आतंकवादियों, अलगाववादियों और पत्थरबाजों के विरुद्ध घाटी में लोग अब बोलने लगे

Tuesday, Aug 07, 2018 - 03:13 AM (IST)

1947 में अपनी स्थापना के समय से ही पाकिस्तानी शासकों ने भारत के विरुद्ध छेड़े छद्म युद्ध की कड़ी में अपने पाले हुए आतंकवादियों और अलगाववादियों के जरिए कश्मीर में अशांति फैलाने, दंगे करवाने, आतंकवाद भड़काने, गैर मुसलमानों को यहां से भगाने, बगावत के लिए लोगों को उकसाने और आजादी की दुहाई देने का सिलसिला जारी रखा हुआ है। 

ये अलगाववादी घाटी में अशांति फैलाने के लिए जरूरतमंद बच्चों से पत्थरबाजी करवाते हैं परंतु अब इन अलगाववादियों का असली चेहरा उजागर होने लगा है। लोग इनकी पोल खोलने लगे हैं जो आतंकवाद और अलगाववाद के विरुद्ध यहां के लोगों की सोच में आ रहे बदलाव का संकेत है। इसका पहला उदाहरण 4 जून को मिला जब श्रीनगर के नौहट्टा मोहल्ले में सी.आर.पी.एफ. के वाहन से टकरा कर मारे गए पत्थरबाज के एक रिश्तेदार युवक ने कश्मीरी अलगाववादी नेताओं की नेकनीयती पर सवाल उठाए और उन पर कश्मीर के मुद्दे पर पाखंड करने तथा लाखों युवाओं को गुमराह करके अपनी राजनीति करने का आरोप लगाया। 

14 जून को आतंकवादियों द्वारा शहीद किए गए सेना के जवान औरंगजेब के पिता मोहम्मद हनीफ ने घाटी में फैले आतंकवाद के लिए आतंकवादियों के प्रति सरकार की कमजोर नीति को जिम्मेदार बताते हुए सरकार से औरंगजेब की शहादत का बदला लेने की मांग की। मोहम्मद हनीफ ने कहा, ‘‘सरकार 2003 से आतंकवादियों का सफाया करने में लगी है परंतु अभी तक इसे सफलता नहीं मिली। अत: राजनीतिज्ञों और अलगाववादियों को कश्मीर से बाहर निकाल कर आतंकवादियों के सफाए के लिए सेना को समूची घाटी छानने की खुली छूट दे देनी चाहिए।’’ 

‘‘कश्मीर के मामले में सरकार को कोई कमजोरी नहीं दिखानी चाहिए और घाटी से बुरे लोगों का सफाया कर देना चाहिए। ये कायर हैं। कश्मीर हमारा है। कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा क्यों लहरा रहा है? भारत का झंडा क्यों नहीं? यहां भारत का झंडा लहराना चाहिए। कश्मीर घाटी में आतंकवादियों को समाप्त करने के लिए अभियान के दौरान यहां ओर-छोर में तिरंगा लहराना चाहिए।’’ इसके कुछ दिन बाद 26 जुलाई को मोहम्मद हनीफ ने फिर कहा, ‘‘कायर पाकिस्तान खुलेआम भारत का मुकाबला नहीं कर सकता और आप लिख लीजिए कि निर्णायक युद्ध शुरू हो चुका है और इसका फैसला भी जल्दी ही हो जाएगा।’’ जहां घाटी में राष्टï्रवादी तत्वों द्वारा बदले हुए माहौल में आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई के पक्ष में आवाज उठाई जा रही है, वहीं घाटी में पहली बार अलगाववाद, आतंकवाद और पत्थरबाजों के विरुद्ध प्रदर्शन हुए हैं। 

21 जुलाई को बडग़ांव जिले के सुदूरवर्ती कनि-ए-दाजान गांव में जम्मू-कश्मीर अवामी फोरम (जे.के.ए.एफ.) नामक संगठन के 1500 के लगभग सदस्यों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद और अलगाववाद के विरुद्ध ऐतिहासिक प्रदर्शन किया जो चरार-ए-शरीफ में जाकर समाप्त हुआ। इसमें वक्ताओं ने पत्थरबाजी से आजादी की मांग की। जे.के.ए.एफ. के चेयरमैन फारूकअहमद गनई के अनुसार यह लोगों को जागरूक करने के लिए किया गया पहला प्रदर्शन था जिसका उद्देश्य बंदूक की संस्कृति का खात्मा करना था। इसके दो सप्ताह बाद ही 4 अगस्त को आतंकवादियों के गढ़ पुलवामा में हजारों लोगों ने अपने घरों से बाहर निकल कर आतंकवाद, अलगाववाद और हिंसा के विरुद्ध मार्च निकाला और जम कर नारेबाजी की। यह मार्च कई गांवों से होकर गुजरा जिसमें लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 

इस अवसर पर अवामी फोरम के प्रवक्ता जी.एन. परवाना ने आने वाले दिनों में समूचे कश्मीर में इस प्रकार के और प्रदर्शन करने की घोषणा की। इस रैली में शामिल इरफान अहमद नामक एक युवक ने, जिसके पिता और भाई की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी, कहा कि जब तक घाटी के युवा ङ्क्षहसा का रास्ता नहीं छोड़ देते, वे चुप नहीं बैठेंगे। कुल मिलाकर घाटी में उठने वाली ये आवाजें अलगाववादियों के लिए एक चेतावनी हंै कि उनकी दाल अब बहुत देर तक गलने वाली नहीं है। अत: उन्हें घाटी के हालात सुधारने में सहयोग देना चाहिए ताकि कश्मीरी युवक न मारे जाएं, यहां शांति कायम हो और लोगों के जीवन में खुशहाली आ सके।—विजय कुमार  

Pardeep

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