चीनी शासकों द्वारा हांगकांग के लोगों और मुसलमानों का दमन

Thursday, Jul 25, 2019 - 02:56 AM (IST)

विश्व के अग्रणी शहरों में से एक हांगकांग को इंगलैंड ने 1997 में स्वायत्तता की शर्त के साथ चीन को सौंपा था तथा चीन ने ‘एक देश दो व्यवस्था’ की अïवधारणा के अंतर्गत हांगकांग को अगले 50 वर्ष तक अपनी स्वतंत्रता तथा सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था बनाए रखने की गारंटी दी थी। 

इसी कारण वहां रहने वाले लोग स्वयं को चीन का हिस्सा नहीं मानते। वे खुलेआम सरकार की आलोचना तो पहले ही करते थे, लेकिन कुछ समय पूर्व चीन द्वारा लाए गए नए प्रत्यर्पण बिल ने हांगकांग के लोगों की चिंताओं को बढ़ा दिया और उनका कहना है कि ‘‘प्रत्यर्पण बिल में किए गए संशोधन हांगकांग की स्वायत्तता को प्रभावित करेंगे।’’ उनका कहना था कि नया संशोधन हांगकांग के लोगों को भी चीन की दलदली न्यायिक व्यवस्था में धकेल देगा जहां राजनीतिक विरोधियों पर आर्थिक अपराधों में संलिप्त होने व राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होने जैसे  आरोप लगाए जाते हैं जिनका अंजाम सजा के रूप में ही निकलता है। 

इन्हीं खतरों को भांपते हुए इन संशोधनों के विरुद्ध पिछले लगभग 2 महीनों से लोग चीन सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतरे हुए हैं और भारी प्रदर्शन और तोड़-फोड़ कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी प्रत्यर्पण विधेयक वापस लेने और सरकार के प्रमुख कार्यकारी कैरी लैम के त्यागपत्र की मांग कर रहे हैं। गत 21 जुलाई को हांगकांग में काले कपड़े पहने हजारों प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन किया और चीन के स्थानीय दफ्तर पर अंडे फैंके जिसके जवाब में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की पिटाई की और उन पर आंसू गैस छोडऩे और लाठीचार्ज करने के अलावा रबड़ के बुलेट भी चलाए। 

इन प्रदर्शनों को चीन सरकार ने दंगा बताया है। प्रत्यर्पण बिल के विरुद्ध प्रदर्शनों को हांगकांग का हाल के वर्षों का सबसे बड़ा संकट माना जा रहा था जिसे अब वापस लेने की घोषणा कर दी गई है परंतु चीन इस पर कितना अमल करता है यह भविष्य के गर्भ में है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पेइचिंग उनके शासकीय मूल्यों और न्यायिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन करके हांगकांग की बर्बादी का कारण न बने। एक ओर जहां चीन हांगकांग के स्थानीय लोगों की स्वायत्तता और अधिकारों का हनन कर रहा है तो दूसरी ओर उसने अपने शिनजियांग प्रांत में 10 लाख मुसलमानों को बंदी बनाकर रखा हुआ है। 

यह भी एक विडम्बना ही है कि चीन में उईगर तथा अन्य मुसलमानों के विरुद्ध ज्यादतियों की पूरे विश्व में चर्चा हो रही है परन्तु इस्लाम का नामलेवा और खुद को चीन का अच्छा दोस्त कहने वाला पाकिस्तान चुप है। पाकिस्तानी शासकों को इन मुसलमानों की तकलीफें नजर नहीं आ रहीं। पाकिस्तानी शासकों की नजर तो केवल चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरीडोर) पर अटकी हुई है और उन्हें डर है कि स्थानीय या अंतर्राष्ट्रीय मंच पर यह मामला उठाने से कहीं सी.पी.ई.सी. पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़ जाए। कुल मिलाकर आज जहां चीनी शासक हांगकांग के स्थानीय निवासियों का दमन कर रहे हैं तो दूसरी ओर उन्होंने अपने यहां मुसलमानों पर अत्याचार शुरू कर रखे हैं जो उनकी निरंकुशता का ही द्योतक है।—विजय कुमार

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