धर्म स्थलों और शादी समारोहों में लाऊडस्पीकरों का शोर बना ‘सिरदर्द’

Tuesday, Dec 01, 2015 - 12:47 AM (IST)

सुबह-सवेरे विभिन्न धर्म स्थलों में लगे हुए लाऊडस्पीकरों से आती धार्मिक प्रवचनों और संगीत की आवाजों से लोगों को पेश आ रही समस्या  बारे मुम्बई के एक जागरूक नागरिक द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बाम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वी.एम. कनाडे तथा न्यायमूर्ति रेवती मोहिते पर आधारित खंडपीठ ने कहा कि ‘‘धर्मस्थलों के शिखर पर लाऊडस्पीकर लगाना धार्मिक परंपरा का हिस्सा नहीं है।’’

‘‘इन लाऊडस्पीकरों की आवाज उस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन रही है। यह सिरदर्द तब और भी बढ़ जाता है जब पास-पास स्थित विभिन्न धर्मस्थलों के प्रबंधकों में अपने लाऊडस्पीकरों की आवाज एक-दूसरे से बढ़ा-चढ़ा कर रखने की होड़ सी लग जाती है।’’
 
इस अवसर पर मुम्बई पुलिस ने बताया कि यहां मात्र दो धर्मों के ही 3100 के लगभग धर्मस्थलों में से 977 धर्म स्थलों पर लाऊडस्पीकर लगे हुए हैं जिनमें से 926 ने इनके इस्तेमाल के लिए वांछित लाइसैंस नहीं लिया है। अत: इनके विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए।
 
इसी याचिका पर बोलते हुए एक अन्य पक्षकार ने अनुरोध किया कि अदालत को इस संबंध में कठोर रवैया अपनाते हुए पुलिस को यह आदेश देना चाहिए कि वह अवैध रूप से लगाए गए लाऊडस्पीकरों को हटाने संबंधी अदालत के 2014 के आदेश को लागू करवाए जिसमें मुम्बई और नवी मुम्बई की पुलिस को धर्मस्थलों पर अवैध रूप से लगाए हुए लाऊडस्पीकर हटाने का आदेश दिया गया था। 
 
धर्म स्थलों पर लगे लाऊडस्पीकर ही नहीं, विवाहों के मौसम में ऊंची आवाज में सारी-सारी रात बजने वाले संगीत और ढोल-ढमाकों की आवाज तथा अनावश्यक शोरगुल से भी लोगों को, विशेष रूप से पढ़ाई करने वाले बच्चों, बुजुर्गों तथा बीमारों को भारी असुविधा होती है तथा इससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अत: संबंधित पक्षों को इस बारे में ध्यान देने की आवश्यकता है।
 
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