अपने नाराज और असंतुष्ट साथियों को भाजपा नेता साथ लें

Tuesday, May 29, 2018 - 02:44 AM (IST)

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों का तेजी से विस्तार हुआ तथा उन्होंने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को 26 दलों तक पहुंचा दिया परंतु श्री वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से हटने के बाद से इसके कई गठबंधन सहयोगी विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए। 

यहां तक कि शिवसेना और 2014 के चुनावों में भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तेलगू देशम ने भी इससे नाता तोड़ लिया है और भाजपा नेतृत्व व सरकार की लगातार आलोचना कर रहे हैं। इसी प्रकार हाशिए पर डाले हुए वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा व विहिप नेता प्रवीण तोगडिय़ा आदि भी समय-समय पर सरकार के कार्यकलापों को लेकर लगातार अपनी नाराजगी जता रहे हैं। 

25 मई को ‘सामना’ में ‘खंजर, विश्वासघात और योगी की चप्पल’ शीर्षक से संपादकीय में उद्धव ठाकरे ने भाजपा को ‘सनकी खूनी’ बताया और लिखा, ‘‘आज भाजपा एक ‘पागल हत्यारा’ बन गई है और इसके रास्ते में जो भी आ रहा है वह उसे खंजर मार रही है...उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी नहीं भोगी हैं और उन्हें चप्पलों से पीटा जाना चाहिए।’’ 26 मई को भाजपा के असंतुष्टï सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘‘ट्रम्प के साथ शिखर वार्ता की शर्तें पूरी करते हुए किम जोंग ने वादे के अनुसार अपने परमाणु हथियारों को ध्वस्त कर दिया न कि भाजपा के कुछ नेताओं की तरह जुमलेबाजी की।’’ 26 मई को ही गठबंधन सहयोगी जद (यू) नेता तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, ‘‘मैं पहले नोटबंदी का समर्थक था पर इससे कितने लोगों को फायदा हुआ? कुछ लोग अपने नकद रुपए को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में सफल रहे।’’

इसी प्रकार किसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी रहे विहिप के पूर्व नेता प्रवीण तोगडिय़ा ने 27 मई को एक बयान में मोदी सरकार पर वायदों से मुकरने तथा लोगों की आशाएं पूरी न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘संघ व भाजपा से जुड़े कई लोग मोदी सरकार से नाराज हैं क्योंकि वह अनेक मुद्दों पर कुछ करती दिखाई नहीं दे रही और कुछ मामलों में बात से पलटती भी नजर आई है।’’ हाल ही में भाजपा से नाता तोडऩे वाले तेलगू देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू ने नरेंद्र मोदी को प्रचार करने वाले और वायदे पूरे करने में विफल रहने वाले प्रधानमंत्री करार दिया। उनके अनुसार ‘‘लोगों का भाजपा और मोदी पर से विश्वास उठ गया है। मोदी बोलते ज्यादा हैं और करते कम हैं। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजीटल इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसे नारे तो खूब उछाले गए लेकिन क्या कुछ किया भी गया है? क्या किसी ने कोई बदलाव देखा है? क्या किसी को लाभ हुआ है? यह व्यक्ति इन सब के बारे में नहीं सोचता।’’ 

‘‘नोटबंदी व जी.एस.टी. जैसे निर्णय बिना सोचे-विचारे लिए गए। लोगों के लिए ए.टी.एम. से अपने ही पैसे निकालना मुश्किल हो गया। जी.एस.टी. इतने बेतुके ढंग से लागू किया गया कि लोगों के लिए छोटे होटलों में भोजन करना भी मुश्किल हो गया। किसानी संकट में है पर यह आदमी एम.एस.पी. देने या स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें लागू करने से इंकार कर रहा है।’’ ‘‘सत्ता प्राप्त करने में विफल रहने पर भाजपा छल-कपट की राजनीति करती है तथा दक्षिण भारत की सत्ता पर कब्जा करने में नाकाम रहने पर वहां अपने राज्यपालों की मार्फत पिछले दरवाजे से घुसने की कोशिश कर रही है। कर्नाटक में भाजपा ने सोचा था कि वह विधायक खरीद लेगी इसलिए उसने वहां सरकार बना ली जो दो दिन बाद ही गिर गई।’’ 

अब जबकि अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, भाजपा को सत्ताच्युत करने के लिए विरोधी दलों में हो रही एकता की कवायद को देखते हुए भाजपा नेतृत्व के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपने नाराज साथियों द्वारा उठाई जा रही आवाजों को सुने और उनकी नाराजगी दूर करे। ऐसा करके ही ‘सबका साथ सबका विकास’ नारा फलीभूत हो सकेगा। यदि अब तक आपस में लड़ते रहने वाले विरोधी दल इकट्ठे हो रहे हैं तो आप लोग जो पहले ही इकट्ठे थे फिर से इकट्ठे होकर देश की सेवा क्यों नहीं कर सकते!—विजय कुमार 

Pardeep

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