‘पराली’ जलाने से हवा में ‘फैलता जहर’ सरकार ‘पराली’ खरीदने का प्रबंध करे

Thursday, Oct 05, 2017 - 01:57 AM (IST)

धान और गेहूं की कटाई के बाद खेतों में खड़ी पराली तथा नाड़ को आग लगाने पर प्रतिबंध के बावजूद किसानों द्वारा अपने खेतों को जल्दी खाली करके दूसरी फसल के लिए तैयार करने के उद्देश्य से पराली को आग लगाने का रुझान काफी पुराना है। इसके अंतर्गत पंजाब में किसान प्रतिवर्ष लगभग अढ़ाई करोड़ टन पराली आग के हवाले करते हैं। 

इससे कृषि भूमि का सत्यानाश होता है क्योंकि खेतों में मौजूद भूमिगत कृषि मित्र कीट तथा सूक्ष्म जीव आग की गर्मी के कारण मर जाते हैं। इससे भूमि की उर्वरता भी कम होती है और फसलों को तरह-तरह की बीमारियां लगने के अलावा शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। मानव स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह धुआं अत्यंत हानिकारक है। इससे वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मिथेन गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। एक टन नाड़ अथवा पराली जलाने पर हवा में 3 किलो कार्बन कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1500 किलो कार्बन डाईऑक्साइड, 200 किलो राख और 2 किलो सल्फर डाईऑक्साइड फैलते हैं। इससे लोगों की त्वचा एवं सांस संबंधी तकलीफें बढ़ जाती हैं। 

आग लगाने से खेतों के इर्द-गिर्द दूर-दूर तक धुआं फैल जाने से वायुमंडल में गर्मी पैदा होती है। वातावरण बुरी तरह प्रदूषित होकर चारों ओर गहरा धुंधलका छा जाता है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की समस्या इतनी गंभीर हो गई है कि दिल्ली तक इसका असर दिखाई देता है। इससे हर साल सर्दियों के मौसम में विशेषकर वायु प्रदूषण की समस्या अत्यंत बढ़ जाती है और इस वर्ष भी अभी से ही राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण से बीमारियों की आशंका जताई जाने लगी है। 

अब जबकि धान की कटाई शुरू है, किसानों ने खेतों को अगली फसल के लिए जल्दी खाली करने के उद्देश्य से पराली जलाने का सिलसिला जोरों से शुरू कर दिया है। गत 1 अक्तूबर को मुझे जालंधर से तलवाड़ा और वहां से अमृतसर जाने का मौका मिला तो सड़क के दोनों ओर खेतों में पराली जलाए जाने के दृश्य हर ओर दिखाई दे रहे थे। स्पष्ट है कि सरकार द्वारा खेतों में पराली न जलाने के अनुरोध का किसानों पर बहुत कम असर पड़ा है। पराली जलाने पर प्रतिबंध के बदले में पराली संभालने के लिए सरकारी सहायता की मांग पर बल हेतु विभिन्न किसान यूनियनें सामूहिक रूप से खेतों में पराली को आग लगाकर अपना रोष व्यक्त कर रही हैं। 

राज्य कृषि विभाग द्वारा पराली जलाने वाले किसानों की सबसिडी रोकने के आदेशों का किसानों पर कोई असर नहीं हो रहा। पिछले 4 दिनों में पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने पराली जलाने वालों के विरुद्ध 250 से अधिक केस दर्ज किए हैं। पराली जलाने वाले खेतों का पता लगाने के लिए उपग्रह की मदद भी ली जा रही है। दूसरी ओर किसान संगठनों ने भी किसानों को कहना शुरू कर दिया है कि जब तक सरकार पराली के निपटान के लिए उन्हें प्रति एकड़ कोई अतिरिक्त राशि देने की घोषणा नहीं करती तब तक वे इसी प्रकार इसे जलाते रहेंगे। पंजाब के किसान पराली को न जलाने के बदले में फसल की कीमत पर 300 रुपए प्रति क्विंटल सबसिडी के अलावा पैडीसीडरों आदि की खरीद पर भी सबसिडी की मांग कर रहे हैं। 

किसानों का कहना है कि पर्यावरण मित्र तरीके से पराली ठिकाने लगाने का मतलब है प्रति एकड़ अतिरिक्त खर्चा, जिसके लिए सरकार उन्हें पर्याप्त क्षतिपूर्ति दे। अब पंजाब सरकार ने गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है तथा मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने 3 अक्तूबर को पुन: केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से भेंट करके किसानों को पराली प्रबंधन के लिए 100 रुपए प्रति क्विंटल क्षतिपूर्ति देने की मांग  उठाई है। इसके अलावा उन्होंने रिमोट सैंसिंग द्वारा पराली को आग लगाने पर नजर रखने के लिए कहने के अलावा गिरदावरी रजिस्टर में पराली जलाने वाले किसानों के नाम पर लाल लकीर लगाने का निर्णय भी लिया है।

इस संबंध में एक सुझाव यह भी सामने आया है कि धान की खरीद की भांति ही सरकार किसानों की पराली उठाने का प्रबंध भी करे। इस पराली का इस्तेमाल नवीकरण योग्य ऊर्जा संयंत्रों में ईंधन के रूप में करने के अलावा गत्ता निर्माण आदि के लिए भी किया जा सकता है।—विजय कुमार

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