आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं को समुचित सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता

punjabkesari.in Monday, Sep 27, 2021 - 03:26 AM (IST)

सूचना का अधिकार अर्थात ‘राईट टू इंफॉर्मेशन’ (आर.टी.आई.)। इस अधिकार के अंतर्गत राष्ट्र अपने नागरिकों को किसी भी सरकारी विभाग से वांछित जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। भारत में यह कानून अपने संशोधित रूप में 12 अक्तूबर 2005 को लागू किया गया था। यही कारण है कि पिछले पंद्रह वर्षों में भ्रष्टाचारी व अन्य गलत काम करने वाले अधिकारियों तथा दबंगों की नाराजगी का शिकार होने वाले 300 से अधिक ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता’ मारे जा चुके हैं। महाराष्टï्र में सर्वाधिक ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता’ मारे गए जबकि गुजरात, कर्नाटक, बिहार तथा अन्य राज्यों में भी अनेक ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता’ मारे जा चुके हैं। 

भारत में ‘हर सार्वजनिक प्राधिकरण के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने’ के लिए सूचना मांगने हेतु पुलिस कर्मियों सहित सूचना का अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई.) के कई कार्यकत्र्ताओं को परेशान किया गया और यहां तक कि उनकी हत्या भी कर दी गई। नागरिकों पर हमले या उत्पीडऩ के 300 से अधिक मामलों और कम से कम 51 हत्याओं और 5 आत्महत्याओं की मीडिया रिपोर्टों को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी से जोड़ा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हर वर्ष 40 से 60 लाख आर.टी.आई. आवेदन दाखिल किए जाते हैं। बिहार में वर्ष 2008 से अब तक 20 ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं’ ने अपना जीवन खो दिया है।

कहा जाता है कि पुलिस अधिकांश मामलों में आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं करती और न ही आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं को संरक्षण प्रोत्साहित करती है। पटना (2020) में पंकज कुमार सिंह एवं बेगूसराय के आर.टी.आई.  कार्यकत्र्ता श्यामसुंदर कुमार सिन्हा की हत्या की गई। और अब 24 सितम्बर को बिहार के चम्पारण जिले जहां से महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी, के मोतिहारी में कई सफेदपोशों सहित अधिकारियों के भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाले  ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता’ बिपिन अग्रवाल की बाइक सवार अज्ञात अपराधियों ने कानून को ठेंगा दिखाते हुए सरेबाजार गोली मार कर हत्या कर दी।

बिपिन अग्रवाल सरकारी जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करने के मामलों का खुलासा किया करते थे। इसी कारण भू-माफियाओं ने उनके घर पर हमला कर गोलीबारी की थी और पूरे परिवार के साथ बदसलूकी भी की थी फिर भी वह सच सामने लाने का काम करते रहे जिसकी सजा उन्हें अपने प्राण गंवा कर भुगतनी पड़ी। उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपने क्षेत्र में सरकारी भूमि के अतिक्रमण के बारे में जानकारी मांगने के लिए लगभग 90 आर.टी.आई. आवेदन दायर किए थे। उन्होंने हाल ही में पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई थी। 

वहीं कर्नाटक में जुलाई माह में एक ही सप्ताह के भीतर 2 अलग-अलग घटनाओं में 2 आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं की हत्या हो गई। इन दोनों हत्याओं ने आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं के समुदाय को झकझोर दिया है जिसके बाद कर्नाटक आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता राज्य समिति ने हत्याओं की जांच के लिए एक विशेष दल (एस.आई.टी.) की मांग की थी।

उक्त घटनाओं से स्पष्ट है कि ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं’ की जिंदगी को दबंगों और समाज विरोधी तत्वों से खतरे के बावजूद उनकी पुलिस सुरक्षा नगण्य है और यह समझना मुश्किल है कि ऐसा क्यों है। लिहाजा यदि देश ने सूचना के अधिकार के कानून को जिंदा रखना है तो उसे  ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं को सुरक्षा प्रदान करनी ही होगी। इसके लिए न्यायपालिका को स्वत: संज्ञान लेते हुए आगे आना चाहिए। ताकि ‘आर.टी.आई. कार्यकत्र्ताओं’ की सुरक्षा यकीनी बने और वे निर्भीक होकर राष्ट्र हित में संदिग्ध मुद्दों पर जानकारी प्राप्त कर उन्हें सार्वजनिक करके भ्रष्टïाचारियों और गलत काम करने वालों को बेनकाब करते रहें।  


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