हिंदुओं और मुसलमानों को जोड़ने वाला श्री मोहन भागवत का बयान

punjabkesari.in Tuesday, Jul 06, 2021 - 04:39 AM (IST)

भारत पर यूनानियों, मुगलों और अंग्रेजों सहित अनेक आक्रांताओं ने हमले किए। इनमें से कुछ यहां की स पदा लूट कर ले गए परंतु उनमें से ऐसे भी हुए जिन्होंने भारत में ही टिक कर सदियों यहां शासन किया। 

भारत के अनेक हिन्दू शासकों ने अपना शासन बचाने के लिए अपनी बेटियों की शादियां मुगल राजाओं से कर दीं जिनमें से बादशाह अकबर की हिन्दू रानी जोधा बाई से शहजादा सलीम पैदा हुआ। इसीलिए अकबर ने कुछ धर्मों पर आधारित एक नया धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ भी शुरू किया। भारत में मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह बहादुर शाह जफर ने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनके निम्र शेयर से उनके भारत प्रेम का पता चलता है : 

गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की,
त त-ए-लंदन तक चलेगी तेग ङ्क्षहदुस्तान की।
भारत सदा से ही ‘सर्वधर्म समभाव’ का ध्वजारोही रहा है जिसका प्रमाण यहां फलने-फूलने वाले इस्लाम सहित कई धर्म हैं परंतु मुस्लिम भाईचारे को लेकर भारत में समय-समय पर विवाद उठते रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी पर हिन्दूवादी पार्टी होने का आरोप लगता आया है परंतु इसके अभिभावक संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ ने ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ के माध्यम से इस दूरी को पाटने की कोशिश की है। दिसंबर, 2002 में हिंदू और मुस्लिम समुदायों को एक साथ मिलाने की कोशिश के तहत स्थापित व गांधी जी के विचारों से प्रेरित ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ धर्मनिरपेक्ष भारत का समर्थन करता है। यह गौवंश पालने वाले मुसलमानों को स मानित भी करता है। इसकी मान्यता है ‘देश पहले मजहब बाद में’। 


इसी भावना का संदेश देते हुए ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के ‘सरसंघ चालक’ श्री मोहन भागवत ने कहा है कि ‘‘हिन्दू-मुस्लिम एकता के शब्द ही भ्रामक हैं क्योंकि ङ्क्षहदू-मुस्लिम दो अलग-अलग समूह नहीं, एक ही हैं। वे पहले से ही एक साथ हैं तथा सभी भारतीयों का डी.एन.ए. एक है। ’’ 4 जुलाई को गुडग़ांव में ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ की ओर से ‘हिन्दुस्तानी प्रथम, हिन्दुस्तान प्रथम’ के बैनर तले डा. वाजा इ ितखार अहमद की पुस्तक ‘वैचारिक समन्वय-एक पहल’ का विमोचन करते हुए श्री भागवत ने कहा : 

‘‘मुसलमानों को भय के इस जाल में नहीं फंसना चाहिए कि भारत में इस्लाम खतरे में है। उनके इस भय को दूर करने और यह भावना समाप्त करने की जरूरत है कि संघ अल्पसं यकों के विरुद्ध है। भारत में हिन्दू- मुस्लिम एकता को ‘बहकाया’ जा रहा है।’’ ‘‘लोकतंत्र में हिंदुओं या मुसलमानों का नहीं केवल भारतीयों का प्रभुत्व हो सकता है। देश में एकता के बिना विकास संभव नहीं। एकता का आधार राष्ट्रवाद और पूर्वजों की महिमा होनी चाहिए।’’ ‘‘हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का एकमात्र हल संवाद है, न कि विसंवाद। अब समय आ गया है कि हम भाषा, प्रांत व अन्य मतभेदों को छोड़ें और एक होकर भारत को विश्व गुरु बनाएं। भारत विश्व गुरु बनेगा तभी दुनिया सुरक्षित रहेगी।’’ 

‘‘यदि कोई हिंदू कहता है कि भारत में कोई मुसलमान नहीं रहना चाहिए, तो वह व्यक्ति हिंदू नहीं है। गाय एक पवित्र पशु है परंतु गौ रक्षा के नाम पर जो लोग हिंसा कर रहे हैं उन्हें माफ नहीं किया जा सकता। कानून को बिना किसी पक्षपात के उनके विरुद्ध काम करना चाहिए।’’ ‘‘अल्पसंख्यकों के मन में बिठाया गया है कि हिन्दू उन्हें खा जाएंगे परंतु जब किसी अल्पसं यक पर कोई बहुसं यक अत्याचार करता है तो उसके विरुद्ध आवाज भी बहुसं यक ही उठाते हैं।’’ ‘‘

आग लगाने वाले भाषण देने से प्रसिद्धि तो मिल सकती है परंतु इससे काम नहीं चलेगा। ङ्क्षलङ्क्षचग में शामिल लोग ङ्क्षहदुत्व के विरोधी हैं।’’ इस बीच श्री भागवत के बयान पर सियासी घमासान शुरू हो गया है तथा समाजवादी पार्टी के घनश्याम तिवारी, ए.आई.एम.आई.एम. के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह आदि ने श्री भागवत के बयान पर आपत्ति की है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि भागवत का बयान गले नहीं उतर रहा। यह बयान ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ की तरह है। 

भाजपा के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने दिग्विजय सिंह और असदुद्दीन ओवैसी को ‘गुमराही गैंग’ करार देते हुए कहा है कि जो इस मिट्टïी में पैदा हुआ है उसका डी.एन.ए. अलग कहां से हो जाएगा। समय-समय पर दोनों समुदायों में होने वाले विवाह संबंधों और एक-दूसरे के त्यौहारों में शामिल होने से भी श्री भागवत के कथन की पुष्टिï होती है। कौन नहीं जानता कि इस देश में होली, दीवाली, रामनवमी, ईद, क्रिसमस और नया साल के उत्सव सभी समुदाय मिल कर मनाते आ रहे हैं। जहां मुसलमान भाईचारे के अनेक सदस्यों ने हिन्दू परिवारों में विवाह किए हैं वहीं अनेक हिन्दू परिवारों में मुस्लिम बहनें बहुओं के रूप में स मान पा रही हैं। श्री भागवत के इस बयान से दोनों समुदायों के बीच संबंध और मजबूत होने की आशा की जानी चाहिए।—विजय कुमार 


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