‘महिलाओं से छेड़छाड़ बारे कुछ जजों की’टिप्पणियों से सुप्रीमकोर्ट नाराज!

punjabkesari.in Wednesday, Dec 10, 2025 - 05:20 AM (IST)

इस समय जब देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की आंधी सी आई हुई है, उनके यौन उत्पीडऩ और छेड़छाड़ से संबंधित मामलों की सुनवाई के दौरान कुछ जजों के फैसलों को लेकर विवाद भी उत्पन्न हुए तथा सम्बन्धित जजों को उच्च अदालतों से फटकार भी सुननी पड़ी है जिनके चंद उदाहरण निम्न में दर्ज हैं :-

* 18 अक्तूबर, 2023 को ‘कलकत्ता हाईकोर्ट’ ने अपहरण और बलात्कार के मामले में आरोपी को बरी करते हुए कहा कि ‘‘कोई महिला जब मात्र 2 मिनट के आनंद के लिए समर्पण कर देती है तो वह समाज की नजरों में गिर जाती है। इसलिए (महिलाओं को) अपनी यौन इच्छाओं पर काबू रखना चाहिए। 
7 दिसम्बर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने ‘कलकत्ता हाईकोर्ट’ का उक्त फैसला रद्द कर दिया। फिर 2 मई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ‘अभय एस.ओका’ तथा जस्टिस ‘उज्जल भुईयां’ ने कहा कि हाईकोर्टों में पीड़ितों को लज्जित करने और सबको एक जैसा समझने का रुझान बन गया है। ड्यूटी करते हुए जजों को किसी महिला के अधिकारों की बलि नहीं देनी चाहिए।

* 24 सितंबर, 2024 को कर्नाटक हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश के वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिसमें वह एक महिला वकील के प्रति अनुचित और अपमानजनक टिप्पणियां कर रहे थे। इस पर देशव्यापी हंगामा मच गया। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के हस्तक्षेप के बाद कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस ‘वेदव्यासाचार श्रीशानंद’ ने खुली अदालत में अपनी टिप्पणियों के लिए खेद व्यक्त किया।
*  17 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आदेश की आलोचना की, जिसमें एक महिला के लिए ‘अवैध पत्नी’ और ‘वफादार रखैल’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इन शब्दों को बहुत अनुचित बताया और कहा कि ये एक महिला के गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।  

* 17 मार्च, 2025 को एक केस की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस ‘राम मनोहर नारायण मिश्रा’ ने कहा कि (2 आरोपियों द्वारा)नाबालिग लड़की के स्तनों को पकडऩा, उसके पायजामे का नाड़ा तोडऩा और उसके निचले वस्त्र को नीचे खींचने का प्रयास करना, उसे पुलिया की ओर घसीटना बलात्कार के प्रयास का अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए ऐसा करना रेप के प्रयास के अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
देश भर में इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का विरोध शुरू हो गया। ‘वी द वूमेन ऑफ इंडिया’ नामक संगठन ने उक्त फैसले के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट का रुख किया जिसके बाद सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया व 26 मार्च, 2025 को उक्त फैसला तुरन्त रद्द करते हुए सुप्रीमकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ‘बी.आर. गवई’ व जस्टिस ‘ए.जी. मसीह’ ने कहा था कि :  ‘‘हाईकोर्ट की कुछ टिप्पणियां अत्यंत असंवेदनशील और अमानवीय हैं। पीड़ितों पर इनका अत्यंत गहरा असर पड़ता है अर्थात ऐसी बातें पीड़िताओं को शिकायत वापस लेने या गलत बयान देने के लिए मजबूर कर सकती हैं।’’ अब 8 दिसम्बर, 2025  को सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस ‘सूर्यकांत’ तथा जस्टिस ‘जायमाल्या बागची’ की पीठ ने ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट’ के आदेश में की गई असंवेेदनशील टिप्पणियों का स्वत: संज्ञान लेने के बाद सुनवाई शुरू की और इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी पर नाराजगी व्यक्त करते हए पूछा कि :

‘‘महिलाओं के यौन उत्पीडऩ से संबंधित कानूनों में तो उन्हें घूरने, गलत इशारे करने, पीछा करने आदि को भी आपराधिक कृत्य माना गया है।  फिर उस लड़की के मामले में हर पहलू पर विचार क्यों नहीं किया गया? जजों को ऐसी भाषा नहीं बोलनी चाहिए जो पीड़ित को ही डरा दे। इसलिए हम इस केस को जारी रखने का आदेश देते हैं।’’ माननीय सुप्रीमकोर्ट द्वारा ऐसे मामलों में लिए गए संज्ञान के बाद अब उम्मीद की जानी चाहिए कि निचली अदालतों और हाईकोर्ट में इस तरह के मामलों में सुनवाई के दौरान संवेदनशील रवैया अपनाया जाएगा और ऐसे मामलों में पीड़ित लड़कियों व महिलाओं को ऐसी टिप्पणियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।—विजय कुमार


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