देश को दरपेश समस्याओं बारे मुख्य न्यायाधीश रमन्ना के सही विचार

Tuesday, Aug 02, 2022 - 03:42 AM (IST)

26 अगस्त को रिटायर होने जा रहे भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना अपने विभिन्न भाषणों में न्यायपालिका सहित देश, समाज में व्याप्त विभिन्न कमजोरियों को लगातार उजागर करते आ रहे हैं। उनका शुरू से ही यह मानना रहा है कि न्यायालयों में लम्बे समय से चली आ रही जजों तथा अन्य स्टाफ की कमी व अदालतों में बुनियादी ढांचे के अभाव के चलते आम आदमी को न्याय मिलने में विलम्ब हो रहा है। 

* 16 जुलाई को जस्टिस रमन्ना ने जयपुर में ‘आल इंडिया लीगल  सॢवसेज़’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए कहा, ‘‘देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सजा है। अत: इसकी प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने की जरूरत है। विचाराधीन कैदियों को लम्बे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तुरन्त ध्यान देने की जरूरत है।’’

* अगले दिन 17 जुलाई को उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक विरोध को शत्रुता में नहीं बदलना चाहिए। यह स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं है। सरकार और विपक्ष के बीच पहले वाली आपसी सम्मान की भावना अब कम हो रही है। दुर्भाग्यवश विपक्ष के लिए (सत्ता पक्ष के पास) जगह कम होती जा रही है। संसदीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए विपक्ष को भी मजबूत करना होगा। कानून बिना व्यापक विचार-विमर्श और पड़ताल के पारित किए जा रहे  हैं।’’

* 30 जुलाई को जस्टिस रमन्ना ने नई दिल्ली में ‘अखिल भारतीय जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों’ की बैठक में सबके लिए न्याय की उपलब्धता को सामाजिक उद्धार का उपकरण बताते हुए कहा, ‘‘जनसंख्या का बहुत कम हिस्सा ही अदालतों में पहुंच पाता है और अधिकांश लोग जागरूकता एवं आवश्यक माध्यम के अभाव में मौन रह कर पीड़ा सहते रहते हैं।’’

इसी दिन उन्होंने एक बार फिर जेलों में बड़ी संख्या में बंद विचाराधीन कैदियों की समस्या का उल्लेख किया तथा कहा, ‘‘जिन पहलुओं पर देश में कानूनी सेवा के अधिकारियों के हस्तक्षेप और सक्रियतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है उनमें एक पहलू विचाराधीन कैदियों की स्थिति भी है।’’ संसद में जारी गतिरोध पर भी टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘चर्चा और बहस तथा बेहतर फैसलों द्वारा ही देश को आगे बढ़ाया जा सकता है।’’

* फिर 31 जुलाई को न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में ‘हिदायत उल्लाह नैशनल ला यूनिवर्सिटी’ (एच.एन.एल.यू.) के पांचवें दीक्षांत समारोह में बोलते हुए कहा :
‘‘प्रत्येक व्यक्ति को न्याय पाने का अधिकार है और उसके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना न्याय पालिका का कत्र्तव्य है अत: लोगों को मूलभूत अधिकार दिलाना न्यायपालिका की प्राथमिकता होनी चाहिए। कोई भी संवैधानिक गणराज्य तभी समृद्ध हो सकता है यदि इसके नागरिकों को पता हो कि संविधान क्या चाहता है।’’

‘‘समाज का सर्वाधिक कमजोर वर्ग हमेशा असामाजिक तत्वों का शिकार बनने के कारण उनके मानवाधिकारों का हनन होता है। अत: युवा वकीलों को आगे आकर, जरूरतमंदों की मदद करके और कम खर्च में न्याय दिलवाने के लिए काम करना चाहिए।’’

इसके साथ ही उन्होंने युवा वकीलों को यह सलाह भी दी कि, ‘‘आप लोग पारंपरिक तरीके से मत सोचें क्योंकि आप लोगों को कानून के शासन व संविधान के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। कड़ी मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। एक वकील को आलराऊंडर, एक नेता और बदलाव लाने वाला होना चाहिए।’’

अदालतों पर मुकद्दमों के भारी बोझ के चलते न्याय मिलने में विलंब, जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की समस्या, समाज  के सबसे निचले पायदान के लोगों तक न्याय न पहुंच पाने, सरकार और विपक्ष के बीच लगातार बढ़ रही दूरी, बिना बहस विधेयकों के पारित होने आदि विषयों पर न्यायमूर्ति रमन्ना के उक्त विचार पूरी तरह सही हैं। इनके माध्यम से उन्होंने संबंधित पक्षों को ही नहीं बल्कि स्वयं न्यायपालिका को भी आइना दिखाया है जिन पर संबंधित पक्षों को गंभीरतापूर्वक चिंतन- मनन तथा अमल करने के लिए तुरंत हरकत में आने की जरूरत है ताकि देश आगे बढ़े व आम लोगों की कठिनाइयां कम हो सकें ।—विजय कुमार    

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