सपा के ‘इधर अली उधर अली’ उर्फ बेनी प्रसाद वर्मा

punjabkesari.in Wednesday, May 18, 2016 - 12:39 AM (IST)

भारतीय राजनीति में अपनी सुविधा के अनुसार निष्ठï व दल बदलने का रुझान बेहद बढ़ गया है। इसकी ताजा मिसाल मुलायम सिंह यादव के साथी बेनी प्रसाद वर्मा हैं जो समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 
 
उन्होंने ही पार्टी का यह नाम सुझाया था। पार्टी के झंडे व चुनाव चिन्ह का सुझाव भी उन्हीं का था। इन्हें मुलायम सिंह का भरोसेमंद साथी माना जाता था लेकिन पार्टी में अमर सिंह के बढ़ते प्रभाव के चलते बेनी प्रसाद वर्मा ने 2007 मेें मुलायम सिंह यादव से नाराज होकर समाजवादी पार्टी छोड़ दी तथा 2009 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया। 
 
वह गोंडा से कांग्रेस टिकट पर संसद का चुनाव लड़ कर लोकसभा में पहुंचे और राहुल गांधी के साथ इनकी निकटता के कारण 12 जुलाई, 2011 को इन्हें कांग्रेस नीत यू.पी.ए.-2 की केंद्रीय सरकार में इस्पात मंत्री भी बनाया गया। 
 
अपने विवादास्पद बयानों के लिए आलोचना के पात्र बनते रहने वाले बेनी प्रसाद वर्मा ने यू.पी. के चुनावों के दौरान फरवरी, 2012 में करीमगंज में एक सार्वजनिक सभा में चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध मुसलमानों का कोटा बढ़ाने की बात कह कर भारी विवाद पैदा कर दिया था और चुनाव आयोग को चुनौती दी थी कि अगर उसमें हिम्मत है तो उन्हें गिरफ्तार कर ले।
 
 इसके बाद बेनी प्रसाद वर्मा ने लगातार मुलायम सिंह यादव तथा समाजवादी पार्टी के विरुद्ध बयानों के बाण छोडऩा शुरू कर दिया और इसके जवाब में सपा ने भी उनके छिपे हुए रहस्यों के पर्दे खोलने में कोई संकोच नहीं किया। 18 मार्च, 2013 को बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम सिंह यादव पर ‘आतंकवादियों के साथ संबंध’ होने का आरोप लगाकर धमाका कर दिया जिसे लेकर सपा ने उनसे त्यागपत्र की मांग की और इन्हें माफी मांगनी पड़ी। 
 
फिर 31 मार्च, 2013 को बेनी प्रसाद वर्मा ने यह कहा कि ‘‘अगले लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी की शवयात्रा निकलेगी। ’’ 2 जुलाई, 2013 को बेनी प्रसाद वर्मा ने समाजवादी पार्टी को ‘झूठ व छल पर आधारित पार्टी’  बताते हुए कहा कि, ‘‘कांग्रेस इसे समाप्त कर देगी।’’ 
 
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं परन्तु वह प्रधानमंत्री निवास पर झाड़ू लगाने के योग्य भी नहीं हैं। उन्हें पहले प्रधानमंत्री के निवास पर झाड़ू लगाने वाले की नौकरी पाने की कोशिश करनी चाहिए।’’ इस पर सपा नेता शिवपाल यादव ने 31 मार्च, 2013 को ही वर्मा पर अफीम तस्कर होने व चरस का सेवन करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि ‘‘इन दिनों वह तम्बाकू में ‘कोई चीज’ मिला कर ज्यादा ही पीने लगे हैं।’’  
 
बेनी प्रसाद वर्मा की ऐसी ही अनर्गल बातों का भरपूर जवाब देते हुए समाजवादी पार्टी के नेता कमाल फारूकी ने कहा था कि , ‘‘बेनी प्रसाद वर्मा पागल है।’’  सपा नेता आजम खां के अनुसार बेनी वर्मा का मंचों से उतारे जाने का इतिहास रहा है। बहरहाल जिस प्रकार बेनी प्रसाद वर्मा ने 2007 में ‘सपा’ के साइकिल से उतर कर  कांग्रेस का ‘हाथ’ थामा था, उसी प्रकार अब 13 मई को वह ‘हाथ’ का साथ छोड़ कर एक बार फिर समाजवादी पार्टी के साइकिल पर सवार हो गए हैं और जैसे सपा छोड़ते समय उन्हें सपा और मुलायम सिंह में भारी दोष दिखने लगे थे, वैसे ही अब उन्हें कांग्रेस में दोष ही दोष नजर आने लगे हैं। 
 
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस में रहते हुए मेरा दम घुट रहा था और मैं वहां उपेक्षित महसूस कर रहा था। मैं कोई जिम्मेदारी पाने के लिए सोनिया जी और राहुल जी से भी मिला लेकिन मुझे कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई।’’ सपा में लौटने का खूबसूरत बहाना पेश करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं मुलायम सिंह का तो विरोध कर सकता हूं लेकिन अखिलेश का नहीं जो मेरे बेटे के समान है। अखिलेश बेदाग, विनम्र और भ्रष्टïाचार से मुक्त है।’’
 
बेनी प्रसाद वर्मा के इस घर वापसी समारोह में मौजूद अखिलेश यादव  बोले, ‘‘पुरानी शराब और पुराने दोस्त दोनों हमेशा अच्छे होते हैं।’’ हम तो पहले ही लिखते रहे हैं और यह बार-बार सिद्ध हो चुका है कि मूल दल छोड़ कर दूसरे पाले में जाने वाले न इधर के रहते हैं और न उधर के। दूसरी पार्टी में कभी भी उन्हें सम्मान नहीं मिलता क्योंकि उनकी निष्ठï संदिग्ध रहती है और पार्टी के पुराने वर्कर भी उन्हें स्वीकार नहीं करते।
 
पार्टी का नेतृत्व भी ऐसे दल-बदलुओं का इस्तेमाल अपने निहित स्वार्थों की पूॢत के लिए ही करता है और दल बदलू अपनी निष्ठï तथा प्रतिष्ठï दोनों पर बट्टï लगा लेते हैं। ऐसे ही लोगों को ‘इधर अली उधर अली’ की संज्ञा दी जाती है जिनमें बेनी प्रसाद वर्मा भी अब शामिल हो गए हैं।         
     —विजय कुमार 

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