‘न खुदा ही मिला न विसाले सनम’ ‘न इधर के रहे न उधर के रहे’

Wednesday, Nov 13, 2019 - 12:22 AM (IST)

महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम घोषित होने के 19 दिन बाद भी जब राज्य में सरकार गठन को लेकर बात किसी सिरे नहीं चढ़ी तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्य में 6 महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करने की स्वीकृति दे दी। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों में 105 सीटें जीत कर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी जबकि उसकी गठबंधन सहयोगी शिवसेना (56) दूसरे, राकांपा (54) तीसरे और उसकी सहयोगी कांग्रेस (44) चौथे स्थान पर रही। 

यद्यपि भाजपा और शिवसेना को बहुमत के लिए वांछित 145 सीटों से अधिक 161 सीटें मिलीं परन्तु सत्ता के बंटवारे को लेकर दोनों में सहमति न बनने पर 8 नवम्बर को मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस ने त्यागपत्र दे दिया। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 9 नवम्बर को भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता देते हुए 11 नवम्बर तक बहुमत सिद्ध करने के लिए 48 घंटे का समय दिया परन्तु जब शिवसेना के साथ सत्ता के बंटवारे पर सहमति न बनने पर भाजपा ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया तो राज्यपाल ने दूसरी बड़ी पार्टी शिवसेना को सरकार बनाने के लिए निमंत्रित किया और उससे 11 नवम्बर शाम 7.30 बजे तक 24 घंटों के भीतर सहमति मांगी।

पहले से ही चल रही शिवसेना-राकांपा और कांग्रेस के बाहरी या भीतरी समर्थन से सरकार बनने की चर्चा के बीच राकांपा ने अपनी शर्तों के साथ शिवसेना को समर्थन देने की बात भी कह दी। राकांपा ने कहा कि शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करेंगे, भाजपा-शिवसेना की केंद्रीय गठबंधन सरकार में शिवसेना के एकमात्र मंत्री अरविंद सावंत को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देना होगा और शिवसेना को भाजपा नीत राजग से गठबंधन तोडऩा होगा।

इस बारे तैयार प्लान में जयंत पाटिल या अजीत पवार को उप-मुख्यमंत्री बनाने की बात कहने के साथ ही यह भी कहा गया कि कांग्रेस के सरकार में शामिल होने पर उसका भी एक उप-मुख्यमंत्री हो सकता है। कांग्रेस को विधानसभा में स्पीकर का पद देने का भी प्रस्ताव रखा गया। राकांपा की शर्त के अनुरूप ही 11 नवम्बर को केंद्र सरकार में शिवसेना के एकमात्र मंत्री अरविंद सावंत ने त्यागपत्र दे दिया और इसके साथ ही शिवसेना और भाजपा का 30 वर्ष पुराना गठबंधन भी टूट गया।

शिवसेना ने 11 नवम्बर को दावा किया था कि महाराष्ट्र में भाजपा के बिना उसकी सरकार को राकांपा और कांग्रेस सैद्धांतिक समर्थन देने पर सहमत हो गई हैं लेकिन वह तय सीमा से पहले इन दलों से समर्थन पत्र नहीं ले सकी तथा राज्यपाल ने तीन दिन की और मोहलत देने का शिवसेना का अनुरोध ठुकरा दिया। इसके साथ ही राज्यपाल ने राकांपा को 12 नवम्बर रात 8 बजे तक अर्थात 24 घंटों का ही समय देते हुए सरकार बनाने का दावा पेश करने का न्यौता दे दिया तथा गेंद शिवसेना के पाले से निकल कर राकांपा के पाले में आ गई।


12 नवम्बर को राज्य में नए सिरे से शुरू हुई गैर-भाजपा सरकार बनाने की कवायद के बीच जहां शरद पवार ने फोन पर सोनिया गांधी से बात की और सोनिया ने कांग्रेस नेताओं अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खडग़े और के.सी. वेणुगोपाल को उनके पास मुम्बई जाकर शरद पवार के साथ वार्ता के लिए अधिकृत किया।

हालांकि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राकांपा को 12 नवम्बर रात 8 बजे तक सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए कहा था परन्तु  12 नवम्बर बाद दोपहर केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी गई जिसे राष्ट्रपति ने उसी समय स्वीकार कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। 

वहीं, शिवसेना ने सरकार गठन के लिए और समय देने से राज्यपाल के इंकार करने के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा दिया है। 
अब यदि राष्ट्रपति शासन के दौरान कोई एक दल या कई दल मिलकर अपना बहुमत दिखा दें तो राष्ट्रपति शासन हटाया भी जा सकता है। 
कुल मिलाकर महाराष्ट्र के राजनीतिक रंग-मंच पर इस समय कुछ इस प्रकार की स्थिति बन गई है। अत: ऐसे में कुछ भी कहना मुश्किल प्रतीत होता है कि भविष्य में घटनाक्रम क्या रूप धारण करेगा।  —विजय कुमार 

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