मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दल महिलाओं के पेटीकोट तक पहुंच गए

Sunday, Oct 02, 2016 - 01:57 AM (IST)

जब भी चुनाव निकट आते हैं सभी पार्टियां मतदाताओं के लिए प्रलोभनों का पिटारा खोल देती हैं। जहां सत्तारूढ़ दलों की सरकारें कर्मचारियों को विभिन्न रियायत देती हैं, वहीं आम लोगों के लिए टैलीविजन, साडिय़ां, लैपटॉप, मंगलसूत्र, चावल, आटा और यहां तक कि सैनीटेरी नैपकिन जैसी चीजें मुफ्त देने की घोषणाएं करती हैं।

चुनावों के अवसर पर लोगों को उपहार बांटने का सिलसिला दक्षिण भारत से शुरू होकर अब सारे देश में फैल गया है। हालांकि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों पर किसी भी रूप में उपहार बांटने पर रोक लगा रखी है परंतु इसके बावजूद यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है।

इस समय जबकि जल्द ही चंद राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पक्ष में वातावरण तैयार करने के लिए उनके सपा समर्थक तरह-तरह के तरीके अपना रहे हैं।

राजनीतिक कार्यक्रमों और सभाओं में भीड़ जुटाकर शक्ति प्रदर्शन के लिए पैसा और फूड पैकेट बांटने की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए गत 26 सितम्बर को गाजीपुर में अखिलेश की एक सभा के लिए महिला श्रोताओं की भीड़ जुटाने के लिए स्थानीय सपा विधायक सुभाष पासी ने अनोखा तरीका अपनाया।

मुख्यमंत्री गुट के पार्टी के शीर्ष नेताओं की गुड बुक में बने रहने और सभा को सफल बनाने के लिए उसने महिलाओं को सभा में पहुंचने की अपील के साथ अपनी दी हुई साड़ी पहन कर वहां आने वाली महिलाओं को मौके पर छाता, लंच पैकेट और ब्लाऊज की सिलाई के पैसे देने के आफर दिए।

उन्होंने कहा कि यदि उनकी दी हुई साड़ी पहनकर महिलाएं सभा में आएंगी तो उन्हें पेटीकोट और ब्लाऊज के कपड़े ही नहीं बल्कि उसकी सिलाई के भी पैसे दिए जाएंगे। 

लेकिन जैसा कि हम पहले भी लिखते रहे हैं कि आज के मतदाता भी बहुत समझदार हो गए हैं। वे वोट चाहे किसी भी राजनीतिक दल को डालें वे सभी दलों द्वारा उन्हेें दी जाने वाली नकद राशि तथा उपहार आदि यह मान कर स्वीकार कर लेते हैं कि चलो यही सही।

लोगों की इसी भावना का प्रमाण उस समय मिला जब तमिलनाडु के व्यापारी जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक द्वारा हाल ही के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए बांटे जाने वाले बचे हुए टेबल टॉप मिक्सर ग्राइंडरों, वैट ग्राइंडरों, छत के पंखों और अन्य घरेलू सामान की बिक्री के लिए 4 ट्रकों में भर कर आंध्र प्रदेश में लाए और विभिन्न स्थानों पर उनकी बिक्री के लिए स्टाल खोल दिए। 

इन सभी वस्तुओं पर तमिलनाडु सरकार का ‘लोगो’ और जयललिता के प्रशंसकों द्वारा उन्हें प्यार से दिया हुआ नाम ‘अम्मां’ लिखा हुआ है। 2 जार वाला मिक्सर ग्राइंडर 600 रुपए में और वैट ग्राइंडर 1200 रुपए प्रत्येक की दर से बेचे गए। कम दाम पर बेचे जाने के कारण लोग-इस सामान पर मधुमक्खियों की तरह टूट पड़े और सारा सामान हाथों-हाथ बिक गया।

मजेदार बात यह भी है कि यह सारा सामान व्यापारियों ने बाकायदा ग्राहकों के सामने जांच करके और कम्पनी निर्माताओं द्वारा दी गई 2 वर्ष की गारंटी के कार्ड के साथ बेचा। लोगों में बांटने के लिए बनवाया गया सामान जितनी बड़ी मात्रा में बेचा गया है उससे स्पष्ट है कि मतदाताओं के लिए राजनीतिक दलों द्वारा किस हद तक धन खर्च किया जाता है।

इसीलिए लोग तो यही चाहेंगे कि काश चुनाव हर पांच वर्ष के बाद न होकर हर साल होते रहें ताकि इसी बहाने उन्हें कुछ न कुछ मिलता रहे क्योंकि चुनावों के बाद तो उन्हें इन पाॢटयों और उनके नेताओं से कुछ मिलने वाला नहीं और न ही चुनावों के बाद अधिकांश नेताओं के आम जनता को दर्शन होते हैं! लिहाजा :  भागते चोर की लंगोटी ही सही।    
                                              

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