रेलवे : 100 रुपए कमाने के लिए खर्चे 111

Monday, Aug 27, 2018 - 12:42 AM (IST)

भारतीय रेलवे 13 लाख से अधिक कर्मचारियों सहित देश का सबसे बड़ा नियोक्ता तथा विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नैटवर्क है परंतु इन दिनों भारतीय रेलवे भारी आर्थिक तंगी से गुजर रही है। इसकी खस्ता हालत इसके परिचालन अनुपात (ऑप्रेटिंग रेशो) के आंकड़ों से स्पष्ट हो गई है जिससे पता चल रहा है कि रेलवे जितना धन कमा नहीं रही है उससे अधिक उसके खर्चे हैं। आंकड़े यही कहते हैं कि रेलवे को यात्री किराए तथा मालभाड़े से अपने खर्च से भी कम कमाई हुई है।

यह बात इसलिए भी अधिक चिंताजनक है क्योंकि रेलवे का यह परिचालन अनुपात हाल के दशकों में सबसे खराब रहा है। 100 : 111 का हालिया अनुपात इससे पहले 90 से 96 के बीच रहने वाले अनुपात से कहीं अधिक है। इसका अर्थ है कि रेलवे ने 100 रुपए कमाने के लिए 111 रुपए खर्च किए हैं जो रेलवे की वित्तीय सेहत के लिए बेहद ङ्क्षचताजनक स्थिति है।

रेलवे का अधिक ऑप्रेटिंग रेशो इसकी अतिरिक्त धन जुटाने की खराब क्षमता की ओर भी इशारा करता है जिसका उपयोग नई लाइनें बिछाने तथा ट्रेनों में कोचों की संख्या बढ़ाने जैसे पूंजीगत निवेश के लिए होता है। पिछली बार खराब ऑप्रेटिंग रेशो 2000-01 में 98.3 प्रतिशत ही था।

ऑप्रेटिंग रेशो वह अनुपात है जो दर्शाता है कि खर्च की तुलना में कमाई कितनी हो रही है। इससे किसी भी संगठन के परिचालन पर होने वाले खर्च तथा उसके कुल राजस्व के आधार पर उसके प्रदर्शन के बारे में जानकारी मिलती है।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार रेलवे ने 111.51 प्रतिशत का नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है। यह इस बात का संकेत है कि निर्धारित लक्ष्य की तुलना में कमाई के स्रोतों में वृद्धि कम हुई है जबकि रिटायर्ड कर्मचारियों की पैंशन तथा रेलवे के कामकाज पर उसका खर्च बढ़ता जा रहा है।वर्तमान वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में यात्रियों से कमाई के 17,736.09 करोड़ रुपए के लक्ष्य की तुलना में रेलवे 17,273.37 करोड़ रुपए ही कमा सकी। दूसरी ओर अप्रैल-जुलाई के दौरान माल ढुलाई से होने वाली कमाई भी बजट अनुमान की तुलना में काफी कम रही है।

39,253.41 करोड़ रुपए के लक्ष्य की तुलना में रेलवे महज 36,480.41 करोड़ रुपए ही कमा सकी। जुलाई में खत्म हुए चालू वित्त वर्ष के लिए रेलवे की कुल कमाई 61,902.51 करोड़ रुपए के लक्ष्य की तुलना में 56,717.84 करोड़ रुपए रही है। रेलवे की कम होती कमाई के बारे में रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इस अवधि में रेल यातायात में कमी दर्ज हुई है क्योंकि यात्री परिवहन तथा माल ढुलाई दोनों क्षेत्रों में ही परिवहन के अन्य साधनों से रेलवे को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा है।

साथ ही ये आंकड़े सातवें वेतन आयोग में संशोधन के कारण बढऩे वाले भत्तों और पैंशन से बढ़ते वित्तीय बोझ को भी दर्शाते हैं। उनके अनुसार ऑप्रेटिंग रेशो में उतार-चढ़ाव आता रहता है।13 लाख कर्मचारियों तथा समान संख्या में पैंशनभोगियों वाले रेलवे के साथ हर वेतन आयोग के समय हालात ऐसे ही रहे हैं। वर्तमान वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत रेलवे कर्मचारियों के वेतन-भत्तों तथा पैंशन में वृद्धि से रेलवे पर प्रतिवर्ष 22,000 करोड़ रुपए बोझ पड़ रहा है।

हालांकि, कुछ अधिकारी स्वीकार करते हैं कि खराब ऑप्रेटिंग रेशो रेलवे के लिए अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि पूंजीगत व्यय के लिए रेलवे ने जो ऋण ले रखा है उसे लौटाने का वित्तीय बोझ भी उसे सहना होगा।
 
रेल मंत्री पीयूष गोयल के तहत रेलवे ने कामकाज के ढंग में कुछ अच्छे बदलाव अवश्य किए हैं। जैसे कि अब फंड आबंटन परियोजनाओं के अनुसार किया जा रहा है ताकि उन्हें समय सीमा में पूरा किया जा सके। अब एक परियोजना का काम पूरा होने के बाद ही अन्य परियोजनाओं को फंड दिया जा रहा है परंतु रेलवे को अपनी बिगड़ती वित्तीय सेहत का भी ध्यान रखना होगा क्योंकि यदि समय रहते इसे सम्भाला नहीं गया तो कहीं रेलवे के लिए यह एक ‘लाइलाज बीमारी’ न बन जाए।

shukdev

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