संसद के 9 फरवरी के अधिवेशन में दिखे ‘कुछ भावपूर्ण दृश्य’

Thursday, Feb 11, 2021 - 03:51 AM (IST)

संसद में सत्ता पक्ष और विरोधी दलों के बीच कृषि कानूनों को लेकर भारी गर्मागर्मी और टकराव के माहौल के बीच 9 फरवरी को सुखद हवा के झोंके के समान कुछ अच्छे दृश्य देखने को मिले। राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद (कांग्रेस) सहित 4 सदस्यों की विदाई के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुलाम नबी आजाद ने एक-दूसरे की जम कर तारीफ की और आजाद के साथ अपनी पुरानी मित्रता के किस्से सुनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंखों से 13 मिनट के भाषण में 3 बार आंसू छलके। 

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘उस समय जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री और गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे तो आतंकी हमले में गुजरात के कुछ पर्यटकों के मारे जाने का समाचार इन्होंने सबसे पहले मुझे फूट-फूट कर इस प्रकार रोते हुए दिया था जैसे वे इनके अपने ही प्रियजन हों।’’ 

आंखें पोंछते हुए वह बोले, ‘‘सत्ता तो आती-जाती रहती है परंतु बहुत कम लोगों को ही इसे पचाना आता है...एक मित्र के रूप में मैं इन वर्षों में उनके कार्यों को देखकर इनका सम्मान करता हूं। नेता विपक्ष के पद पर रहते हुए इन्होंने कभी दबदबा कायम करने का प्रयास नहीं किया।’’ ‘‘इनकी सौम्यता, विनम्रता और देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना प्रशंसनीय है। इनकी यह प्रतिबद्धता इन्हें आगे भी चैन से बैठने नहीं देगी और इनके अनुभवों से देश लाभान्वित होता रहेगा। इसीलिए मेरा इनसे अनुरोध है कि आप कभी भी ऐसा न मानें कि आप सदन में नहीं हैं। मेरे दरवाजे हमेशा आप के लिए खुले हैं। मैं कभी भी आपको कमजोर नहीं पडऩे दूंगा।’’ 

स्वयं गुलाम नबी आजाद भी गुजरी बातों को याद कर अपने आंसू नहीं रोक पाए और बोले, ‘‘भाजपा हमेशा ही राष्टï्रवादी राजनीति का हिस्सा रही है...मैं उन खुशकिस्मत लोगों में से हूं जो कभी पाकिस्तान नहीं गए परंतु जब मैं पाकिस्तान की हालत के बारे में पढ़ता हूं तो मुझे गर्व होता है और मैं अपने हिन्दुस्तानी मुसलमान होने पर  स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं।’’ ‘‘पिछले 30-35 वर्षों में अफगानिस्तान से लेकर ईराक तक इस्लामिक देश आपस में लड़-लड़ कर स्वयं को खत्म करते जा रहे हैं लेकिन भारत में कोई झगड़ा नहीं है...कोई हिन्दुत्व नहीं है...।’’ 

एक शेयर के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा : 
बदलेगा न मेरे बाद भी मौजूं ए गुफ्तगू, 
मैं जा चुका होऊंगा फिर भी तेरी महफिल में रहूंगा। 

आजाद के इस भाषण के बाद भाजपा के साथ उनके भावी रिश्तों पर चर्चा शुरू हो गई है। सदन में ठहाकों के बीच भाजपा की सहयोगी पार्टी ‘आर.पी.आई.’ के नेता तथा केंद्रीय राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा, ‘‘आपको इस सदन में दोबारा आना चाहिए। यदि आपको कांग्रेस यहां नहीं लाती तो हम लाने के लिए तैयार हैं। इसमें कोई दिक्कत नहीं है।’’ इसी दिन राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने केंद्र और राज्य सरकारों को सुझाव दिया, ‘‘यदि केंद्र और राज्य सरकारें कोई कानून बनाने के लिए अध्यादेश लाने के तरीके से परहेज करें तो यह बहुत अच्छा होगा। कानून बनाने के लिए राजनीतिक आम सहमति जरूरी है।’’ ‘‘राजनीतिक दलों की इस सोच से कोई लाभ होने वाला नहीं कि आज मैं सत्ता में हूं तो अध्यादेश ला सकता हूं। 

सरकार को कानून बनाने में जहां तक संभव हो विधायी प्रक्रिया को ही अपनाना चाहिए।’’ 9 फरवरी को ही लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए नैशनल कांफ्रैंस के नेता डा. फारूक अब्दुल्ला बोले : 
‘‘भगवान राम तो पूरे विश्व के हैं और यदि वह विश्व के हैं तो हम सबके हैं। राम या अल्लाह एक ही ईश्वर के नाम हैं जिनके सामने हम झुकते हैं। एक ही भगवान ने हम सभी को बनाया है चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान। कुरान सिर्फ हमारा नहीं सबका है, बाइबल सबका है।’’ ‘‘मैं मस्जिद में जाता हूं, आप मंदिर में जाते हैं कुछ लोग चर्च तो कुछ गुरुद्वारे में जाते हैं। कोई डाक्टर कभी नहीं पूछता कि यह खून हिन्दू का है या मुसलमान का। अल्लाह और भगवान में फर्क किया तो देश टूट जाएगा।’’ 

नए कृषि कानूनों पर उन्होंने कहा, ‘‘हमें इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। हम सब इस देश के हैं। हमें हर देशवासी का सम्मान करना चाहिए।’’ मैं हाथ जोड़ कर अनुरोध करता हूं कि आप समाधान के साथ आगे आएं। ‘‘कृषि कानून कोई ‘खुदाई किताब’ (ईश्वरीय ऋचा) नहीं है कि इसे बदला नहीं जा सकता। कानून हमने बनाया है। यदि किसान इसे समाप्त करवाना चाहते हैं तो आप उनसे बात क्यों नहीं कर सकते!’’ संसद के दोनों सदनों में 9 फरवरी को कही गई ये बातें सचमुच अभिभूत करने वाली हैं परंतु प्रश्र तो यह है कि संसद में जैसा सौहार्द 9 फरवरी को देखने को मिला, क्या वह आगे भी जारी रहेगा या एक अपवाद और सुहानी याद बन कर ही रह जाएगा!—विजय कुमार 

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