संकट में पश्चिमी देशों से सऊदी अरब की दोस्ती

Monday, Jul 01, 2019 - 03:12 AM (IST)

कुछ दिनों से सऊदी अरब के लिए एक के बाद एक बुरी खबरें आई हैं। बुधवार को संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने पत्रकार जमाल खाशोगी की हत्या में सऊदी अरब के क्राऊन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की भूमिका की जांच की सिफारिश की। अगले दिन अमेरिकी सीनेट ने सऊदी अरब को अरबों डॉलर के हथियारों की बिक्री रोकने के पक्ष में मतदान किया जो यमन में सऊदी नेतृत्व वाले युद्ध को अमेरिकी समर्थन रोकने के लिए कांग्रेस का नवीनतम प्रयास है। उसी दिन लंदन की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि ब्रिटेन से सऊदी अरब को हथियारों के निर्यात में गैर-कानूनी तरीकों का इस्तेमाल हुआ है।

ये खबरें सऊदी अरब को दशकों से पश्चिमी देशों के मिलते रहे संरक्षण के खिलाफ युवा वोटरों में पनप रही असंतोष की भावना का संकेत हैं। सऊदी अरब के लिए इन हालात के दो प्रमुख कारण हैं। पहला कारण सऊदी द्वारा यमन में छेड़ा गया विनाशकारी युद्ध है जिसमें हजारों नागरिकों की मौत हो चुकी है और नागरिक ठिकानों को जानबूझ कर लक्ष्य बनाने के आरोप लगते रहे हैं। अनुमान है कि 2015 के बाद से इस कारण भुखमरी से वहां 85,000 नवजात बच्चों की जान गई है। 

इस जनसंहार के प्रमुख सूत्रधार अमेरिका और ब्रिटेन को माना जा रहा है जिनसे युद्ध के लिए सऊदी को हर तरह के हथियार मिल रहे हैं। बढ़ती ङ्क्षनदा के चलते अब इन देशों के लिए सऊदी अरब को पहले की तरह हथियारों की आपूर्ति करना लगभग असंभव ही होगा। दूसरा प्रमुख कारण है पत्रकार जमाल खाशोगी की नृशंस हत्या।

माना जाता है कि इसका आदेश क्राऊन पिं्रस ने दिया था जिससे अमरीका तथा ब्रिटेन में उनकी प्रतिष्ठा को बड़ी ठेस पहुंची है जिस कारण दोनों देशों के लिए कूटनीतिक संकट पैदा हो गया है। अमेरिका में सऊदी अरब के साथ गठबंधन पर दो खेमे बन गए हैं। पहला खेमा उन डैमोक्रेट्स तथा कुछ रिपब्लिकन्स का है जो चाहते हैं कि यमन युद्ध तुरंत खत्म किया जाए तथा खाशोगी की हत्या पर भी संतोषजनक कार्रवाई हो। दूसरा खेमा डैमोक्रेटिक पार्टी के भीतर उभरते वाम सोच वालों का है जो अमेरिकी नीतियों में बड़ा बदलाव चाहते हैं। 

भविष्य में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठ रही मांग के चलते तेल भंडारों से होने वाली सऊदी अरब की बेहिसाब कमाई पर भी खतरा मंडराने लगा है। दुनिया भर में यदि तेल का उपयोग कम होता है तो पश्चिमी देशों द्वारा उसे मिलने वाली मदद का और भी विरोध होगा। सऊदी अरब के अन्य प्रमुख सहयोगी ब्रिटेन में भी असंतोष व्याप्त है। 

पिछले सप्ताह के अदालती फैसले से सऊदी को ब्रिटेन से हथियारों की आपूर्ति सीमित हो गई है। वहां सऊदी अरब के खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड और यमन में उसकी गतिविधियों का खूब विरोध है और ब्रिटिश विदेश नीति में बड़े बदलाव की भी मांग उठने लगी है। बेशक पश्चिमी शक्तियों और सऊदी अरब की रणनीतिक दोस्ती ने पहले भी कई संकटों का सामना किया है परंतु हालिया परिस्थितियों ने वास्तव में इसके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

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