विधानसभा चुनावों में टिकट कटने से भाजपा और कांग्रेस में बगावत भड़की

Saturday, Oct 05, 2019 - 01:10 AM (IST)

21 अक्तूबर को होने वाले महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की समय सीमा 4 अक्तूबर को समाप्त होने से पूर्व दोनों ही राज्यों में चुनाव लड़ रही मुख्य पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के सदस्यों और पदाधिकारियों के बीच टिकट आबंटन में कथित पक्षपात को लेकर बगावत और बवाल की स्थिति बन गई है। महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम ने अपना सुझाया नाम खारिज करने पर नाराज होकर कांग्रेस के प्रचार अभियान में शामिल न होने की घोषणा करने के साथ ही यह भी कह दिया कि पार्टी नेतृत्व उनके साथ जैसा व्यवहार कर रहा है उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब वह पार्टी को अलविदा कह देंगे। 

संजय निरूपम का कहना है कि कुछ सीटों को छोड़कर महाराष्ट्र में पार्टी के सब उम्मीदवारों की जमानत जब्त होगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पूरे माडल में ही खामियां हैं तथा पार्टी में योग्य लोगों के साथ न्याय नहीं किया गया। मैंने सिर्फ एक सीट मांगी थी लेकिन मेरी नहीं सुनी गई। ऐसा लगता है कि पार्टी अब मेरी सेवाएं नहीं चाहती। महाराष्ट्र भाजपा में भी अनेक दल बदलुओं को टिकट देने और अनेक विधायकों तथा मंत्रियों को छोड़ देने के विरुद्ध रोष भड़क उठा है। इसी सिलसिले में 3 अक्तूबर को सैंकड़ों कार्यकत्र्ताओं ने महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल की कार का घेराव कर दिया। 

शुक्रवार को जब भाजपा उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी की गई तो उसमें पूर्व मंत्रियों एकनाथ खड़से, प्रकाश मेहता और विनोद तावड़े का नाम गायब देख कर तावड़े के समर्थकों ने भाजपा कार्यालय के समक्ष बवाल खड़ा कर दिया और उनकी जगह टिकट प्राप्त करने वाले सुनील राणे के विरुद्ध गो बैक के नारे लगाने लगे। उनका कहना था कि उन्हें विनोद तावड़े के अलावा और कोई उम्मीदवार स्वीकार नहीं है। यही नहीं 4 अक्तूबर को पूर्व मंत्री प्रकाश मेहता के स्थान पर घाटकोपर से पराग शाह को टिकट दिए जाने से नाराज प्रकाश मेहता के समर्थकों ने 4 अक्तूबर को पराग शाह की कार पर तोडफ़ोड़ की। 

पूर्व वित्त मंत्री एकनाथ खड़से का नाम भी कटने पर उन्होंने बगावती तेवर दिखाए परन्तु भाजपा नेतृत्व ने उनकी बेटी रोहिणी को मुक्ताई नगर विधानसभा सीट से खड़ा करने का फैसला करके श्री खड़से को शांत करने में सफलता प्राप्त कर ली है। श्री खड़से 1991 से इस सीट का प्रतिनिधित्व करते चले आ रहे थे। गोंदिया, बीड आदि में भी अनेक टिकट अभिलाषियों ने टिकट न मिलने से नाराज होकर निर्दलीय के रूप में पर्चे भर दिए हैं। नवी मुम्बई की एरोली और बेलापुर की सीटें भाजपा के खाते में जाने से भाजपा की गठबंधन सहयोगी शिवसेना में भी असंतोष भड़क उठा है और नवी मुम्बई से अब तक 200 कार्यकत्र्ता पार्टी से त्यागपत्र दे चुके हैं।

यवतमाल जिले की 7 सीटों में से भाजपा के समान ताकत रखने वाली शिवसेना के हिस्से में केवल एक सीट आने से भी शिवसेना में नाराजगी है। शिवसेना ने उम्रखेद सीट के लिए तैयारी भी शुरू कर दी थी लेकिन यह सीट भाजपा के खाते में जाने से शिवसैनिक नाराज हैं। इसी प्रकार हरियाणा कांग्रेस में आंतरिक कलह का मामला सोनिया गांधी तक जा पहुंचा है। राज्य में हुए टिकट वितरण में अपने खेमे के उम्मीदवारों की उपेक्षा से नाराज पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने न सिर्फ अपने समर्थकों के साथ सोनिया गांधी के घर के बाहर 2 अक्तूबर को धरना दिया बल्कि हरियाणा की सोहना सीट 5 करोड़ रुपए में बेचने का आरोप भी लगाया। 

यही नहीं उन्होंने 3 अक्तूबर को कांग्रेस की सभी कमेटियों से त्यागपत्र देते हुए आरोप लगाया कि टिकट आबंटन में तय मानकों की धज्जियां उड़ाते हुए  उनकी पूरी तरह उपेक्षा की गई है। इस समय हरियाणा में तंवर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की लड़ाई शीर्ष पर है। पार्टी में रणजीत सिंह और निर्मल सिंह भी टिकट न मिलने के कारण बागी हो गए हैं। हरियाणा में टिकट न मिलने पर भाजपा में सर्वाधिक भगदड़ देखने को मिली है तथा अनेक नेताओं ने टिकट न मिलने पर पाला बदल लिया है और विधायक उमेश अग्रवाल ने अपनी पत्नी का निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन भरवा दिया है और रेवाड़ी में रणधीर कापड़ीवास ने टिकट न मिलने के कारण भाजपा के विरुद्ध ताल ठोक दी है। 

भाजपा ने जिन 12 विधायकों के टिकट काटे हैं उनमें से कई बागी तेवर दिखा रहे हैं और आज उम्मीदवारों की नामांकन प्रक्रिया में शामिल न होकर अपनी नाराजगी भी जता चुके हैं। कुल मिलाकर महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही राज्यों की दोनों ही मुख्य पाॢटयों में आंतरिक कलह की स्थिति बनी हुई है जिसका इन चुनावों में दोनों ही पार्टियों को कुछ परेशानी अवश्य होगी।—विजय कुमार

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