तीन तलाक विधेयक के विरुद्ध समूचा विपक्ष राज्यसभा में एकजुट

Tuesday, Jan 01, 2019 - 04:01 AM (IST)

तीन तलाक का मुद्दा देश में विवादास्पद मुद्दा है। मुस्लिम समाज में प्रचलित यह प्रथा पति को तीन बार तलाक बोल कर पत्नी से विवाह समाप्त करने का अधिकार देती है। ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें लोगों ने फोन पर या फिर व्हाट्सएप के जरिए तीन बार तलाक बोल कर पत्नी से निकाह समाप्त किया। इसके विरुद्ध तीन तलाक पीड़ित 5 महिलाओं ने 2016 में सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 

सुप्रीमकोर्ट ने तीन तलाक की 1400 साल पुरानी प्रथा को विवाह समाप्त करने का सबसे घटिया और अवांछित तरीका बताते हुए अगस्त, 2017 में असंवैधानिक करार दिया और केंद्र सरकार से इस पर कानून बनाने को कहा था। विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने इसे धार्मिक आस्था का प्रश्र बताया परंतु सरकार का कहना है कि यह विधेयक किसी समुदाय विशेष के विरुद्ध न होकर महिलाओं के अधिकारों के बारे में है। सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने दिसम्बर, 2017 में लोकसभा से ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक’ पारित करवाया था लेकिन विरोधी दलों के विरोध के कारण राज्यसभा में यह अटक गया। 

बाद में सितम्बर, 2018 में केंद्र सरकार इसे प्रतिबंधित करने के लिए अध्यादेश लाई जिसके अंतर्गत इसे अपराध करार देते हुए पति के लिए 3 साल तक जेल और जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया। इसी सिलसिले में नया और परिवर्तित विधेयक 27 दिसम्बर को लोकसभा में पारित हो गया जिसके बाद इसे राज्यसभा में भेजा जाना था। सरकार 8 जनवरी तक चलने वाले शीतकालीन सत्र में ही इसे पारित करवाना चाहती थी। लोकसभा में विधेयक पर वोटिंग के दौरान कांग्रेस, अन्नाद्रमुक और सपा के सदस्यों ने वाकआऊट किया। इससे पूर्व कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने बिल को ‘संयुक्त प्रवर समिति’ (छ्वशद्बठ्ठह्ल ह्यद्गद्यद्गष्ह्ल ष्शद्वद्वद्बह्लह्लद्गद्ग) के पास भेजने की मांग की तथा ए.आई.एम.आई.एम. के असदुद्दीन ओवैसी व कांग्रेस के दो सांसदों द्वारा तीन तलाक देने के दोषी को जेल भेजे जाने के प्रावधान का विरोध किया। 

चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि ‘‘जब पाकिस्तान व बंगलादेश सहित 22 इस्लामी देशों ने इसे अवैध करार दिया है तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इसे अपराध मानने में क्या परेशानी है? महिला सशक्तिकरण के लिए यह विधेयक आवश्यक है।’’ बहरहाल 31 दिसम्बर को भोजनावकाश के बाद राज्यसभा की कार्रवाई शुरू होने पर जैसे ही उपसभापति हरिवंश ने तीन तलाक ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2018’ पेश करने की प्रक्रिया शुरू की, विपक्षी सदस्य इसके विरुद्ध उठ कर खड़े हो गए। 

तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि वह इस विधेयक को पारित करने के पक्ष में हैं, ‘‘परंतु नियम 15 के अंतर्गत 15 प्रमुख विपक्षी दलों ने इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का नोटिस दिया है, अत: पहले विपक्ष के नोटिस पर चर्चा होनी चाहिए।’’ ‘‘जब अधिकतर विपक्षी दल इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजना चाहते हैं तो इसे सरकार प्रवर समिति के पास क्यों नहीं भेज रही है?’’ विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सरकार ने विधेयक को ‘संयुक्त प्रवर समिति’ की जांच के बगैर ही पारित करने की परम्परा शुरू कर दी है। चूंकि यह विधेयक करोड़ों लोगों की जिंदगी को सकारात्मक या नकरात्मक रूप से प्रभावित करने वाला है अत: इसे ‘संयुक्त प्रवर समिति’ को भेजना जरूरी है। 

इस चरण पर सदन में हुए शोरगुल के बाद कार्रवाई स्थगित कर दी गई और स्थगन के बाद कार्रवाई दोबारा शुरू होने पर भी सदस्यों का शोरगुल जारी रहने के कारण उपसभापति ने सदन की कार्रवाई 2 जनवरी सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी। शीतकालीन सत्र 11 दिसम्बर को शुरू होने के बाद से विभिन्न विषयों पर हंगामे के कारण राज्यसभा में एक दिन भी कामकाज नहीं हो सका, अत: ऐसा लगता है कि राज्यसभा में विपक्ष के एकजुट हो जाने से कहीं तीन तलाक विधेयक लटक ही न जाए। यहां तक कि सरकार के निकट समझी जाने वाली अन्नाद्रमुक तथा गठबंधन सहयोगी जद (यू) भी अतीत में विधेयक प्रवर समिति को भेजने की मांग कर चुके हैं जिससे सत्ता पक्ष की मुश्किल बढ़ सकती है। आने वाले चुनावों के कारण सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस मुद्दे का लाभ उठाना चाहते हैं। राज्यसभा में विपक्ष का बहुमत है और भाजपा के दो निकटवर्ती दलों के भी विपक्ष के साथ मिल जाने पर यह समस्या और लटकेगी।—विजय कुमार 

Pardeep

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