पूर्व प्रधानमंत्री ‘नरसिम्हा राव के साथ’ गुजारीं कुछ ‘भूली-बिसरी यादें’

punjabkesari.in Wednesday, Jun 30, 2021 - 04:58 AM (IST)

देश की आर्थिक एवं विदेश नीतियों को दिशा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव जी की 28 जून को 100वीं जयंती के अवसर पर उनसे जुड़ी चंद यादें ताजा हो गईं। नेहरू-गांधी परिवार के बाद वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने 1991 से 1996 तक पांच वर्ष यह दायित्व निभाया। इन्हें ‘एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ कहा जाता था। राजीव गांधी की हत्या के बाद बुरी तरह गुटबाजी की शिकार कांग्रेस के नेताओं में से प्रधानमंत्री के लिए पसंदीदा उम्मीदवारों में वह सबसे नीचे की पायदान पर थे। ऐसे में इन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति वैंकटरमन का साथ मिला जिन्होंने सबसे बड़े राजनीतिक गुट के नेता होने के नाते इन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। 

ये उस समय कांग्रेस में सर्वाधिक अनुभवी नेता थे जो इससे पूर्व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री (1971-1973) के अलावा कांग्रेस के महासचिव तथा केंद्र में रक्षा राज्यमंत्री, विदेश मंत्री, गृह और मानव संसाधन विकास मंत्री रह चुके थे और 1992 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। 17 भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रतिभा के धनी नरसि हा राव को कुछ लोग ‘विश्व गुरु’ मानते थे। उन्हें भारत में आॢथक सुधारों के जनक के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने देश की कमान बड़े कठिन आर्थिक समय में संभाली थी। 

इन्होंने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डा. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बना कर देश को आर्थिक संकट से बाहर निकाला। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चिंताजनक स्तर तक कम हो गया था और देश का 47 टन सोना तक गिरवी रखना पड़ा था जो इनके कार्यकाल में वापस लाया गया। श्री नरसिम्हा राव ही सरदार मनमोहन सिंह को राजनीति में लाए थे। इसके लिए उन्होंने जून, 1991 में आधी रात के समय फोन करके उन्हें वित्तमंत्री बनने की पेशकश की थी। उनके पोते और भाजपा नेता पी.वी. सुभाष ने कहा है कि ‘‘सोनिया चूंकि राव से घृणा करती हैं, इसीलिए गांधी परिवार ने नरसि हा राव की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि तक नहीं दी परंतु पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दी।’’ 

नरसिम्हा राव जी के बहुत कम बोलने वाले स्वभाव के कारण उन्हें ‘मौन प्रधानमंत्री’ भी कहा गया। इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न देशों की 46 सरकारी यात्राएं की थीं जिनमें से चंद यात्राओं में मैं उनके साथ था। अन्य प्रधानमंत्री विमान में पत्रकारों से बात किया करते परंतु नरसिम्हा राव जी न तो पत्रकारों को अपने कैबिन में बुलाते व न ही उनके साथ घुलते-मिलते। 1996 में आंध्र प्रदेश में चक्रवातीय तूफान से पीड़ितों की सहायता के लिए हमने प्रधानमंत्री राहत कोष खोला। इसके अंतर्गत जमा 90,59,100 रुपए उन्हें सौंपने के लिए हम नियत तिथि व समय पर प्रधानमंत्री आवास पहुंच गए।

उन्हें ड्राफ्ट सौंपने के बाद मैंने ज मू के प्रतिनिधि की भेजी हुई एक कांग्रेसी नेता की देखरेख में छपने वाली पत्रिका नरसि हा राव जी को देते हुए कहा कि इसमें विज्ञापन तो सारे सरकारी हैं पर लेख अलगाववादियों के छपते हैं। नरसिम्हा राव जी ने मेरे हाथों से वह पत्रिका ली और बोले,‘‘कैन आई कीप इट?’’  साथ ही मैंने उनको रिटायर होने जा रहे एक अधिकारी को एक्सटैंशन देने का सुझाव दिया परंतु वह चुप रहे। एक सप्ताह बाद मुझे पता चला कि ज मू में अलगाववादियों के लेख छापने वाली पत्रिका का प्रैस सील कर दिया गया तथा मैंने जिस अधिकारी बारे उनको सुझाव दिया था, उसका कार्यकाल भी बढ़ा दिया गया है। बिना कुछ कहे इतनी तेजी से काम करने में विश्वास रखते थे नरसिम्हा राव जी। 

दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय भी मुझे उनका निमंत्रण मिला। तब उन्होंने देश के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम से मु य समाचार पत्रों के संपादकों को बुलाया था। इनमें टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदू, अमृत बाजार पत्रिका, ट्रिब्यून और पंजाब केसरी शामिल थे। उन्होंने बाबरी मस्जिद गिराने बारे दखल न देने पर कहा, ‘‘यह मामला उत्तर प्रदेश का है, इसमें मैं क्या हस्तक्षेप करता।’’ बातों ही बातों में श्री नरसिम्हा राव जी ने हल्के-फुल्के अंदाज में बताया, ‘‘जिन दिनों मैं आंध्र प्रदेश का मु यमंत्री था तो कुछ लोगों ने इंदिरा जी से मेरे विरुद्ध शिकायतें शुरू कर दी थीं।’’ 

‘‘इंदिरा जी के बुलाने पर मैंने उनसे कहा कि मैं उन लोगों को मंत्री बना देता हूं तो वे मेरी तारीफें करने लगेंगे। ऐसा ही हुआ। मैंने उन्हें मंत्री बना दिया और शिकायतें बंद हो गईं। यह सत्ता का खेल है और कांग्रेस में ऐसा होता ही रहता है।’’ जो कुछ कांग्रेस में उस समय हो रहा था आज भी वही सब कुछ हो रहा है। कुछ भी नहीं बदला। आज जब मैं यह लेख लिख रहा हूं तो मेरे मन में यही बात घूम रही है कि यदि कांग्रेस के वर्तमान नेता नरसि हा राव जी की तरह ‘बातें कम और काम ज्यादा’ करने वाले हो जाएं तो कांग्रेस पार्टी को कई समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।-विजय कुमार


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