भारत में बढ़ रही असहनशीलता के बीच हथियारों का फलता-फूलता धंधा

Sunday, Jun 18, 2017 - 11:05 PM (IST)

किसी भी हिंसक आंदोलन या आतंकवादी हमले के मामले में सर्वप्रथम और सर्वोपरि जिस चीज की आवश्यकता होती है वह है हथियार। प्रत्येक सरकार का अपने देश की शस्त्र नीति के संबंध में अपना दृष्टिकोण होता है परंतु मुख्य रूप से कम आबादी और विशाल जंगलों वाले देश अपने नागरिकों को शिकार एवं स्पोर्ट्स शूटिंग के लिए हथियार रखने की अनुमति देते हैं। इसका मुख्य कारण इन देशों के नागरिकों का पारंपरिक रूप से आऊटडोर कल्चर है। 

स्विट्जरलैंड और इसराईल जैसे देशों में जहां युवाओं के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है, युवाओं को अपनी-अपनी सेना में सेवा के बाद अपने हथियार अपने पास ही रख लेने की अनुमति होती है। रूस की भी अपनी अनूठी शस्त्र संस्कृति है और रूस वाले ए.के. 47 जैसी बंदूकों का निर्माण करने पर गर्व करते हैं परंतु वहां 70 प्रतिशत लोग हथियार रखने के अधिकार के विरोधी हैं और वहां असाल्ट राइफलें अपने पास रखने की अनुमति भी नहीं है। नि:संदेह अमरीका में, अमरीकी संविधान के द्वितीय संशोधन के अनुसार लोगों के हथियार रखने के अधिकार का संरक्षण किया गया है, वहां मानसिक रूप से अस्थिर लोगों द्वारा स्कूली बच्चों की हत्या किए जाने की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं।

भटके हुए युवाओं द्वारा पबों में फायरिंग करके अनेक लोगों की हत्या के बाद भी वहां की सरकार और लोग 1791 में उन्हें प्रदान किए गए हथियार रखने के अधिकार में क्षरण के विरुद्ध हैं। किसी व्यक्ति की मनोदशा संबंधी रिपोर्ट आने से पहले ही वहां कोई व्यक्ति बंदूक खरीद सकता है। वहां के स्पोर्ट्स स्टोर में ऑटोमैटिक अटैक राइफल खुलेआम खरीदी जा सकती है। अधिक खतरनाक शस्त्र संस्कृति का एक और उदाहरण यह है कि लीबिया, पाकिस्तान, ट्यूनीशिया जैसे देशों में ये हथियार सरकार द्वारा आतंकवादी गिरोहों को बेचे या दिए जाते हैं। 

इन हालात में, बढ़ रहे आतंकवादी खतरों और देश में भारी मात्रा में अवैध शस्त्रों के प्रवाह के दृष्टिïगत इस संबंध में आस्ट्रेलिया 1996 के बाद पहली बार अपना पहला राष्ट्रीय शस्त्र संशोधन कानून लाने जा रहा है। इस संबंध में एक जुलाई से 3 महीने का क्षमादान दिया जाएगा जिसके अंतर्गत लोग अपने अपंजीकृत हथियार मुकद्दमा चलाए जाने के भय के बगैर जमा करवा सकेंगे तथा इस अवधि के बाद पकड़े जाने वाले लोगों को भारी जुर्माना तथा 14 वर्ष तक कैद की सजा सुनाई जा सकेगी। 

उल्लेखनीय है कि 1996 में पोर्ट आर्थर में गोलीबारी की एक घटना में जहां मार्टिन ब्रायंट नामक 28 वर्षीय युवक ने 35 लोगों की हत्या और 23 को घायल कर दिए जाने के बाद सरकार ने कड़े शस्त्र नियंत्रण कानून लागू किए थे। इसके परिणामस्वरूप 10 लाख के लगभग सैमी आटोमैटिक हथियार सरकार के शस्त्रागार में वापस पहुंच गए थे। संभवत: कानून बनाने से भी अधिक महत्वपूर्ण बात है इसका क्रियान्वयन भारत में हथियारों के स्वामित्व के कहीं अधिक कठोर नियम हैं परंतु एक ऐसी प्रणाली में जहां इसका क्रियान्वयन बहुत ढीला है। लिहाजा ये हाथों-हाथ बेच दिए जाते हैं और यहां तक कुछ राज्यों में बिना अनुमति के ही इनका निर्माण तक किया जा रहा है। वास्तव में एक प्रभावशाली शस्त्र नियंत्रण कानून से आत्महत्याओं की संख्या में भी कमी आ जाया करती है और आम लाकानूनी में भी। 

भारत में जहां समाज के भीतर हिंसा और असहनशीलता बढ़ती जा रही है, यहां तो एक वाहन को ओवरटेक करने को लेकर होने वाले मामूली से विवाद पर भी लोग एक-दूसरे पर हथियार तान देते हैं। लिहाजा अब समय आ गया है कि शस्त्र नियंत्रण कानून को प्रभावशाली ढंग से देश के पूर्वी राज्यों में ही नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से गर्म वातावरण वाले प्रत्येक राज्य में प्रभावशाली ढंग से लागू किया जाए। अमरीका में तो प्रत्येक गोलीबारी की घटना के बाद शस्त्र नियंत्रण पर बहस दोबारा छिड़ पड़ती है परंतु भारत में हथियारों के लाइसैंस जारी करने के लिए कड़े मार्ग निर्देश होने के बावजूद कभी भी हथियारों से संबंधित अपराधों पर बहस नहीं होती लिहाजा शायद अब सरकार के लिए यह सोचने का समय आ गया है कि किस प्रकार हथियारों के निर्माण और बिक्री का धंधा तेज होता जा रहा है।  

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