किसानों की ‘चिताओं’ पर ‘रोटियां सेंक’ रहे  राजनीतिज्ञ

Saturday, Jun 10, 2017 - 11:35 PM (IST)

हालांकि महात्मा गांधी ने भारत को गांवों का देश बताया था तथा इस नाते यहां के गांवों और किसानों की दशा अ‘छी होनी चाहिए थी परंतु देश के ओर-छोर में किसान उपेक्षित ही रहे। सिवाय मुट्ठी भर समृद्ध किसानों के अधिकांश किसानों की आर्थिक स्थिति अधिक अ‘छी नहीं जिस कारण उनमें रोष और असंतोष व्याप्त है।

इन दिनों जबकि अनेक राज्यों में किसानों की आत्महत्याओं का मामला गर्म है, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों का आंदोलन उग्र रूप धारण कर चुका है। इस दौरान पुलिस की फायरिंग और पिटाई से मध्यप्रदेश में 6 किसानों की मृत्यु के अलावा कर्ज में डूबे अनेक किसानों ने आत्महत्या कर ली तथा महाराष्ट्र में भी 7 किसानों ने आत्महत्या की है।

मध्यप्रदेश में 9 जून तक कम से कम 104 निजी वाहन तथा 28 से अधिक सरकारी वाहन जला दिए गए। भोपाल के बिल्कुल निकट ‘फंदा’ गांव में 9 जून को प्रदर्शन के दौरान एक ट्रक को जलाकर राख कर देने की घटना के बाद मध्यप्रदेश में आंदोलन की आग भोपाल तथा राज्य के कुछ अन्य भागों तक पहुंच गई। इंटरनैट सेवा अभी भी 4 जिलों में बंद है।

19 वर्ष पूर्व जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तब भी किसान आंदोलन भड़का था। उस समय किसानों की मुख्य मांगों में उनकी नष्ट हुई सोयाबीन की फसल के लिए 5000 रुपए प्रति हैक्टेयर क्षतिपूर्ति की मांग भी शामिल थी जबकि सरकार उन्हें सिर्फ 400 रुपए प्रति हैक्टेयर क्षतिपूॢत दे रही थी। तब ‘मुलताई’ कस्बे में प्रदर्शनकारी किसानों पर पुलिस फायरिंग के परिणामस्वरूप 24 किसान मारे गए थे।

अब जबकि प्रदेश में 14 वर्षों से भाजपा की सरकार है, एक बार फिर इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है। किसान आंदोलन पर हैं और इस बार भी उनकी मांगें वैसी ही हैं जैसी 19 वर्ष पहले कांग्रेस के शासन में थीं।

इनमें कर्ज माफी, उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत अधिक एम.एस.पी. (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करने, 60 साल या अधिक उम्र के किसानों के लिए पैंशन योजना लागू करने, बिना ब्याज के ऋण, दूध का भाव बढ़ा कर 50 रुपए लीटर करने, स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करने और किसानों पर दायर केस वापस लेने आदि की मांगें शामिल हैं।

राज्य की भाजपा सरकार अपने शासन में कृषि में भारी प्रगति के दावे तो कर रही है परंतु उसने इस तथ्य से आंखें मूंद रखी हैं कि प्रदेश के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में वर्ष 2016-17 में हर 5 घंटे में एक किसान ने आत्महत्या की है।

कांग्रेस द्वारा मंदसौर गोलीकांड की निंदा के जवाब में भाजपा नेताओं वेंकैया नायडू और कैलाश विजयवर्गीय ने कांग्रेस के शासनकाल के दौरान गोली कांड में 24 लोगों के मारे जाने की बात कह कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। इस दौरान जहां मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा उनके कुछ साथियों ने किसानों से शांति की अपील के साथ अनिश्चितकालीन उपवास शुरू कर दिया है, वहीं कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा है कि वह किसानों की कर्ज माफी के पक्ष में नहीं हैं।

विरोधी दलों ने शिवराज सिंह चौहान और उनके साथियों के उपवास को ‘केजरीवाल स्टाइल की नौटंकी’ करार देते हुए उनसे त्यागपत्र की मांग की है वहीं भाजपा और कांग्रेस दोनों ही एक-दूसरे पर आंदोलन भड़काने की साजिश का आरोप लगा रहे हैं।
जहां भाजपा ने दो वीडियो जारी करके कांग्रेसी नेताओं को किसानों को आंदोलन के लिए भड़काते हुए दिखाया है तो कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान से इसी मुद्दे पर इस्तीफा मांगते हुए भाजपा और संघ के नाराज नेताओं को आंदोलन को भड़काने व हिंसा के लिए जिम्मेदार बताया है।

इस बारे ‘मुलताई’ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पूर्व विधायक सुनीलम का यह कहना ठीक लगता है कि ‘‘गोली चलाने वाले वही लोग...गोली खाने वाले वही लोग..., केवल गोली चलवाने वाले बदल गए।’’ मध्य प्रदेश हो, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब या कोई भी अन्य राज्य हो सभी राज्यों में किसान सरकार की उदासीनता और उपेक्षा का शिकार हैं और उनकी चिताओं की आंच पर राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थों की रोटियां सेंक रहे हैं।     —विजय कुमार   

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