कलियुगी बेटे-बहू के नाम फ्लैट न करने पर उन्होंने मां के मुंह पर थूक दिया

punjabkesari.in Saturday, Aug 13, 2016 - 01:59 AM (IST)

भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 60 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 11 करोड़ बुजुर्ग हैं जिनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है परंतु इसके साथ एक कटु तथ्य यह भी है कि यहां बड़ी संख्या में बुजुर्ग अपनी ही संतानों द्वारा उपेक्षित, अपमानित और उत्पीड़ित हो रहे हैं।

 
एक रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत बुजुर्गों को अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी संतानों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है और अपने बेटों-बहुओं, बेटियों तथा दामादों के हाथों दुव्र्यवहार एवं अपमान झेलना पड़ता है।
 
अक्सर ऐसे बुजुर्ग मेरे पास अपनी पीड़ा व्यक्त करने आते रहते हैं जिनसे उनकी संतानों ने जमीन, जायदाद अपने नाम लिखवा लेने के बाद उन्हें उनके हाल पर बेसहारा छोड़ दिया। 
 
कुछ समय पूर्व मेरे पास ऐसी ही दो महिलाएं आईं। संतानों द्वारा पीड़ित होने के बावजूद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनके बच्चों को पुलिस से ‘दबका’ तो मरवा दूं परंतु पुलिस वाले उन्हें मारपीट न करें। यह बुजुर्गों का हृदय है जो उन्हें उत्पीड़ित करने वाली संतान को भी पीड़ित होते नहीं देख सकते।
 
2013 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (रि.) शांति स्वरूप दीवान और उनके बेटे के बीच कोठी को लेकर काफी विवाद उठा था जिसके लिए श्री शांति स्वरूप को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी थी। 
 
माता-पिता के प्रति संतानों का ऐसा अनुचित रवैया देखते हुए सर्वप्रथम हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बना कर पीड़ितों को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने और दोषी संतान को माता-पिता की सम्पत्ति और सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी से वंचित करने तथा सरकारी सेवारत कर्मचारियों के वेतन से समुचित राशि काट कर पीड़ित बुजुर्गों को देने का प्रावधान किया था। 
 
केंद्र सरकार के ‘अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखभाल व कल्याण विधेयक-2007’ के अनुसार बुजुर्गों की देखभाल न करने पर 3 मास तक कैद हो सकती है तथा इसके विरुद्ध अपील का प्रावधान भी नहीं है। कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी ऐसे कानून बनाए हैं परंतु इन कानूनों तथा अपने अधिकारों के संबंध में अभी तक ज्यादा बुजुर्गों को जानकारी नहीं है। 
 
ऐसे ही 28 जुलाई, 2015 को दसूहा (होशियारपुर) के एस.डी.एम. ने 2 बुजुर्गों द्वारा अपनी बेटी और बेटों के नाम की हुई जमीन की रजिस्ट्रियां रद्द करके जमीन पुन: उन्हें सौंपने के आदेश जारी किए थे। 
 
अब ऐसा ही फैसला ठाणे के जिला मैजिस्ट्रेट ने ‘माता-पिता भरण-पोषण कानून-2007’  के तहत सुनाते हुए डोम्बीवली की 76 वर्षीय वृद्धा को उसके फ्लैट का कब्जा दिलवा कर अपने बेटे व बहू के उत्पीड़ऩ से मुक्ति दिलाई है। 
 
इस महिला के अनुसार ‘‘मैंने यह फ्लैट 40 लाख रुपए में इस उम्मीद से खरीदा था कि मैं अपना शेष जीवन यहां रह कर शांतिपूर्वक बिता सकूंगी। मैंने कार खरीदने के लिए भी अपने बेटे को पैसे दिए परंतु शादी के 6 महीने बाद ही बेटे-बहू ने मेरी जान खानी शुरू कर दी कि मैं फ्लैट उनके नाम कर दूं। इसके लिए इन्होंने मुझे तंग एवं टार्चर करना शुरू कर दिया।’’
 
‘‘मेरा बेटा व बहू मुझसे मारपीट करते तथा भोजन भी नहीं देते थे। उन्होंने कई बार मेरी दवाएं बाहर फैंक दीं और एक बार उन्होंने मेरे मुंह पर थूक कर मुझे मेरे ही फ्लैट से बाहर भी निकाल दिया।’’ 
 
पुलिस में शिकायत करने पर भी जब कोई लाभ न हुआ तो उसने गत वर्ष नवम्बर में जिले के एस.डी.एम. के पास  शिकायत दर्ज करवाई जिस पर महिला के बेटे और बहू को फटकार लगाते हुए एस.डी.एम. ने उन्हें 3 अगस्त को फ्लैट से बेदखल कर फ्लैट महिला को सौंप दिया।
 
पहले दसूहा और अब ठाणे के एस.डी.एम. द्वारा संतानों द्वारा पीड़ित बुजुर्गों को उनकी सम्पत्ति लौटाने के आदेश सराहनीय हैं। इन कानूनी प्रावधानों का पालन यदि सभी संबंधित अधिकारी कठोरतापूर्वक करवाएं तो संतानों द्वारा उपेक्षित बुजुर्गों की दशा में काफी सुधार हो सकता है।  
 
भारत में, जहां बुजुर्गों को अतीत में सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, आज उनकी यह दयनीय स्थिति परेशान करने वाली एवं भारतीय संस्कृति-संस्कारों के विपरीत है। आज की संतानों को स्मरण रखना चाहिए कि जैसा व्यवहार आज वे अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ कर रहे हैं, कल को उनकी संतानें भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगी।
 

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