राजस्थान और महाराष्ट्र‘सरकारों में अंतर्कलह जारी’

Friday, Jun 02, 2023 - 04:05 AM (IST)

अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान की कांग्रेस सरकार 2018 में कायम होने के कुछ समय बाद से ही अंतर्कलह की शिकार है। वहां राज्य के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरुद्ध मोर्चा खोल रखा है। 29 मई को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तथा पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में अशोक गहलोत तथा सचिन पायलट के बीच ‘सुलह’ के दावों की दो दिन बाद 31 मई को ही हवा निकल गई, जब सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के साथ समझौते से इन्कार कर दिया। 

एक बार फिर अपनी ही पार्टी की सरकार को चुनौती देते हुए पायलट ने  कहा कि  उनके द्वारा युवाओं से किए गए वादे कोरे वादे नहीं हैं तथा वह अपनी मांगों से पीछे नहीं हटेंगे। सचिन पायलट ने कहा कि यह उनके अल्टीमेटम का अंतिम दिन था और देखते हैं कि अब आगे क्या होता है! 

एक ओर राजस्थान की कांग्रेस सरकार में क्लेश मचा हुआ है तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली उद्धव ठाकरे की ‘महा विकास अघाड़ी’ सरकार से बगावत करके भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे तथा भाजपा गठबंधन वाली सरकार में फूट के स्वर उभरने लगे हैं। इस सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस उप-मुख्यमंत्री हैं। इस बीच 17 फरवरी, 2023 को चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे तथा एकनाथ शिंदे के बीच शिवसेना के नाम व चुनाव चिन्ह की कानूनी लड़ाई में जहां पार्टी का नाम व चुनाव चिन्ह ‘धनुष-बाण’ उद्धव ठाकरे से छीन कर शिंदे को दे दिया, वहीं 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे व शिंदे गुटों की याचिकाओं पर फैसला सुनाया। 

उद्धव ठाकरे द्वारा अपनी याचिका में उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री पद पर बहाल किए जाने संबंधी याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने शिंदे सरकार की वैधता को लेकर कुछ कठोर टिप्पणी तो अवश्य की, परंतु कहा कि वह शिंदे सरकार को अयोग्य करार नहीं दे सकती और न ही उद्धव ठाकरे को महाराष्टï्र के मुख्यमंत्री के तौर पर दोबारा बहाल कर सकती है क्योंकि उन्होंने फ्लोर टैस्ट का सामना किए बिना ही स्वेच्छा से अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। अलबत्ता अपने इस फैसले के साथ ही अदालत ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा फ्लोर टैस्ट का आयोजन करवाने को भारत के संविधान के विपरीत अवश्य बताया। 

बेशक सुप्रीम कोर्ट की उक्त टिप्पणी से गदगद शिंदे गुट ने भरपूर जश्न मनाया, परंतु इसके तुरंत बाद उनके समर्थकों में भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर कुछ-कुछ असंतोष के स्वर फूटने लगे हैं तथा गत 26 मई को मुम्बई से शिवसेना (शिंदे गुट) के सांसद गजानन कीॢतकर के बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि इस गठबंधन सरकार में अब सब ठीक नहीं चल रहा। गजानन कीर्तिकर ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि ‘‘हम राजग का हिस्सा हैं, इसलिए हमारा काम उसी हिसाब से होना चाहिए और घटक दलों को बनता दर्जा मिलना चाहिए परंतु हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है और मैंने मुख्यमंत्री शिंदे को भी बैठक में यह बात बता दी है।’’ इसी दिन शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) के वरिष्ठ नेता संजय राऊत ने कहा कि ‘‘शिंदे गुट एक पार्टी नहीं, बल्कि मुर्गों का समूह है जिसे कभी भी ‘हलाल’ कर दिया जाएगा।’’ 

इसके बाद शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में प्रकाशित लेख में शिंदे गुट के विधायकों एवं सांसदों को एक बार फिर ‘भाजपा के पिंजरे में कैद मुर्गे-मुॢगयां’  करार देते हुए लिखा है कि ‘‘इनकी गर्दन पर कब छुरी चल जाए, कहा नहीं जा सकता।’’ इसके साथ ही अखबार ने दावा किया है कि ‘‘एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के 22 विधायक और 9 सांसद भाजपा के ‘सौतेले व्यवहार’ के चलते घुटन महसूस करने के परिणामस्वरूप पार्टी छोड़ सकते हैं।’’कुल मिलाकर इस समय जहां राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को अपनी ही पार्टी के अंदर से विरोध का सामना करना पड़ रहा है, वहीं महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और भाजपा के गठबंधन वाली सरकार भी असंतोष की शिकार होती दिखाई दे रही है। अत: यह देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों ही सरकारों में चल रही रस्साकशी आने वाले दिनों में क्या रूप धारण करती है!—विजय कुमार 

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