पाकिस्तान में प्रैस और मीडिया की जुबानबंदी

Monday, Jul 27, 2020 - 01:54 AM (IST)

पाकिस्तान दर्जनों निजी प्रिंट, प्रसारण आऊटलेट और कई नए ऑनलाइन पोर्टल्स के साथ एक जीवंत प्रैस का घर है। जो सामाजिक-राजनीतिक बुराइयों की आलोचना करने और बुराइयों का पर्दाफाश करने को भी तैयार और सक्षम है और करता भी है। यदि वे लाल रेखाओं को पार न करने को तैयार हों। इनमें एक रेखा सैन्य और दूसरी खुफिया एजैंसियों की आलोचना है। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनके लिए सभी द्वार बंद हो जाते हैं। इसके ठीक विपरीत इस सप्ताह एक साल पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने व्हाइट हाऊस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बगल में बैठकर पत्रकारों के समक्ष घोषणा की थी कि पाकिस्तान के पास ‘‘दुनिया में सबसे स्वतंत्र प्रैसों में से एक है।’’ उन्होंने कहा था, ‘‘ऐसे में यह कहना कि पाकिस्तानी प्रैस पर प्रतिबंध है एक मजाक है।’’ 

वास्तव में आज पाकिस्तान के मीडिया के माहौल के बारे में कुछ भी कम गम्भीर नहीं है। एक प्रमुख पत्रकार, मतिउल्लाह जान का 21 जुलाई, इस्लामाबाद में, दिन के उजाले में अपहरण किया गया। यह मीडिया को पूरी तरह से कुचलने को निकली पाकिस्तानी नीति का ही हिस्सा है जो व्यापक रूप से और तेजी से अमल में लाई जा रही है। स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचार रिपोर्टों के अनुसार, जान को स्कूल के बाहर उठाया गया था, जहां उनकी पत्नी, कनीज सुघरा काम करती हैं। सुघरा के अनुसार, ‘‘उनकी कार के दरवाजे खुले थे, और चाबी अभी भी अंदर थी।...मैं कार से देख सकती थी कि उन्हें जबरन ले जाया गया था।’’ 

सौभाग्य से बाद में जान को छोड़ दिया गया। 23 जुलाई को उन्होंने अपने यू-ट्यूब हैड चैनल पर एक वीडियो जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने मेरा अपहरण किया, वे वही ताकतें हैं जो पाकिस्तान में लोकतंत्र के विरुद्ध हैं। पुलिस की वर्दी या सादे कपड़े, इन दिनों हर कोई एक ही पृष्ठ पर है। उन्हें 22 जुलाई को उक्त सुनवाई में शामिल होना था परंतु उससे पहले ही उनका अपहरण हो गया। पाकिस्तान में कुछ वर्षों में प्रसारण मीडिया आऊटलेट्स को बंद करने की कोशिश जारी है और प्रिंट आऊटलेटों के वितरण को बाधित किया गया है। पाकिस्तानी मीडिया के वॉचडॉग ‘फ्रीडम नैटवर्क’ की एक जांच में पाया गया कि 2013 और 2019 के बीच पाकिस्तान में 33 पत्रकारों को उनके काम के कारण मार दिया गया और एक भी अपराधी को दोषी नहीं ठहराया गया। ‘रिपोर्टर्स विदाऊट बॉर्डर्स-2020 वल्र्ड प्रैस फ्रीडम इंडैक्स’ ने पाकिस्तान को 180 देशों में 145वां स्थान दिया है- यह इसकी पहले से ही निराशाजनक 2019 रैंकिंग से तीन स्थान की गिरावट है। 

अधिकारियों ने सेना की आलोचना करने वाली अख़बारों, ऑनलाइन सामग्री पर रोक लगाने के बहाने, जिसमें हजारों वैबसाइटों पर प्रतिबंध लगाना शामिल है, ऑनलाइन यौन उत्पीडऩ और आतंकवादी समूहों की इंटरनैट गतिविधियों को लक्षित करने के लिए बनाए गए 2016 के साइबर अपराध कानून का उपयोग शुरू किया। 

यह प्रैस पर क्रैकडाऊन  ही नहीं बल्कि यह शिक्षकों, बुद्धिजीवियों, कार्यकत्र्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों को भी निशाना बनाने का प्रयास है लेकिन यह एक लंबे समय से स्थापित लोकतंत्र का मामला नहीं है, जो सत्तावादी ताकतों का शिकार हो रहा है। यह हाल के वर्षों में उठाए गए छोटे लेकिन वास्तविक लोकतांत्रिक कदमों को मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रहे एक बिखरे देश का मामला है। इसके अलावा, पाकिस्तानी प्रैस की खतरनाक दुर्दशा एक भयावह याद दिलाती है कि इमरान खान के दिए ‘नया पाकिस्तान’ नारे के बावजूद, अतीत की समस्याग्रस्त नीतियां अभी भी जिंदा हैं।

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