भाजपा द्वारा पी.डी.पी. से संबंध विच्छेद ‘देर से किया गया सही निर्णय’

Wednesday, Jun 20, 2018 - 03:32 AM (IST)

23 दिसम्बर, 2014 को जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजे घोषित होने के सवा 2 महीने बाद जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पी.डी.पी. ने आपस में गठबंधन किया व मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1 मार्च, 2015 को मुख्यमंत्री की शपथ ली। 

परंतु 7 जनवरी, 2016 को उनकी मृत्यु के बाद राज्य सरकार के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया और 3 महीने काफी ङ्क्षचतन करके उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने 4 अप्रैल को भाजपा के ही सहयोग से सरकार बनाई पर तभी एक वर्ग ने कह दिया था कि भाजपा को यह गठबंधन नहीं करना चाहिए। शिव सेना ने तो यहां तक कहा कि यह राष्ट्र विरोधी गठबंधन काम नहीं करेगा। फिर भी, हालात सुधारने की आशा से भाजपा ने ऐसा किया परंतु हिंसा और आतंकवाद पहले की तरह ही जारी रहा और आज जम्मू-कश्मीर में स्थिति जितनी खराब है उतनी खराब इससे पहले कभी नहीं थी। 

इसे देखते हुए वहां केंद्र सरकार ने आतंकियों के सफाए के लिए 2017 में आप्रेशन ‘आल आऊट’ शुरू किया जो काफी सफल हो रहा था परंतु महबूबा के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने रमजान के दौरान इसे न चलाने व एकतरफा ‘सीज फायर’ का निर्णय किया परंतु इस दौरान घाटी में हिंसा और पत्थरबाजी की घटनाएं बढ़ती चली गईं जिसकी इंतहा श्रीनगर में पत्रकार शुजात बुखारी और राइफल मैन औरंगजेब की हत्या के रूप में हुई। अंतत: घाटी में हिंसा न रुकने से हो रही किरकिरी को देखते हुए भाजपा की केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ्ती सरकार के विरोध के बावजूद प्रदेश में सीज फायर समाप्त करने की घोषणा कर दी। इसके साथ ही अमित शाह ने पी.डी.पी. और भाजपा के भावी रिश्ते पर विचार करने के लिए 19 जून को नई दिल्ली में जम्मू-कश्मीर सरकार में पार्टी के सभी मंत्रियों की बैठक बुलाई जिसमें पी.डी.पी. सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी गई। 

पार्टी के महासचिव राम माधव ने इसके लिए महबूबा मुफ्ती को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि जिस मकसद से पी.डी.पी. के साथ सरकार बनाई गई थी उसमें कामयाबी न मिलने पर सरकार से समर्थन वापस लिया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘राज्य में गठबंधन सरकार के पीछे भाजपा के 2 मकसद थे। पहला राज्य में शांति रहे और दूसरा विकास तेजी से हो, पर दोनों ही मकसद पूरे नहीं हुए। प्रदेश में कट्टïरता और आतंकवाद चरम पर है। नागरिकों के मूल अधिकार संकट में हैं और कानून व्यवस्था भी ठीक नहीं है।’’ ‘‘केंद्र ने राज्य सरकार को 80 हजार करोड़ रुपए का पैकेज भी दिया पर सरकार ने हालात नहीं संभाले। महबूबा मुफ्ती ने भाजपा और केंद्र सरकार के कामों में कई बार अडंग़ा डालने की कोशिश भी की। आतंकवादियों के विरुद्ध एकतरफा सीज फायर का भी कोई लाभ नहीं हुआ। घाटी में कट्टïरवाद बढ़ा जिसे रोकने के लिए महबूबा ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।’’ 

भाजपा द्वारा पी.डी.पी. से संबंध विच्छेद करने और प्रदेश में राज्यपाल शासन लागू करने की सिफारिश के बाद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी अपने पद से त्यागपत्र राज्यपाल एन.एन. वोहरा को भेज दिया है। माकपा नेता सीता राम येचुरी के अनुसार, ‘‘दोनों दलों में गठबंधन होना ही नहीं चाहिए था। दोनों दलों में कोई समानता ही नहीं है और यहीं से समस्या शुरू हुई है। दोनों एक-दूसरे को देखना नहीं चाहते तथा हालात बिगाडऩे के लिए जिम्मेदार हैं। भाजपा 3 वर्ष तक इसमें भागीदार रही है और अब यह इससे पीछे नहीं हट सकती। इसने अपनी जिम्मेदारियों से भागने की कोशिश की है।’’ नैकां नेता उमर अब्दुल्ला ने भी इसे एक नाटक का अंत ही करार दिया है। 

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने भाजपा के इस फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि, ‘‘जो भी हुआ है बहुत अच्छा हुआ है। भाजपा ने पी.डी.पी. से गठबंधन सरकार बनाकर बहुत बड़ी गलती की थी। यह पी.डी.पी. के सिर पर जिम्मेदारी सौंप कर भाग गई है। यह भाजपा की नाकामी है। अब जम्मू-कश्मीर के लोगों को कुछ राहत मिलेगी। पी.डी.पी. से कांग्रेस के गठबंधन का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।’’ बहरहाल अब जबकि जम्मू-कश्मीर की राजनीति एक नई करवट लेने जा रही है, यह देखना दिलचस्प रहेगा कि राज्य में हालात क्या रूप लेते हैं और राज्यपाल श्री वोहरा वहां कैसी भूमिका निभाते हैं। पाक प्रायोजित धन की सहायता से पत्थरबाजों, आतंकवादियों और अलगाववादियों ने अपनी गतिविधियों द्वारा अपने ही राज्य में व्यापार-व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार और विकास का भट्ठा बिठा दिया है। अंतत: भाजपा ने देर से ही सही पी.डी.पी. सरकार से संबंध तोड़ कर सही निर्णय किया है। अत: आशा करनी चाहिए कि बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में राज्य के हालात में सुखद बदलाव अवश्य आएगा।—विजय कुमार 

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