फाइबर केबल जलने से संचार सेवाएं ठप्प हो गई हैं।

इस वर्ष के वन अग्रिकांडों में ये सबसे भीषण अग्निकांड हैं। इनके सम्बन्ध में 4 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है तथा आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि वन विभाग के कर्मचारियों से सांठगांठ कर यह आग लकड़ी माफिया ने लगवाई है। लोगों ने कर्मचारियों की संवेदनहीनता का उदाहरण देते हुए कहा कि चमोली के रौली व टिहरी के धमतप गांवों में आग पहुंच जाने की सूचना के बावजूद वहां कोई कर्मचारी नहीं पहुंचा। 

जम्मू-कश्मीर में राजौरी के बाथुली के वनों व हिमाचल के नाहन व शिमला के वन भयानक आग की लपेट में हैं। हिमाचल के 12 में से 8 जिलों में 378 स्थानों पर 400 हैक्टेयर वनों में आग ने तबाही मचा रखी है। इस कारण 27 अप्रैल से 1 मई तक 4 लोगों की मृत्यु हो गई है। सैंकड़ों चीड़ के पेड़ जल कर राख हो गए हैं। ऊना के जंगलों में लगी आग बुझाते-बुझाते 2 मई को 5 विभागीय कर्मचारी भी झुलस गए।  यू.पी. में आगरा-मथुरा राजमार्ग पर कीठम स्थित ‘सूर सरोवर पक्षी विहार’ में 29 अप्रैल को 11000 वोल्ट का बिजली का तार टूट कर गिर जाने से भीषण आग लग गई जोप्रचंड गर्मी के कारण बेहद तेजी से फैली। 

इससे अजगर, चीतल, नील गाय, सेही, चींटीखोर, कोबरा, खरगोश, हिरण, कौए, गौरैया व सांपों सहित हजारों जंतु जल कर मर गए और जंगल जान बचाने के लिए भाग रहे जानवरों की दर्दनाक आवाजों से कांप उठा। राष्ट्रीय संग्रहालय के एक अधिकारी के अनुसार फायर सेफ्टी सिस्टम काफी पुराना हो गया था और कतई काम नहीं कर रहा था। उच्चाधिकारियों को बार-बार सूचित करने के बावजूद उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

एक जानकार के अनुसार जंगलों में सबसे पहले आग जमीन पर गिरे पत्तों में लगती है। इस वर्ष अधिक गर्मी के कारण पत्ते भी अधिक गिरे और नमी न होने से लगने वाली आग ने विकराल रूप धारण कर लिया। इससे बचाव के लिए सबसे पहले वनों की पत्तियों को संभालने की जरूरत है। ऐसे अग्निकांडों के मुकाबले के लिए 4-5 महीने पहले से ही तैयारी करनी चाहिए परन्तु उत्तराखंड में ऐसी कोई तैयारी नहीं की गई थी।

वन गार्डों को भी पूरी ट्रेङ्क्षनग नहीं दी जाती और आग से बचाव के लिए वांछित तैयारी भी नहीं की जाती। यही नहीं, वन विभाग के पास जंगलों को बचाने के लिए न कोई मास्टर प्लान है और न ही अब लोगों में वनों के प्रति कोई अपनापन रह गया है जिस कारण हमारे वन ‘अनाथ’ हो रहे हैं। 

हिमाचल में वनों की सुरक्षा के लिए लगभग 5 करोड़ रुपए वाॢषक कोष की आवश्यकता होती है परंतु प्रदेश सरकार ने इसके लिए इस वर्ष 2 करोड़ रुपए से भी कम बजट दिया। 
 
कीठम पक्षी विहार में भी आग बुझाने के दौरान आई मुश्किलों में फायर ब्रिगेड की अधूरी तैयारी, पानी की अनुपलब्धता आदि प्रमुख थीं। राष्ट्रीय संग्रहालय अग्निकांड में जहां अधिकारियों ने अग्रिशमन उपकरणों के खराब होने के बावजूद उस ओर से आंखें मूंदें रखीं, वहीं उत्तराखंड में संबंधित कर्मचारियों को पूरा प्रशिक्षण न होना तथा हिमाचल में अग्निशमन प्रबंधों के लिए अन्य बातों के अलावा संसाधनों का अभाव और उत्तर प्रदेश के पक्षी विहार में भी इसी प्रकार की तकनीकी बाधाएं आड़े आई हैं। 
 
अत: जब तक अग्निकांडों से बचाव हेतु संबंधित विभागों को पूरे प्रशिक्षण के साथ-साथ अत्याधुनिक अग्निशमन उपकरणों से लैस करने और अग्निकांडों का मुकाबला करने हेतु एक सुनियोजित रणनीति नहीं बनाई जाती तब तक ऐसे अग्निकांडों को कदापि नहीं रोका जा सकता।   
        —विजय कुमार
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