‘नौकरीपेशा महिलाओं’ ‘के विरुद्ध हिंसक हुआ तालिबान’

punjabkesari.in Thursday, Nov 12, 2020 - 01:53 AM (IST)

इसी वर्ष अमरीका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिक वापस बुलाने के लिए तालिबान के साथ एक महत्वपूर्ण समझौते को अंतिम रूप दिया है। सभी चाहते हैं कि दशकों से खूनी संघर्ष में फंसे इस देश में शांति आ सके परंतु इस कदम के बाद वहां की सत्ता में तालिबान की पकड़ मजबूत होने से अगर किसी के मन में सर्वाधिक डर पैदा हुआ है तो वे हैं महिलाएं। 

अफगानिस्तान की कुल 2 करोड़ 60 लाख आबादी में से 1 करोड़ 42 लाख महिलाएं हैं। सभी जानते हैं कि जब तालिबान सत्ता में था तो महिलाओं की स्थिति कितनी दयनीय रही। वहां महिलाओं के बिना बुर्के घर से बाहर निकलने तक पर पाबंदी लगा दी गई। कोई महिला अकेली बाहर नहीं जा सकती थी, उसके साथ किसी मर्द का होना जरूरी था। अफगानिस्तान में शरिया कानून लागू करने के समर्थक तालिबान की सोच महिलाओं को केवल घर में बंद रखने की है लेकिन वे पुरुषों को सभी अधिकार देते हैं। वहां एक महिला पर हुआ हालिया हमला इसका एक और प्रमाण है कि वहां महिलाओं का घर से बाहर कदम निकालना और आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करना रूढि़वादियों को कितना अखरता है। 

गजनी प्रांत में बंदूकधारियों ने अफगान पुलिस में नौकरी पाने वाली 33 वर्षीय ‘खतेरा’ पर गोलियां दागीं और उनकी आंखों में चाकू घोंप दिया। इस हमले ने न केवल ‘खतेरा’ की नेत्रज्योति छीन ली बल्कि स्वतंत्र करियर बनाने के उनके सपने को भी चकनाचूर कर दिया। कुछ महीने पहले ही वह गजनी पुलिस की अपराध शाखा में एक अधिकारी के रूप में भर्ती हुई थीं। बचपन से ही उनका सपना घर से बाहर निकल कर काम करना था और सालों तक अपने पिता को इसके लिए समझाने और मनाने में असफल रहने के बाद अंतत: उन्हें अपने पति से समर्थन मिला था। 

हालांकि, उनका हौसला टूटा नहीं है। वह कहती हैं, ‘‘अगर विदेश में इलाज से यह संभव हो सका और मुझे थोड़ी-बहुत नेत्र ज्योति वापस मिल जाए तो मैं नौकरी फिर से शुरू करूंगी।’’ ‘खतेरा’ पर हमला उस बढ़ते रुझान का संकेत है जिसके बारे मेें मानवाधिकार कार्यकत्र्ताओं का कहना है कि नौकरी करने वाली महिलाओं का विरोध हिंसक तरीके से किया जा रहा है। खतेरा के मामले में एक पुलिस अधिकारी होने के नाते तालिबान उनसे और भी नाराज हो सकता है। 

कार्यकत्र्ताओं का मानना है कि अफगानिस्तान के रूढि़वादी सामाजिक मापदंड और अमरीका के वहां से अपने सैनिकों को निकालने की योजना से तालिबान के बढ़ते प्रभाव से यह विरोध बढऩे लगा है। पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान के हालात कुछ सुधरे थे परंतु अब एक बार फिर जैसे-जैसे तालिबान दोबारा आ रहा है, लगता है कि फिर हालात बिगड़ेंगे। वर्तमान में तालिबान दोहा में अफगान सरकार के साथ एक शांति समझौते के लिए बातचीत कर रहा है। कई लोगों को तालिबान के औपचारिक रूप से सत्ता में लौटने की उम्मीद है। बातचीत की प्रगति धीमी है और अधिकारियों, प्रमुख नेताओं से लेकर महिलाओं पर हमलों में वृद्धि हुई है। 


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