लक्ष्य से कोसों दूर है प्लास्टिक पर प्रतिबंध

Monday, Jun 25, 2018 - 04:05 AM (IST)

हाल ही में महाराष्ट्र में ‘सिंगल-यूज’ यानी एक बार इस्तेमाल के बाद फैंक दिए जाने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू हो गया है। प्रतिबंधित प्लास्टिक के साथ पाए जाने वालों पर कार्रवाई के लिए 250 इंस्पैक्टरों का विशेष दस्ता बनाया गया है। इसके अलावा कई जगहों पर प्लास्टिक की वैकल्पिक चीजों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है। फिल्मी सितारों को भी लोगों को जागरूक करने की मुहिम में शामिल किया गया है। 

प्रतिबंधित प्लास्टिक के साथ पहली बार पकड़े जाने पर 5,000 रुपए, दूसरी बार 10,000 रुपए, तीसरी बार पकड़े जाने पर 25,000 रुपए तथा 3 महीने की सजा का प्रावधान है। कोशिश पूरी तरह प्लास्टिक उन्मूलन की है परंतु इस पहल को सफल बनाने में अभी अनेक चुनौतियां हैं क्योंकि विभिन्न राज्यों में अब तक लगाए प्लास्टिक प्रतिबंधों के अनुभवों से स्पष्ट है कि इस पर काबू पाने के राज्यों के दावे अभी वास्तविकता से कोसों दूर हैं। 

केंद्र के प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमैंट रूल्स, 2016 के अनुसार सैंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को प्लास्टिक के उपयोग पर नियंत्रण के लिए उठाए गए पगों से लेकर प्रतिबंध की स्थिति तथा रिसाइक्लिंग एवं कचरे को ठिकाने लगाने की व्यवस्था के बारे में सभी राज्यों को हर वर्ष अवगत करवाना होता है। जुलाई 2016 तक जमा की गई नवीनतम रिपोर्ट बताती है कि केवल 24 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों ने ही इन निर्देशों का पालन किया है। अधिकतर राज्य तो अपने यहां प्रतिबंध का दावा इसी आधार पर कर रहे हैं कि उन्होंने कुछेक शहरों में इन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। 

कुछ राज्यों में यह प्रतिबंध कुछ विशेष प्रकार के प्लास्टिक तक ही सीमित है। जैसे असम में कामरूप, सोनितपुर, नलबाड़ी, डिब्रूगढ़ में प्लास्टिक के लिफाफों पर ‘पूर्ण प्रतिबंध’ है तो सालाना टनों प्लास्टिक कचरा पैदा करने वाले गुजरात में केवल गांधीनगर में ही प्लास्टिक लिफाफों का उपयोग स्पष्ट प्रतिबंधित है जिसकी आबादी इसके बड़े शहरों की तुलना में बेहद कम है। 

देश की राजधानी दिल्ली ने सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा करने के बावजूद प्लास्टिक प्रबंधन संबंधी अपने कदमों के बारे में जानकारी ही नहीं दी है। वहां भी प्लास्टिक के लिफाफों पर प्रतिबंध है। दिल्ली सरकार और नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल दोनों का ही आदेश है कि राजधानी में 50 माइक्रोन से पतली पॉलिथीन में सामान नहीं बिकना चाहिए लेकिन प्रतिबंध के बावजूद यहां पॉलिथीन का इस्तेमाल खूब हो रहा है। सैंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार राजधानी में रोजाना 700 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है जो देश में सर्वाधिक है। दिल्ली में आम देखा जा सकता है कि अधिकतर दुकानदारों के पास पेपर बैग नहीं होते। दुकानदारों का कहना है कि प्लास्टिक सस्ता और मजबूत होता है इसलिए वे इसका इस्तेमाल करते हैं। 

दूसरी ओर अनेक राज्यों में प्लास्टिक निर्माण व रिसाइक्लिंग इकाइयां अभी भी अपंजीकृत हैं जबकि कानूनन पंजीकरण अनिवार्य है। स्पष्ट है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की उठती मांगों के बावजूद आज की तारीख में अधिकांश राज्यों ने तय नियमों की अनदेखी करते हुए प्लास्टिक लिफाफों के उपयोग के लिए उचित निगरानी प्रणाली तक स्थापित नहीं की है। इतना ही नहीं, जिन राज्यों एवं केंद्र शासित राज्यों ने प्लास्टिक लिफाफों के उपयोग तथा विक्रय पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है, वहां भी प्लास्टिक के लिफाफों का अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल हो रहा है और वे खुलेआम बिक भी रहे हैं। 

आज प्लास्टिक हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है क्योंकि यह सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला विकल्प है। हमारी रोजमर्रा की कितनी ही चीजें या तो प्लास्टिक से बनी हैं या उनके निर्माण में प्लास्टिक की बड़ी भूमिका होती है। एक अनुमान के अनुसार फिलहाल भारत में 1 करोड़ 20 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक की खपत होती है जिसके 2020 तक 2 करोड़ मीट्रिक टन पहुंचने की संभावना है। इस कचरे से हमारे पर्यावरण को नुक्सान पहुंचता है। साथ ही प्लास्टिक हमारी सेहत के लिए भी हानिकारक है जिसके कणों से कैंसर होने का खतरा रहता है। हाल में न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ है कि बोतलबंद पानी में प्लास्टिक के माइक्रो कण मिल जाते हैं जो हमारी सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं। ऐसे में महाराष्ट्र की पहल प्रशंसनीय है परंतु इसकी सफलता कुशलता से इसे लागू करने पर ही निर्भर करती है। 

Punjab Kesari

Advertising