जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा ठिकानों पर आतंकवादियों के बार-बार हमले

Tuesday, Feb 13, 2018 - 02:22 AM (IST)

जम्मू-कश्मीर में सक्रिय पाक समर्थित आतंकवादियों के हौसले इस कदर बढ़ गए हैं कि हाई अलर्ट और अलर्ट की चेतावनी के बावजूद हम इसे रोकने में सफल नहीं हो पा रहे। अब पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमारे सुरक्षा ठिकानों पर भी हमले शुरू कर दिए हैं : 

27 जुलाई, 2015 को दीनानगर ‘पुलिस स्टेशन’ पर हमले में 1 पुलिस कर्मचारी व 4 सिविलयन मारे गए। 02 जनवरी, 2016 को ‘पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन’ पर आतंकवादी हमले में 1 सिविलयन तथा सुरक्षा बलों के 7 सदस्य शहीद हुए। 18 सितम्बर को उड़ी में नियंत्रण रेखा के निकट ‘12 ब्रिगेड मुख्यालय’ पर आतंकवादियों के हमले में सेना के 20 जवान शहीद हो गए। 27 अगस्त को जिला ‘पुलिस लाइन पुलवामा’ में हमले में 8 जवान शहीद। 

04 अक्तूबर को श्रीनगर एयरपोर्ट के निकट ‘बी.एस.एफ. कैम्प’ पर हमले में 1 जवान शहीद। 31 दिसम्बर, 2017 को दक्षिण कश्मीर के ‘सी.आर.पी.एफ. कैम्प’ पर फिदायीन हमले में 4 जवान शहीद हो गए।  आतंकवादी हमलों की नवीनतम कड़ी में 10 फरवरी को तड़के आतंकवादियों ने जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुंजवां स्थित ‘36वीं ब्रिगेड मुख्यालय’ पर फिदायीन हमला कर दिया जो 11 फरवरी को भी जारी रहा। इस दौरान सेना के 2 अधिकारियों सहित 5 जवान शहीद हो गए, एक जवान के पिता की मौत हो गई तथा 5 जवानों सहित 11 लोग घायल हो गए। 

आतंकवादी सेना की वर्दी में थे। कैम्प से जवानों को 3 आतंकवादियों के शव मिले जिनके पास से 1 ए.के. 56 राइफल व गोला बारूद बरामद हुआ है। प्राथमिक जांच में टीम यह पता लगाने का प्रयास कर रही है कि आतंकवादी सैन्य कैम्प में स्थित फैमिली क्वार्टरों तक पहुंचने में कैसे सफल हुए? फिर 12 फरवरी को आतंकवादियों ने श्रीनगर के मुख्य व्यावसायिक केंद्र लाल चौक से कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित कर्ण नगर इलाके में सी.आर.पी.एफ. के कैम्प पर आत्मघाती हमला कर दिया जिसमें सी.आर.पी.एफ. का एक जवान शहीद हो गया तथा एक गंभीर रूप से घायल हो गया। यह लेख लिखे जाने तक मुठभेड़ जारी थी। 

जम्मू-कश्मीर के डी.जी.पी. एस.पी. वैद ने सुंजवां हमले के पीछे शत-प्रतिशत पाक का हाथ होने का दावा किया है परंतु तथ्य यह भी है कि सैन्य ठिकानों और कैम्पों पर अतीत में हुए हमलों से देश के सुरक्षा प्रतिष्ठान कोई खास सबक लेते दिखाई नहीं दे रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में अब तक ऐसे कई हमले हो चुके हैं। सुंजवां आर्मी कैम्प पर हमला एक बार फिर इस तथ्य की याद दिलाता है कि जम्मू-कश्मीर सहित देश भर में सैन्य शिविर आतंकी हमलों के लिहाज से कितने आसान हैं। आर्मी कैम्पों में उचित सिक्योरिटी व इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है और कहीं भी आर्मी कैम्पों के बाहर दीवारें ऊंची नहीं हैं। 

1999 से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर में हमारे सैनिक ठिकानों पर हमले आमतौर पर सुबह को ही ड्यूटी की अदला-बदली के समय किए गए हैं। नवीनतम हमलों में भी ऐसा ही हुआ है लेकिन हर हमले के बाद उनसे मिलने वाले सबक को भुुला दिया जाता है। यदि हम अपने अत्यंत महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों की ही सुरक्षा नहीं कर सकते तो फिर भला आम नागरिकों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है? हवाई ठिकानों, सुरक्षा शिविरों और रिहायशी इलाकों तक आतंकवादियों का पहुंच जाना घोर सुरक्षा चूकों की ओर इशारा करता है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि देश भर में सीमाओं पर सभी सुरक्षा प्रबंधों की समीक्षा करके उनमें पाई जाने वाली त्रुटियों को दूर किया जाए। 

गुप्तचर तंत्र द्वारा दी गई चेतावनियों को निम्रतम स्तर तक पहुंचाने की व्यवस्था करने, सैनिकों की अदला-बदली के दौरान व सैन्य काफिले की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा बल लगाने, आंतरिक सुरक्षा की नियमित समीक्षा करके इस समस्या का स्थायी समाधान तलाश करने, संभावित भीतरघातियों का पता लगाने, किसी भी स्तर पर पाई जाने वाली चूक तत्काल दूर करने और उसके लिए जिम्मेदारी निर्धारित करके दोषियों को दंडित करने की भी आवश्यकता है।—विजय कुमार 

Advertising