‘आर्ट आफ लिविंग’ के यमुना आयोजन से ‘पर्यावरण को पहुंची भारी क्षति’

punjabkesari.in Friday, Apr 14, 2017 - 12:06 AM (IST)

तमिलनाडु के एक गांव में जन्मे ‘श्री श्री रविशंकर’ का नाम उनके पिता ने आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए ‘शंकर’ रखा था। शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के ‘श्री श्री’ मात्र 4 साल की उम्र में ही भगवद् गीता के श्लोकों का पाठ कर लेते और कुछ बड़े होने पर वह महेश योगी के प्रिय शिष्य बन गए। 

इन्होंने 1982 में एन.जी.ओ. ‘आर्ट आफ लिविंग’ (ए.ओ.एल.) की स्थापना की जो देश भर में 54 बाल मंदिर, 8 कालेज और 46 विद्या मंदिर चला रही है। गत वर्ष 11-13 मार्च तक ‘श्री श्री’ ने नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह का आयोजन किया। दिल्ली प्रशासन ने नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) की आपत्ति के बावजूद उच्च स्तरीय राजनीतिक दबाव के चलते ‘आर्ट आफ लिविंग’ को यमुना ‘तराई’ में लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में उक्त आयोजन करने की अनुमति दी। इसके लिए यमुना पर तैरने वाला पुल बनाने, यमुना किनारे भारी निर्माण करने तथा समारोह के लिए बड़े पैमाने पर जमीन के समतलीकरण, अस्थायी निर्माण आदि से नदी क्षेत्र को काफी नुक्सान पहुंचा। 

इस बारे ‘यमुना बचाओ अभियान’ के मनोज मिश्रा द्वारा दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया था कि ‘आर्ट आफ लिविंग’ ने नियमों को ताक पर रख कर यह कार्यक्रम किया और यमुना में एन्जाइम डाल कर बड़े पैमाने पर जैव विविधता, जलीय जीवन तथा पर्यावरण को क्षति पहुंचाई जिससे इस क्षेत्र में पनपने वाली जैव विविधता सदा के लिए गायब हो गईं। सर्वाधिक क्षति उस स्थान को पहुंची जहां विशाल मंच लगाया गया था। 

इस याचिका पर सुनवाई के दौरान नियमों की अनदेखी करने पर एन.जी.टी. ने ‘आर्ट आफ लिविंग’ पर 5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। तब श्री श्री ने 25 लाख रुपए जमा करवा दिए और एन.जी.टी. ने इस शर्त पर उन्हें कार्यक्रम की अनुमति दी कि वह शेष राशि समारोह सम्पन्न होने के बाद जमा करवा देंगे। परंतु बाद में ‘श्री श्री’ ने इस संबंध में ढेरों याचिकाएं लगा दीं जिस पर एन.जी.टी. ने 31 मई, 2016 को ‘श्री श्री’ की खिंचाई भी की। अब केंद्र सरकार द्वारा ‘केंद्रीय जल संसाधन सचिव’ शशि शेखर के नेतृत्व में गठित 7 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि : 

‘‘श्री श्री रविशंकर के सांस्कृतिक महोत्सव के कारण बर्बाद हुए यमुना के ‘बाढ़’ क्षेत्र को इतना नुक्सान पहुंचाया गया है कि इसके पुनर्वास में कम से कम 10 वर्ष लगेंगे और 42 करोड़ रुपए से अधिक खर्च आएगा।’’ विशेषज्ञ समिति के अनुसार, ‘‘आर्ट आफ लिविंग’ द्वारा यमुना के बाएं किनारे पर क्षेत्र के प्राकृतिक स्वरूप में काफी बदलाव किया गया। भारी मात्रा में मलबा डम्प किया गया। जिस कारण इस क्षेत्र में लगे पेड़, झाडिय़ों तथा घास आदि को आयोजकों ने साफ करवा दिया था। इससे यहां रहने वाले तमाम प्रकृति मित्र छोटे-छोटे जीव-जंतुओं, कीड़े-मकौड़ों को भारी नुक्सान हुआ।’’

विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट बारे प्रतिक्रिया मांगने पर ‘आर्ट आफ लिविंग’ के प्रवक्ता केदार देसाई ने एक बार फिर इस रिपोर्ट को मीडिया में लीक करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि ‘‘हमारी एक जिम्मेदार और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील एन.जी.ओ. है और हमने कभी भी पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचाई। हम तो वर्षों से पर्यावरण संरक्षण परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।’’ 

इन दिनों जबकि देश में जलस्रोतों की सुरक्षा और विशेष रूप से गंगा-यमुना सहित देश की अधिकांश प्रमुख नदियों की सफाई और संरक्षण के लिए व्यापक आंदोलन चलाया जा रहा है, ‘श्री श्री’ की एन.जी.ओ. द्वारा आयोजित समारोह के परिणामस्वरूप यमुना को पहुंची क्षति संबंधी रिपोर्ट विचलित करने वाली है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने गंगा तथा इसकी सहायक नदियों को बचाने के लिए ‘नमामि गंगे’ योजना के अंतर्गत 20,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है व नैनीताल हाईकोर्ट ने गंगा-यमुना को जीवित प्राणी मानते हुए, इन्हें नुक्सान पहुंचाने पर आई.पी.सी. के अंतर्गत मुकद्दमा चलाने का आदेश दे रखा है। 

‘श्री श्री’ के अत्यंत मजबूत राजनीतिक संपर्क भी हैं। यहां तक कि मोदी सरकार में उनके एक शिष्य मंत्री भी हैं पर उनकी मुख्य पहचान आध्यात्मिक गुरु के रूप में ही है जिसके लिए उन्हें विश्वव्यापी सम्मान प्राप्त है। अत: उनके संगठन को पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाला कोई काम नहीं करना चाहिए था। अब आवश्यकता इस बात की है कि श्री श्री की एन.जी.ओ. पर्यावरण को पहुंची इस क्षति की भरपाई करे और यह बात सुनिश्चित करे कि भविष्य में उनकी एन.जी.ओ. पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाला कोई भी काम नहीं करेगी।—विजय कुमार 
 


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