उत्तर प्रदेश विधानसभा का ‘चुनावी ऊंट’ अभी दलदल में

punjabkesari.in Wednesday, Dec 21, 2016 - 12:52 AM (IST)

अपने तीन दिन के लखनऊ प्रवास में मुझे उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में उतरी मुख्य पार्टियों सपा, भाजपा, कांग्रेस और बसपा में से सपा के ही अधिकांश होल्डिंग और पोस्टर दिखाई दिए।

प्रदेश में भाजपा, कांग्रेस और आप के नेताओं ने धावा बोल दिया है और  वे एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। केंद्र सरकार के बड़े-बड़े दावों के बावजूद नोटबंदी से लोगों को हो रही परेशानी के चलते भाजपा को जनरोष का सामना करना पड़ रहा है तथा ‘आर.एस.एस.’ ने भी इस कारण बढ़ रहे जन असंतोष से सतर्क रहने की भाजपा नेतृत्व को चेतावनी दे दी है।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो यहां तक कह दिया है कि ‘‘नोटबंदी से बेहाल जनता त्राहि-त्राहि कर रही है और चुनाव प्रचार में भाजपा चाहे हैलीकाप्टर ही क्यों न उतार दे उसे जन आक्रोश से कोई नहीं बचा सकता। ’वैसे स्वयं बसपा की हालत भी अच्छी नहीं है। इसके अनेक सिपहसालारों द्वारा मायावती पर पार्टी टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ जाने से आगामी चुनावों में इसकी संभावनाओं को भारी धक्का लगा है।

हालांकि राहुल गांधी ने चुनावी दौरे शुरू कर रखे हैं व प्रियंका को भी प्रदेश में चुनावों का चेहरा बनाने की कोशिशें हो रही हैं, परन्तु 37 वर्षों से प्रदेश में सत्ता से वंचित कांग्रेस की हालत खस्ता है। यहां तक कि इसकी प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी इसे छोड़ कर भाजपा में चली गई हैं।

जहां कांग्रेस ने नोटबंदी के ‘तुगलकी फैसले’ के विरुद्ध जागरूकता अभियान चलाने की घोषणा की है, वहीं भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए राहुल गांधी सपा से गठजोड़ के लिए प्रयत्नशील हैं। इस संदर्भ में उनकी यह घोषणा भी महत्वपूर्ण है कि ‘‘यदि सपा और कांग्रेस में गठबंधन हुआ तो अखिलेश यादव ही सी.एम. के लिए बेहतर चेहरा होंगे।’’

सत्तारूढ़ सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह की स्मरण शक्ति कमजोर पड़ गई है, वहीं कुछ समय से सपा में चल रही वर्चस्व की लड़ाई में उनके द्वारा छोटे भाई शिवपाल का पक्ष लेने से चाचा-भतीजे में खटास शिखर पर है। ऐसे में चुनावी दंगल जीतने के लिए चल रहे शह और मात के खेल में  अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन पर सहमति का संकेत  देते हुए कहा है कि‘‘देश को धर्मनिरपेक्ष ताकतों की आवश्यकता है अत: यदि एक और साथी जुड़ेगा तो इसमें बुरा क्या है।’’

हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि इस संबंध में अंतिम फैसला मुलायम सिंह ही लेंगे परन्तु इससे पूर्व ही सपा में (शिवपाल समर्थक) अमर सिंह गुट ने कांग्रेस से चुनावी गठबंधन का विरोध भी शुरू कर दिया है। अमर सिंह ने कांग्रेस के साथ सपा के अनुभवों को कड़वा बताते हुए कहा है कि ‘‘शायद अखिलेश को इन अनुभवों के बारे में पता नहीं है इसलिए वह कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात कर रहे हैं।’’

पहले ही अपने परिवार की अंतर्कलह के दौरान ‘चल अकेला’ का संकेत दे चुके अखिलेश यादव ने साफ कह दिया है कि ‘‘दूसरे लोग तो चाहते हैं कि मैं ही फिर मुख्यमंत्री बनूं परन्तु दिक्कत तो अपनों से है।
‘‘अंकल भले ही साथ न हों, चाचा साथ न हों  परन्तु जनता मेरे साथ होनी चाहिए और मैं जनता से कहूंगा कि वह मेरे साथ ही रहे।’’

इस बीच जानकारों के अनुसार सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव द्वारा सार्वजनिक रूप से इन्कार करने के बावजूद कांग्रेस व सपा में गठबंधन लगभग पक्का है और सीटों का बंटवारा भी हो गया है। इस तरह के घटनाक्रम के बीच अपनी भावी सफलता के लिए आत्मविश्वास से लबालब अखिलेश यादव प्रदेश में लोकलुभावन योजनाएं पूरे जोर-शोर से लागू कर रहे हैं और धन की तंगी के बावजूद सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की घोषणा भी कर दी है।

उत्तर प्रदेश के चुनावी दृश्य पटल पर कुछ ऐसी स्थिति इस समय चल रही है जिसमें किसी भी पार्टी को स्पष्टï बहुमत के स्थान पर त्रिशंकु विधानसभा के ही संकेत मिल रहे हैं। लेकिन आगे स्थिति क्या रूप धारण करती है यह भविष्य के गर्भ में है क्योंकि अभी चुनावों की घोषणा होनी है तथा इस दौरान  पुराने समीकरण टूटेंगे और नए बनेंगे।                                   —विजय कुमार


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