सुप्रीम कोर्ट द्वारा जन्मभूमि विवाद की सभी पुनर्विचार याचिकाएं रद्द

Friday, Dec 13, 2019 - 02:52 AM (IST)

100 वर्षों से अधिक समय से लटकते आ रहे राम जन्म भूमि विवाद के संबंध में लगातार 40 दिन दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बीच सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ जिसमें न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, धनंजय चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर शामिल थे, ने सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाया। 

उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा था कि वह 17 नवम्बर को रिटायर होने से पूर्व ही इस मामले पर फैसला सुना देंगे परंतु उन्होंने 9 नवम्बर को ही अपनी पीठ का सर्वसम्मत फैसला सुना दिया। इसके अनुसार निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड दोनों के दावों को खारिज करके ‘रामलला विराजमान’ के पक्ष में सशर्त फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि संविधान में हर धर्म को बराबर का सम्मान दिया गया है अत: विवादित भूमि पर ही मंदिर बनेगा। पीठ ने अपने फैसले में पूरी 2.77 एकड़ भूमि रामलला विराजमान को देने और वहां मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तय करने के लिए 3 महीने में एक ट्रस्ट बनाने का सरकार को आदेश दिया था।

अदालत ने मुसलमान (सुन्नी) पक्ष को मस्जिद के लिए 5 एकड़ भूमि अयोध्या में ही किसी स्थान पर देने का आदेश भी दिया जो सरकार द्वारा अधिगृहीत 67 एकड़ भूमि में से या किसी अन्य जगह पर दी जा सकती है। उल्लेखनीय है कि राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी के पिता हाशिम अंसारी अयोध्या मामले में दूसरे वादी स्व. महंत रामचंद्र दास के साथ एक ही रिक्शा या तांगे पर बैठ कर मामले के संबंध में सुनवाई के लिए अदालत में जाते और वापस आते थे। हाशिम अंसारी की 2016 में मृत्यु के बाद मुख्यवादी बने इकबाल अंसारी ने भी न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के फैसले से पूर्ण सहमति जताते हुए कहा कि वह कोई रिव्यू पटीशन दाखिल नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या विवाद तो एक साधारण सा भूमि विवाद था लेकिन बाहर के लोग ही लोगों को भड़काने का काम करते हैं और उनका यह कथन सच साबित भी हो गया। 

इकबाल अंसारी ने कोई पुर्नविचार याचिका दाखिल नहीं की और पहले इस मामले में किसी भी पक्षकार ने पुनर्विचार याचिका दायर न करने की बात कही थी पर बाद में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व अन्य मुस्लिम पक्षकारों तथा निर्मोही अखाड़े ने उक्त फैसले पर पुनर्विचार के लिए अनेक याचिकाएं दायर कर दीं। एक याचिका अखिल भारत हिन्दू महासभा ने भी दायर की थी जिसमें मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को अलाट करने के 9 नवम्बर के सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाए थे। 

अब 12 दिसम्बर को सुप्रीमकोर्ट के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने, जिसमें 9 नवम्बर को फैसला सुनाने वाली पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर के अलावा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल थे, इस बारे दायर सभी पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुनाया। 

एक-एक करके इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पीठ ने यह कहते हुए इन्हें खारिज कर दिया कि इनमें सुनवाई योग्य कुछ भी नहीं है। इसका मतलब यह है कि सर्वोच्च न्यायालय का 9 नवम्बर को सुनाया गया फैसला ही अंतिम है और इन याचिकाओं पर पुनर्विचार करने का कोई आधार नहीं है। न्यायमूर्ति बोबडे के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा सुनाया गया यह फैसला भी उतना ही ऐतिहासिक है जितना ऐतिहासिक पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय पीठ का सुनाया हुआ फैसला था। इस फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण में अब कोई अड़चन नहीं रह गई और आशा करनी चाहिए कि अब जल्दी ही अयोध्या में राम जन्म भूमि पर रामलला का भव्य मंदिर बनना शुरू हो जाएगा जिससे करोड़ों हिन्दू धर्म प्रेमियों की आस्था जुड़ी हुई है।—विजय कुमार 

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