यादों के झरोखों से- फिल्म जगत के ''शंहशाह'' ''दिलीप कुमार'' नहीं रहे

punjabkesari.in Thursday, Jul 08, 2021 - 04:34 AM (IST)

फिल्म प्रेमियों के हृदय सम्राट 98 वर्षीय दिलीप कुमार का 7 जुलाई को सुबह 7.30 बजे मु बई के अस्पताल में निधन हो गया। कुछ समय से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी।
अलग अंदाज के अभिनेता दिलीप कुमार ने 22 वर्ष की आयु में अभिनय की दुनिया में कदम रखा और जिन लोगों ने फिल्मों में उनका अभिनय तथा उन पर फिल्माए हुए गीत देखे हैं, वे उन्हें कभी भुला नहीं पाएंगे। 

विभाजन से पूर्व जब हम लाहौर में रहते थे पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी जब भी कोई नई फिल्म रिलीज होती तो अपने प्रिय मित्र पंडित मंगल दास जी के साथ उसे देखने जाते और मुझे भी कभी-कभी अपने साथ ले जाते। 

देश के बंटवारे के बाद जालंधर आने पर पंजाब में जालंधर फिल्म वितरण का सबसे बड़ा केंद्र बन गया और यहां फिल्में देश के अन्य बड़े केंद्रों के साथ-साथ सबसे पहले रिलीज होती थीं। हर शुक्रवार को नई फिल्म लगते ही श्री रमेश जी और मैं उसका पहला शो अवश्य देखने जाते। 1960 के आसपास जब मैं एक बार मु बई गया तो हमारे मुंबई स्थित पत्रकार ओम प्रकाश शास्त्री ने मुझे बताया कि दिलीप कुमार के जीजा के. आसिफ बहुत बड़े बजट की फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ बना रहे हैं। वह मुझे के. आसिफ से मिलवाने ले गए। सादगी से एक लैट में रहने वाले के. आसिफ हमें गर्मजोशी से मिले और बातचीत में बताया, ‘‘वैसे तो यह फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट में बन रही है पर इसमें ‘शीश महल’ का सीन मैं रंगीन फिल्मा रहा हूं।’’ 

दुनिया भर में धूम मचाने वाला फिल्म का गीत ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ इसी ‘शीश महल’ में अभिनेत्री मधुबाला पर फिल्माया गया था। यह फिल्म देश भर में 5 अगस्त, 1960 को रिलीज हुई जिसने रिकार्ड तोड़ सफलता प्राप्त की तथा सिनेमाघरों में वर्षों तक चलती रही। इस फिल्म में मधुबाला ने दिलीप कुमार अर्थात शहजादा सलीम की प्रेमिका अनारकली की तथा पृथ्वी राज कपूर ने बादशाह अकबर की भूमिका निभाई थी। 

फिल्मों में अभिनय से पूर्व पृथ्वी राज कपूर ने रंगमंच से लगाव के कारण ‘पृथ्वी थिएटर’ कायम किया था। वह 1958 में जालन्धर आए और ‘ज्योति थिएटर’ में एक सप्ताह तक चले ‘नाट्य समारोह’ में 7 नाटकों का मंचन किया। तब पिता जी, रमेश जी और मैं उनसे मिलने वहां गए और वह हमारे घर भी आए और हमने उनके सभी नाटक वहां देखे। मुझे भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री नरसि हा राव, जो बाद में प्रधानमंत्री बने, के पत्रकार दल के साथ 1983 में पाकिस्तान के दौरे पर पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद जाने का मौका मिला। उस दौरे में हमारे साथ प्रसिद्ध उर्दू पत्रिका ‘शमां’ के मालिक यूनुस देहलवी भी थे। 

मेरी बड़ी बहन स्वर्ण लता का इस्लामाबाद के जुड़वां शहर रावलपिंडी में स्वतंत्रता सेनानी श्री तिलक राज सूरी के साथ विवाह हुआ था जो पूज्य पिता जी के साथ जेल में रहे थे। रावलपिंडी में उनका मकान देखने के बाद हम पेशावर चले गए। पृथ्वी राज कपूर व दिलीप कुमार दोनों ही पेशावर के रहने वाले थे और दोनों की ही पुश्तैनी हवेलियां वहां हैं। वहां हमें एक होटल में ठहराया गया और खाना खिलाने के लिए अधिकारी हमें वहां के मशहूर ‘किस्साखवानी बाजार’ में ले गए। वहां पकाए जा रहे तरह-तरह के पकवानों में प्रयुक्त मसालों की मुग्ध करने वाली महक फैली थी जिस पर मुझे परांठों के लिए मशहूर चांदनी चौक, दिल्ली की प्रसिद्ध परांठों वाली गली की याद आ गई। 

मैंने तंदूर वालों से कहा कि मैं शाकाहारी हूं तो उन्होंने दाल, सब्जी तैयार होने तक हमारे लिए एक गज ल बा नान लाकर मेज पर परोस दिया जो इतना स्वादिष्ट था कि दाल-सब्जी आने से पहले ही हम सब उसे खा गए। जब तंदूर वालों को पता चला कि हम भारत से आए हैं तो उन्होंने हमें बताया कि इसी गली में निकट ही दिलीप कुमार और पृथ्वी राज कपूर की हवेलियां हैं। यह जानकर हम उन्हें देखने चले गए। हाल ही में दिलीप कुमार के मकान को यूजियम का रूप देने के लिए अब पाकिस्तान की खैबर प तून वा सरकार ने 2.3 करोड़ रुपए जारी किए हैं। 

फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के अलावा  65 से अधिक फिल्मों में अभिनय की अमिट छाप छोडऩे वाले दिलीप कुमार जैसा बनने के लिए राजेंद्र कुमार, धर्मेंद्र और मनोज कुमार सहित दर्जनों युवा मु बई पहुंचे परंतु उन जैसा कोई न बन पाया। दिलीप कुमार के साथ अनेक फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री मधुबाला के साथ उनका प्रेम प्रसंग जोरों से चला। मधुबाला के पिता उसकी हर शूटिंग पर उसके साथ जाते थे जिनकी वजह से इन दोनों का प्यार सिरे न चढ़ सका। अंतत: दिलीप कुमार ने 44 वर्ष की आयु में अपने से 22 वर्ष छोटी सायरा बानो से 11 अक्तूबर, 1966 को विवाह कर लिया जो उनसे उनकी अंतिम सांस तक बेपनाह प्यार करती रहीं और उन्हें ‘साहब’ कह कर बुलाती थीं। 

आज न दिलीप कुमार रहे, न पृथ्वी राज कपूर और न ही राजकपूर हमारे बीच हैं लेकिन अपनी यादों की जो धरोहर वे हमें दे गए हैं वह अनमोल है और उनकी कमी भी कभी पूरी नहीं हो सकती। आज जमाना बदल गया है। रेडियो तथा सिनेमा के स्थान पर टैलीविजन और मोबाइल आ गए हैं। इस दौर में न वैसी फिल्में बन रही हैं न वैसा गीत-संगीत और न वैसी कहानी फिल्मों में देखने को मिलती है। बची हैं तो बस चंद पुरानी यादें।—विजय कुमार 


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