पूज्य माता स्वदेश जी की प्रथम पुण्य तिथि पर पावन स्मरण

punjabkesari.in Thursday, Jul 07, 2016 - 01:58 AM (IST)

आज हमारी आदरणीय माताश्री श्रीमती स्वदेश चोपड़ा को हम से बिछुड़े एक वर्ष पूरा हो गया है। इस एक वर्ष में ऐसा कोई दिन नहीं गुजरा जब परिवार के सभी सदस्यों को उनकी याद न आई हो और न ही कोई ऐसा दिन गुजरा है जब हमारे पास आकर उनके किसी प्रशंसक ने उनकी चर्चा न की हो और उनकी प्रशंसा में दो शब्द न कहे हों। उन्होंने समूचे परिवार तथा समाज को अपना नि:स्वार्थ प्यार दिया और उसके बदले में किसी से कभी चाहा कुछ नहीं।

 
उन्होंने न सिर्फ समूचे परिवार को संभाला, हम बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा में पूरा मार्गदर्शन करने के साथ-साथ परिवार की जिम्मेदारियों को भी पूर्णत: निभाया और हम दोनों भाइयों को उच्च पारिवारिक संस्कार दिए।  
 
जब कभी किसी सामाजिक अथवा धार्मिक समारोह में पिता जी नहीं जा पाते थे तो वह माता जी को भेज देते। माता जी वहां अपने उद्गार व्यक्त करते हुए विषय के अनुरूप उर्दू के शेयर अथवा संस्कृत के श्लोकों का हवाला देतीं और अपने विचारों से उपस्थित समुदाय पर अच्छा प्रभाव डाल कर आती थीं। अपनी सेवा भावना के चलते जरूरतमंदों की सहायता करने वाली अनेक संस्थाओं को उन्होंने अपनाया और प्रोत्साहित किया। 
 
यही कारण है कि जिस किसी समारोह में भी वह जाती थीं, उन समारोहों के आयोजक उनकी भरपूर प्रशंसा करते थे और कहते थे कि उनके आने से उन लोगों को काफी कुछ जानने का अवसर मिला है।
 
उन्होंने सामाजिक सरोकारों के साथ सदैव अपने आपको जोड़े रखा। जहां उन्होंने अनेक कन्याओं की शिक्षा प्राप्ति में सहायता दी, वहीं जब सामूहिक विवाह-समारोहों आदि में वह नवविवाहित जोड़ों को आशीर्वाद देने के लिए जातीं तो नवविवाहित दम्पतियों को लिफाफे में शगुन के रूप में एक निश्चित धनराशि रख कर उपहार स्वरूप भेंट किया करती थीं व दहेज का भी प्रबंध करती थीं।
 
माता जी के प्रति उनके प्रशंसकों की श्रद्धा भावना का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि जिन सामाजिक संस्थाओं द्वारा आयोजित समारोहों में भाग लेने के लिए पिता जी को आमंत्रित किया जाता था, उनमें से अनेक संस्थाओं ने माता जी के बिछुड़ जाने के बाद उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए।
 
कन्या संतान के प्रति उनका लगाव बहुत अधिक था और इसी कारण हमारे परिवार में बेटियों को हमेशा बेटों के बराबर माना एवं रखा गया है। पूज्य माता जी अपने जीते जी हमारे लिए बहुत कुछ करके गईं परंतु अपने पोतों अभिजय और अरुष के विवाह करने और अपनी पौत्र-वधुएं देखने की इच्छा उनके मन में ही रह गई। 
 
पूज्य दादा (अमर शहीद लाला जगत नारायण) जी के जाने के बाद परिवार को जिस तरह का अभाव महसूस हुआ था, आज माता जी के जाने के एक वर्ष बाद भी वैसा ही अभाव हम सब महसूस कर रहे हैं और पिता जी की क्षति का तो अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता जिन्होंने इस पीड़ा को चुपचाप पी लिया है और अपनी अत्यधिक व्यस्तताओं की ओट में कभी अपना अकेलापन प्रकट नहीं होने दिया कि इस विछोह से उन्हें कितना आघात लगा है!
 
यही नहीं ‘पंजाब केसरी ग्रुप’ के स्टाफ के पुराने सदस्य, जिन्हें माता जी से मिलने, उनसे बातचीत करने और उनसे सीखने का कुछ अवसर मिला, आज भी उनकी स्नेह से भरपूर बातों और उनके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन को याद करते हैं। 
 
संसार में ऐसे बहुत कम ही भाग्यशाली लोग होते हैं जिन्हें अपने घर और बाहर सब ओर से स्नेह और सम्मान मिलता है। विनम्रता की प्रतिमूर्ति हमारी ममतामयी माता जी ऐसी ही थीं और आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर घर में हवन-कीर्तन द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम सब यही कामना करते हैं कि प्रभु संसार में सबको ऐसी ही समर्पित बहू, पत्नी और मां दे।
 
उनके दर्शाए हुए मार्ग पर चलते हुए और उनके दिव्य आशीर्वाद से उनका परिवार फल-फूल रहा है। माता जी का स्मरण जहां एक ओर हमें एक अपूर्णीय शून्य और अभाव की अनुभूति करवाता है, वहीं सूक्ष्म रूप में हम आज भी उन्हें अपने बीच अनुभव करते हैं और उनके पावन स्मरण को साक्षी रख कर संकल्प करते हैं कि उनके दर्शाए मार्ग और उच्च आदर्शों को सदैव अपने हृदय एवं आचार-व्यवहार में हम अपनाए रखेंगे।
 

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