‘राम मंदिर निर्माण’ के पक्ष में सुप्रीमकोर्ट का ‘सराहनीय फैसला’

Sunday, Nov 10, 2019 - 12:29 AM (IST)

अंतत: सुप्रीमकोर्ट ने 9 नवम्बर को राम जन्म भूमि विवाद का निपटारा करते हुए अपने फैसले में अयोध्या में विवादित भूमि पर ही राम मंदिर बनाने का आदेश देकर 134 वर्षों से लटकते आ रहे विवाद को समाप्त करने का सराहनीय निर्णय सुना दिया।

हिंदुओं की मान्यता है कि अयोध्या में भगवान श्री राम के जन्म स्थान पर एक भव्य मंदिर विराजमान था जिसे 1528 में मुगल आक्रमणकारी बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तुड़वा कर वहां ‘बाबरी मस्जिद’ बनवा दी थी। 1853 में इस मुद्दे पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच हुई पहली हिंसा के बाद से हिन्दुओं और मुसलमानों में राम जन्म भूमि को लेकर विवाद चला आ रहा था और 1885 में यह मामला पहली बार अदालत में पहुंचा।

विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए निर्मोही अखाड़ा ने 17 दिसम्बर, 1959 को तथा 18 दिसम्बर, 1961 को यू.पी. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल के स्वामित्व के लिए मुकद्दमे दायर किए और 1984 में विहिप ने एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।

6 दिसम्बर, 1992 को हजारों कारसेवकों ने अयोध्या पहुंच कर विवादित ढांचा गिरा दिया जिसके बाद देश के कई हिस्सों में भड़के दंगों में अनेक लोग मारे गए। उसके बाद एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वायदा किया। 8 मार्च, 2019 को सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में इस लटकते आ रहे मसले के निपटारे के लिए मध्यस्थता कमेटी का गठन हुआ जिसकी रिपोर्ट पर सुनवाई करने के बाद 2 अगस्त, 2019 को सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि यह मामला मध्यस्थता से नहीं सुलझाया जा सकता।

6 अगस्त से सुप्रीमकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, धनंजय वाई. चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस.अब्दुल नजीर की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितम्बर, 2010 में सुनाए गए अयोध्या के 2.77 एकड़ क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और ‘राम लला विराजमान’ के बीच तीन हिस्सों में बांटने के आदेश  के विरुद्ध दायर 14 याचिकाओं पर नियमित सुनवाई शुरू कर दी।

लगातार 40 दिन दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 16 अक्तूबर को सुनवाई पूरी करके फैसला 17 नवम्बर के बीच किसी भी समय सुनाने के लिए सुरक्षित रख लिया जिस दिन रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं। कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बीच अंतत: 9 नवम्बर को अदालत ने सर्वसम्मति से अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय पलटते हुए प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने लगभग 45 मिनट में एक-एक करके पूरा फैसला पढ़ा और कहा कि अयोध्या में राम के जन्म को लेकर कोई संदेह नहीं है तथा बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। उन्होंने विवादित जमीन के बंटवारे से इंकार करते हुए निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड दोनों के दावों को खारिज करके ‘राम लला विराजमान’ के पक्ष में सशर्त फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान में हर धर्म को बराबर का सम्मान दिया गया है अत: विवादित भूमि पर ही मंदिर बनेगा।

उन्होंने इस भूमि का स्वामित्व ‘रामलला विराजमान’ को देने और वहां मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तय करने के लिए 3 महीने में एक ट्रस्ट बनाने का सरकार को आदेश दिया। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व देने का आदेश दिया गया है। अदालत ने मुसलमान (सुन्नी) पक्ष को मस्जिद के लिए 5 एकड़ भूमि अयोध्या में ही किसी स्थान पर देने का आदेश दिया जो सरकार द्वारा अधिगृहीत 67 एकड़ भूमि में से या किसी अन्य जगह पर दी जा सकती है।

प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढऩे के प्रमाण भी नहीं हैं जबकि हिन्दू इससे पहले अंदरुनी हिस्से में भी पूजा करते थे और सदियों से पूजा करते रहे हैं। देर से ही सही अंतत: श्री गोगोई के नेतृत्व वाली सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ ने अत्यंत संवेदनशील मुद्दे पर आसान भाषा में और समझ में आने वाला सर्वसम्मत, सही व संतुलित फैसला सुना कर न्याय पालिका की निष्पक्षता और सर्वोच्चता को सिद्ध किया है जिसका श्रेय श्री गोगोई को ही जाता है।

शनिवार का दिन भारत के लिए अत्यंत शुभ रहा है। इसी दिन जहां देश को वर्षों से चली आ रही राम जन्म भूमि जैसी संवेदनशील समस्या से मुक्ति मिली है, वहीं श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब को पंजाब के डेरा बाबा नानक से जोडऩे वाले करतारपुर साहिब गलियारे का उद्घाटन भी सम्पन्न हुआ है।                                —विजय कुमार 

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