शीघ्र और कठोर दंड ही बलात्कार रोकने का एकमात्र विकल्प

punjabkesari.in Sunday, Dec 08, 2019 - 12:17 AM (IST)

देश में महिलाओं के विरुद्ध बढ़ रहे अपराधों के मामले में सरकार की उदासीनता इसी से स्पष्ट है कि 16 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में निर्भया से सामूहिक बलात्कार के बाद हुए देशव्यापी प्रदर्शनों के बाद सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के दावे तो बहुत किए परंतु उन पर अमल नहीं किया। वर्ष 2017 तक देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों का आंकड़ा 3 लाख से भी बढ़ चुका था और यह लगातार बढ़ रहा है।

बलात्कार व अन्य महिला विरोधी अपराधों में न्यायालयों द्वारा शीघ्र फैसला न सुनाने से जनरोष बढ़ रहा है। निर्भया कांड के दोषियों को अभी तक मृत्युदंड नहीं दिया गया है। इसीलिए 6 दिसम्बर, 2019 को हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक से बलात्कार व उसे जला कर मार देने के सभी चारों आरोपियों के तड़के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने का समाचार आते ही देश में खुशी की लहर दौड़ गई। 

अधिकांश देश वासियों के साथ-साथ निर्भया के माता-पिता ने भी इस पर खुशी जताई और निर्भया की मां ने अधिकारियों से अपील की है कि ‘‘मुठभेड़ में शामिल पुलिस वालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई न की जाए।’’ निर्भया के पिता ने भी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘न्याय के लिए पीड़ित परिवार की प्रतीक्षा जल्दी ही समाप्त हो गई और उन्हें हमारी तरह न्याय के लिए 7 वर्ष का इंतजार नहीं करना पड़ा और पुलिस ने सही किया।’’ दूसरी ओर मानवाधिकार संगठनों तथा अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ ने इस मुठभेड़ पर सवाल उठाए हैं। प्रगतिशील महिला संघ की सचिव कविता कृष्णन ने कहा है कि ‘‘पुलिस किसी भी हालत में पीट-पीट कर हत्या करने वाली भीड़ की तरह व्यवहार नहीं कर सकती।’’ सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने भी पुलिस मुठभेड़ में शामिल अधिकारियों पर बरसते हुए कहा है कि ‘‘ये हत्याएं स्पष्ट रूप से झूठे मुकाबले का नतीजा हैं। अत: इस मामले में संबंधित पुलिस अधिकारियों को मौत की सजा मिलनी चाहिए।’’ 

इस बीच जहां उन्नाव बलात्कार कांड की पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए प्रदर्शन जारी हैं, वहीं हैदराबाद बलात्कार कांड का मामला 7 दिसम्बर को सुप्रीमकोर्ट में पहुंच गया है जहां दायर 2 याचिकाओं में इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने और मुठभेड़ में शामिल सभी पुलिस कर्मियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कर जांच कराने का अनुरोध किया गया है। बेशक आज पुलिस मुठभेड़ में महिला डाक्टर के बलात्कार में संलिप्त 4 आरोपियों के मारे जाने पर प्रश्र उठाए जा रहे हैं परंतु हमें नहीं भूलना चाहिए कि आज देश की अदालतों में जजों की कमी तथा अन्य कारणों से महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मुकद्दमों सहित लगभग 4 करोड़ मुकद्दमे लटकते आ रहे हैं जिनमें से कई मुकद्दमे तो 20-25 वर्ष पुराने हैं। 

लिहाजा जिस प्रकार सुप्रीमकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई ने हाल ही में रिटायर होने से पूर्व राम जन्म भूमि विवाद और कुछ अन्य मुकद्दमों का एक निश्चित समय के भीतर फैसला सुनाया, उसी प्रकार सभी मुकद्दमों में संलिप्त आरोपियों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए मुकद्दमों की निश्चित समय अवधि के भीतर सुनवाई करके फैसला सुनाया जाना चाहिए। यदि अदालतें एक निश्चित समय सीमा के भीतर मुकद्दमों का फैसला नहीं सुनाएंगी तो अपराधी तत्वों के हौसले भी बढ़ते रहेंगे और लोग भी अपने हाथों में कानून लेने लगेंगे। लिहाजा जितनी जल्दी हो सके अदालतों में जजों के रिक्त स्थानों को भरने और बलात्कार जैसे गंभीर मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए सभी राज्यों में फास्ट ट्रैक अदालतें बनाना जरूरी है। 

इस बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का यह सुझाव विचारणीय है कि पोक्सो कानून के अंतर्गत बलात्कार के आरोपियों को दया याचिका से वंचित कर देना चाहिए। जबकि इस समय हालत यह है कि वर्षों तक राष्ट्रपति कार्यालय में दया याचिकाएं लंबित रहने के कारण अपराधी मृत्यु दंड से बचे रहते हैं। यह समाचार राहत देने वाला है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने निर्भया बलात्कार कांड के एक दोषी की दया याचिका खारिज करने की दिल्ली सरकार की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी है। लिहाजा राष्ट्रपति जितनी जल्दी इस पर फैसला करके अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाएंगे, देश में सरकार की उतनी ही प्रतिष्ठा बढ़ेगी और बलात्कारियों तक यह चेतावनी भी जाएगी कि अब अपराध करके दया की भीख मांगने का कोई लाभ नहीं होगा तथा इसके साथ ही अपराधों पर अंकुश लगना भी शुरू हो जाएगा।—विजय कुमार 


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