जीवन की संध्या संतानों के हाथों मां-बाप पर अत्याचारों की चंद ताजा दुखद गाथाएं

Monday, Jun 12, 2017 - 11:08 PM (IST)

जैसा कि हम अक्सर लिखते  रहते हैं, हमारे देश में अपनी संतानों के हाथों बुजुर्ग बुरी तरह उपेक्षित हैं। जिन संतानों से जीवन की संध्या में बूढ़े मां-बाप अपनी देखभाल और सेवा की उम्मीद रखते हैं, आज वही संतानें उन्हें दुखी कर रही हैं जिनके चंद ताजा उदाहरण निम्र में दर्ज हैं :

04 मई को ग्रेटर नोएडा के ‘डेरीन सकनर’ गांव में शराब पीकर अपनी पत्नी और 7 साल की बेटी से मारपीट करने वाले बेटे को जब उसकी मां ने रोका तो उसने न सिर्फ अपनी मां को भी पीटा बल्कि उसके कपड़े फाड़ कर उसके साथ अश्लील हरकत कर डाली। जब उसका पिता उसे बचाने आया तो बेटे ने उसे भी पीट दिया।

18 मई को छत्तीसगढ़ के गांव कोरवापाड़ा में जब 62 वर्षीय वृद्धा तबीयत खराब होने के कारण खाना नहीं बना सकी तो उसके बेटे ने उसे डंडे से बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया और मार से बेहोश पड़ी मां पर भी डंडे बरसाता रहा जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

24 मई को 8 दिन की छुट्टी लेकर अपने घर डीडीनगर (ग्वालियर) आए  थानेदार हनुमंत सिंह तोमर की सिर में देसी कट्टे से गोली मार कर उनके बेटे अजय ने उस समय हत्या कर दी जब वह खाना खाकर घर में सो रहा था।

29 मई को बंगाल के मालदा में कविता झा नामक महिला ने लीगल सॢवस सैल में रिपोर्ट लिखवाई कि उसके छोटे बेटे संजीव ने तीन वर्ष पूर्व उसके दिवंगत पति की नौकरी धोखे से यह कह कर हथिया ली कि वह वेतन का आधा हिस्सा उसे दिया करेगा परंतु उसे धेला भी नहीं दिया तथा मारपीट कर घर से निकाल देने के अलावा अपने दोस्तों से भी पिटवाया।

05 जून को मुम्बई के भांडुप में 70 वर्षीय राधेश्याम पाठक और उनकी पत्नी लालती देवी को उनके 2 बेटों ने उन्हीं के खरीदे हुए अपार्टमैंट से बाहर निकाल दिया जहां वे 1969 से रहते आ रहे थे।’’

श्री राधेश्याम पाठक के अनुसार वे 2 वर्षों में 7 बार अपने अत्याचारी बेटों राकेश और विनोद के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाने पुलिस की शरण में गए परंतु कोई सुनवाई नहीं हुई।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं 1969 में  मुम्बई आया और कपड़ा मिलों में 12-12 घंटे काम करके यह आशियाना बनाया। पत्नी के गंभीर बीमार होने के बावजूद मैंने अपना पेट काट कर बच्चो को पढ़ाया और काम धंधे पर लगाया लेकिन दोनों ने हमारा उपकार मानने की बजाय हम पर ही जुल्म ढाना और पैसे-पैसे के लिए रुलाना और बहुओं ने भूखा मारने के लिए उन्हें रोटी तक के लिए तरसाना शुरू कर दिया।’’

‘‘कभी रोटी दे देते तो सब्जी न देते और चावल दे देते तो दाल न देते और गत वर्ष जब मैं गंभीर रूप से बीमार होने के कारण अस्पताल में उपचाराधीन था तो मेरा कोई भी बेटा अस्पताल में मेरा हाल पूछने नहीं आया कि मैं जिंदा भी हूं या मर गया हूं।’’

08 जून को रोहतक पुलिस ने डलौरी गांव में एक 66 वर्षीय बुजुर्ग बलबीर सिंह को उसके बेटे व एक अन्य रिश्तेदार से छुड़वाया जो उन्हें इसलिए कमरे में बंद करके टार्चर कर रहे थे क्योंकि उसने अपनी साढ़े तीन एकड़ कृषि भूमि का इंतकाल बेटे के नाम करने से इंकार कर दिया था। बलबीर सिंह के अनुसार उनका बेटा और परिवार वाले तीन दिनों से उसे भूखा-प्यासा चारपाई से बांध कर उसकी पिटाई कर रहे थे।

10 जून को रोहिणी में 30 वर्षीय युवक कैलाश ने अपने 60 वर्षीय पिता भोमा राम की पीट-पीट कर हत्या कर दी क्योंकि उसने अपनी बेची हुई जमीन के पैसे उसे सौंपने से इंकार कर दिया था।

जिस देश में कभी माता-पिता को भगवान तुल्य मान कर संतान उनका अत्यधिक सम्मान और सत्कार करती थी आज उसी देश में संतानों के हाथों अपने बुजुर्ग माता-पिता के उत्पीडऩ की हृदय विदारक गाथाएं इस तथ्य का मुंह बोलता प्रमाण हैं कि आज की चंद संतानें अपने माता-पिता के प्रति किस प्रकार कृतघ्र और बेरहम हो चुकी हैं।    —विजय कुमार 

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